मॉड्यूल 4- गतिविधि 4: सामाजिक मानदंड और व्यवहार का विवरण
निम्नलिखित कथनों पर विचार करें और साझा करें कि कुछ संस्थानों / विचारों और प्रथाओं को बदलने की आवश्यकता क्यों है
पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं
लड़कियों का शीघ्र विवाह
पुरुष देखभाल करने वाले/पोषण करने वाले
दहेज प्रथा
बेटियों पर बेटों को वरीयता
मासिक धर्म की वर्जनायेँ
लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध
लड़कियाँ परिवार की अस्थायी सदस्य हैं
पारिवारिक संपत्ति में समान अधिकार। बेटा बेटी एक समान
ReplyDeleteHa
DeleteAj ke samay mai dono he ek saman hai hame purani soch ko khatam karna chahiye.
Deleteअब कोई भेदभाव नहीं रखता
DeleteNahi aa bhi भेदभाव hota hai
Deleteहमेशा से लडका -लडकियाँ एक समान है हम इस रूडीबाद सोच को खत्म करके दोनों को समान रूप से प्रोत्साहित करना चाहिए
ReplyDeleteनमस्कार साथियों,
ReplyDeleteनिष्ठा प्रशिक्षण के चतुर्थ माड्यूल शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर आयामों की प्रासंगिकता में अपने विचार रख रहा हूँ, हो सकता है आप इनसे सहमत हों या ना हों -
1:- पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं पूर्व में हमारे देश में ऐसा कानून था कि अपनी पारिवारिक संपत्ति में केवल पुत्र ही नाम होता था किंतु अब ऐसा नही है अब पुत्र हो चाहे पुत्री, सभी को पारिवारिक संपत्ति में सामान अधिककार है।
2:- लड़कियों का शीघ्र विवाह - पहले लोगों के शिक्षित न होने के कारण लड़कियों का विवाह, जल्दी कर दिया जाता था, भले ही इस निर्णय से बालिकाओं के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता था, इस पर विचार ही नही किया जाता था, किंतु अब बदलाव नजर आने लगा है परंतु पिछड़े इलाकों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है।
3:- पुरुष देखभाल करने वाले/ पोषण करने वाले- महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व दिया जाता है पुरुष ही परिवार का भरण पोषण करने वाले देखभाल करने वाले माने जाते थे किंतु वर्तमान में यह रूढ़िवादिता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है अब महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण एवं देखभाल करने लगी हैं
4:- दहेज प्रथा- दहेज प्रथा वास्तव में अभी भी विकट समस्या है। आज भी पढ़े लिखे शिक्षित होने के बावजूद भी कई लोग दहेज प्रथा को स्वीकार करते हैं , ना जाने प्रतिदिन देश में कितनी बेटियां दहेज प्रथा की बलि चढ़ जाती हैं। इस ओर हम सबको मिलकर के बहुत प्रयास करना है ताकि यह दानवरूपी प्रथा किसी बेटी को ना निगल पाए।
5:-बेटियों पर बेटों को वरीयता- बेटियों की तुलना में आज बेटों को ज्यादा वरीयता दी जाती है। जबकि मैंने अपने अनुभव में देखा है बेटा भले ही मां-बाप का साथ छोड़ दें ,उनके सुख-दुख में उनका भागीदार ना बने, किंतु बेटियां कभी अपने मां बाप को नहीं भूलती। हमेशा उनका यथासंभव साथ देती रहती हैं अतः इस रूढ़िवादी सोच को बदल कर बेटा और बेटी दोनों को समान वरीयता दी जानी चाहिए।
6:-मासिकधर्म की वर्जनायें- आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में मासिक धर्म को शारीरिक अशुद्धता की दृष्टि से देखा जाता है। कहीं-कहीं मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को रसोईघर, पूजनस्थलों, और कई कार्यों में महिलाओं को भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
7:-लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध- लड़कों की तुलना में लड़कियों को बाहर घूमने फिरने की आजादी नहीं रहती है । लड़कियों को आज भी घर पर ही कैद होकर रहना पड़ता है। लड़कियां यदि बाहर किसी काम से जाएं तो मां-बाप क्यों, किसलिए, क्या काम, आदि प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं। अब शिक्षा के साथ सुधार नजर आ रहा है।
8:- लड़कियां परिवार की अस्थायी सदस्य हैं- लड़कियों को रूढ़िवादी सोच के अनुसार पराया धन माना जाता है और लड़कियां कि जब तक शादी नहीं होती तब तक भी हो उस परिवार की सदस्य हैं और शादी के बाद बेटी को परायी अमानत मान लिया जाता है, आज भी पढ़े लिखे, सभ्य लोगों को ऐसी बाते करते हुए मैंने अनुभव किया है ।
मेरे विचार.....
पूनाराम राजपूत
लड़कियों को पराया धन कभी भी नहीं समझना चाहिए। वाल विवाह प्रथा बन्द होनी चाहिए। समान अधिकार मिलना चाहिए। महिलायें।रूढ़ीवादिता समाप्त होनी चाहिए।
Deleteरूढ़िवादी प्रथा को समाप्त करना चाहिए और बेटा बेटी को समान अधिकार देना चाहिए।
ReplyDeleteVartaman me rudhivadi soch samapt ho rahi hai
DeleteSachendra kumar Tripathi MS Janeh Tyonthar Rewa MP (1)putra aur putri dono ko samatti par adhikar hai. Ladkiyon ki shadi ki umra21sal kar Dena chahiye. Ladaka aur ladaki dono apane parrents ki sewa karati hai. Beta aur beti saman hai. Masik dharm srijanatmakata ka prateek hai. Dono ko ghoomane ki aajadi honi chahiye. Ladkiyan paraya Dhan nahi hoti. In sabhi rudhiyon ko badalna chahiye
Deleteहमारे देश मे सनातन काल से पुरुष प्रधान व्यवस्था पोषित होती आयी है जिसने महिलाओं के प्रति समाज के नजरिये को भी प्रदुषित कर दिया है , इसलिये रुढिवादी व्यवस्थाओं में समय के साथ परिवर्तन अति आवश्यक है ।
ReplyDeleteहम देखते हैं कि समाज में सेवा की आशा लड़के से की जाती रही कि लड़का है बड़ा होकर सेवा करेगा।
ReplyDeleteपर सेवा यदि कोई करता है तो वो है लड़की , कभी माँ के रूप में ,कभी बहन, तो कभी स्त्री के रूप में
लड़का लड़की एक समान
सम समाज का करो निर्माण
हमेशा से ही लडके लडकिया समान हैं जब ईश्वर ने इनमे भेद नही किया तो हम कौन होते हैंदोनो को एक समान अवसर देने चाहिए
ReplyDeleteरुढिवादी सामाजिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन आवश्यक है ।
ReplyDeleteरुढिवादी व्यवस्था में परिवर्तन जरुरी है
ReplyDeleteदेश काल परिस्थितियों के अनुसार आदि काल से महिला-पुरुष मे जेंडर रूपी अंतर बनाया था। जो सामाजिक, एवं प्राकृतिक मायनो मे भेद किया जाता रहा है। पर अब सभी मयनो मे परिस्थितियों मे अनुकूलनता आई है। जिस प्रकार लडकियां भी अब लडको के भाती सभी क्षैत्रो मे अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है।
ReplyDelete(1) पुत्र पारिवारिक उतराधिकारी पहले से चला आता रहा है परन्तु अब ऐसा नहीं है क्यो की शिक्षा का विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक परिवर्तन के कारण समान आधीकर है।
ReplyDelete(2)पहले मासिक धर्म सुरु होते ही विवाह की योजना बना ली जाती थी लेकिन अब 18 वर्ष निर्धारित कर दी गई है।
(3) पहले पुरुष प्रधान होता था जिसकी जिम्मेदारी परिवार की देख भाल और भरण पोषड की होती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है बदलाव के साथ साथ सभी बेयस्क सदस्यों की भी जिम्मेदारी बनती है।
(4)पहले दहेज प्रथा चलाए मान था अब लगाम लगाया जा रहा है।
(5)पहले बेटियों को हीन भावना से देखा जाता था और बेटों को उच्च भावनाओं से देखा जाता था बदलाव होने से समान भावना से देखा जाता है।
(6) शिक्षा के कमी के कारण मासिक धर्म में रहते हुए रसोईघर , पूजा स्थल,सार्वजनिक स्थल पर जाने में मनाही थी परन्तु अब ऐसा नहीं है।
(7) लड़कियों के सरिरिक विकास होने पर घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था परन्तु अब ऐसा नहीं है।
(8)पहले का मानना था कि लड़कियों परिवार की अस्थाई सदस्य है क्यो की वह दूसरे घर चले जाएगी परन्तु अब समानता का आधिकार है।
हमें समाज में व्याप्त रूढ़िवादी विचारधारा को बदलना होगा लड़का और लड़की को एक सामान अवसर देकर उनकी प्रतिभाओं को निखारना होगा
ReplyDeleteKuprathao ke kaaran mahilaon ki sthiti kafi kharab hai shiksha ke dwara isme sudhar ati aavashyak hai
ReplyDeleteHamari Samajik kupratha Ke Karan gender Hamare Samaj ka ek hissa hai Isko badalne ke liye Shiksha paddti per Karya karna anivarya hai
ReplyDeletedont judge any one by gender
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक विषय है। इसके माध्यम से शिक्षक छात्रों की क्षमताओं को पहचानने और उसके अनुसार कौशल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रियाओं में जेंडर शब्द सामाजिक विषय है रूढ़िवादी प्रथा में बेटियों से बेटों को उत्तराधिकारी का दर्जा प्राप्त है यह प्रथा खत्म होनी चाहिए और एक अच्छे समाज के लिए अच्छी सोच विकसित होना चाहिए बेटियां बेटियां अथवा महिला और पुरुष दोनों को समान समझना चाहिए वर्तमान दौर में छात्रों की अपेक्षा छात्राएं पढ़ाई में ज्यादा ध्यान देती हैं अतः पुरानी सोच को बदल कर महिला और पुरुष दोनों को समान समझना चाहिए
ReplyDeleteuprokt sabhi vikalp lagu hona avshyak hai ladki parivar ki asthayi sadsya hai aise mansikta tyagna chaiye aur sampatti mai barabar ka adhikar hona chahiye aur sabhi vikalp par vichar kar soch badlni chahiye
ReplyDeleteपुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में पुरुष देखभाल करने वाले, लड़कियों का तीव्र विवाह, दहेज प्रथा, बेटियों पर बेटों को वरीयता महिला धर्म की योजनाएं लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता का प्रतिशोध, लड़कियां परिवार की अस्थाई सदस्य जैसी धारणाएं समाज में आज भी
ReplyDeleteप्रचलन में हैं।
'सब पढ़े सब बढ़े"
एक शिक्षक के रूप में बालक बालिकाओं को अपने शैक्षणिक अधिगम मैं नारी सशक्तिकरण शत प्रतिशत बालिकाओं का नामांकन दहेज प्रथा पर रोक पुरुष प्रधानता दहेज लेना एवं देना अपराध है इसके संबंध में विद्यालय स्तर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन मैं बाल नाटिका दहेज संबंधी कहानियां एवं लघु नाटिका प्रस्तुत करना बालक बालिका को समान रूप से परिवार में सम्मान देना हाय तो नारी जाति को साक्षर होना नितांत आवश्यक है अर्थात वर्तमान समय की सरकारों द्वारा अथक प्रयास के बावजूद भी अनेकों कार्यक्रम संचालित है फिर भी उपरोक्त कुरीतियां हमारे समाज में विद्यमान हैं इनके समाधान के लिए विद्यालय स्तर पर इसके निवारण के लिए विभिन्न शैक्षिक गतिविधियां विभिन्न शोध एवं विभिन्न समाचार पत्रों टेलीविजन आदमी प्रसारित होना चाहिए और जहां कहीं भी दहेज लिया या जाता हो या बाल विवाह किया जाता हो या नारी का अपमान किया जाता है इसके लिए उसका विरोध करना तथा सूचना देना प्रमुख है।
अर्थात हम शिक्षक एक राष्ट्र निर्माता के रूप में जाने जाते हैं ऐसी धारणाओं परंपराओं रीति-रिवाजों को समाप्ति हैं विद्यालय में शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में बालक एवं बालिकाओं को जागरूक करना हमारा परम कर्तव्य है।
आता है सभी बालक बालिका शिक्षा ग्रहण करें सभी का पालन पोषण हो कम उम्र में विवाह न हो दहेज लेना या देना बालक बालिकाओं को शैक्षणिक प्रक्रिया में जोड़ना और उन्हें ऐसी मान्यताएं या धारणाएं समाप्ति हेतु विद्यालय में स्तर एवं समाज परिवार विशेष कार्यक्रम रखना।
।
लड़के लड़कियां दोनों से समान व्यवहार होना चाहिए। दोनो का संपत्ति में बराबर अधिकार है। दोनो को परिवार में निर्णय लेने का हक़ है। महिलाऐं भी भरण पोषण करने में सक्षम है ंं
ReplyDeleteलिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
दहेज प्रथा को समाप्त करना चाहिए।
परिवर्तन जरुरी है ।
ReplyDeleteदहेज प्रथा समाज के लिए एक अभिशाप है अब बेटा और बेटी में ज्यादा अंतर नहीं रह गया है समाज में ही मानसिकता आने लगी है कि चाहे बेटा हो या बेटी हो दोनों एक ही समान है।बेटी को परिवार का अस्थाई सदस्य माना जाता है क्योंकि वह विवाह के पश्चात अपने ससुराल में रहने लग जाती है जबकि बेटा उसी परिवार में रहता है और उस परिवार की सेवा करता है यह मानसिकता भी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है की बेटी अपने माता पिता की सेवा नहीं कर सकती
ReplyDeleteलड़का लड़की एक समान की भावना होनी चाहिए पुरानी रूढ़िवादिता को लड़कों को व रीता नहीं देना चाहिए धन्नालाल राठौर शासकीय माध्यमिक शाला सिवान जिला बुरहानपुर
ReplyDeleteBeta beti ek saman hain.dono mein antar ya bhed bhav rakhna unn dono ke vyaktitva ke vikas mein giravat lane jainsa hai
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रियाओं में जेंडर शब्द सामाजिक विषय है रूढ़िवादी प्रथा में बेटियों से बेटों को उत्तराधिकारी का दर्जा प्राप्त है यह प्रथा खत्म होनी चाहिए और एक अच्छे समाज के लिए अच्छी सोच विकसित होना चाहिए।हम शिक्षक एक राष्ट्र निर्माता के रूप में जाने जाते हैं ऐसी धारणाओं परंपराओं रीति-रिवाजों को समाप्ति हैं विद्यालय में शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में बालक एवं बालिकाओं को जागरूक करना हमारा परम कर्तव्य है।
ReplyDeleteहमें समाज में व्याप्त रूढ़ीवादी विचारधारा को बदलना होगा एवं लडके और लड़कियों को समान अवसर दे कर उनकी प्रतिभा को निखारना होगा।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्वपूर्ण सामाजिक विषय है।।
यह सारी रूढ़ीवादी प्रथाएं बंद करनी चाहिए एवं लड़के और लड़कियों को समान अधिकार मिलना चाहिए
ReplyDeleteYeh saari rudhiwadi prathayen band ki jaani chahiye . Ladke aur ladkiyon dono ko saman awsar diye jane chahiye .
ReplyDelete1. पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं -
ReplyDeleteपूर्व में हमारे देश में ऐसा कानून था कि अपनी पारिवारिक संपत्ति में केवल पुत्र ही उत्तराधिकारी होता था किंतु अब ऐसा नही है अब पुत्र हो चाहे पुत्री, सभी को पारिवारिक संपत्ति में सामान अधिकार है।
2. लड़कियों का शीघ्र विवाह -
रूढ़िवादिता, असुरक्षा के कारण लड़कियों का विवाह, जल्दी कर दिया जाता था, भले ही इस निर्णय से बालिकाओं के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता था। किंतु अब बदलाव नजर आने लगा है परंतु पिछड़े /ग्रामीण इलाकों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है।
3. पुरुष देखभाल करने वाले/ पोषण करने वाले-
रूढ़िवादिता के कारण ऐसा माना जाता है कि पुरुष ही परिवार का भरण पोषण करने वाले देखभाल करने वाले होते हैं, किंतु वर्तमान में यह रूढ़िवादिता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है अब महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण एवं देखभाल करने लगी हैं। फिर बात उड़ीसा की हो या लक्ष्मी लकड़ा की
4. दहेज प्रथा-
दहेज प्रथा वास्तव में अभी भी विकट समस्या है। आज भी पढ़े लिखे शिक्षित होने के बावजूद भी कई लोग दहेज प्रथा को स्वीकार करते हैं , ना जाने प्रतिदिन देश में कितनी बेटियां दहेज प्रथा की बलि चढ़ जाती हैं। शिक्षित और कार्यशील होने के कारण वर्तमान में बेटियां स्वयं दहेज प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं।
5. बेटियों पर बेटों को वरीयता-
रूढ़िवादिता के कारण बेटियों की तुलना में बेटों को ज्यादा वरीयता दी जाती है। रूढ़िवादी सोच को बदल कर बेटा और बेटी दोनों को समान वरीयता दी जानी चाहिए। बदलाव दृष्टिगोचर है
6. मासिकधर्म की वर्जनायें-
आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में मासिक धर्म को शारीरिक अशुद्धता की दृष्टि से देखा जाता है। मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को रसोईघर, पूजा स्थलों, और कई कार्यों में महिलाओं को भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
7. लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध-
लड़कों की तुलना में लड़कियों को बाहर घूमने फिरने की आजादी नहीं रहती है ।
8. लड़कियां परिवार की अस्थायी सदस्य हैं-
लड़कियों को रूढ़िवादी सोच के अनुसार पराया धन माना जाता है । वर्तमान परिपेक्ष में धीरे-धीरे सुधार आ रहा है।
राजेन्द्र श्रीवास्तव शा हाई स्कूल कृ 2 डबरा
ReplyDeleteपारिबारिक संपत्ति में पुत्र औऱ पुत्री दोनों। का समान अधिकार होना चाहिए।
परिवार की देखभाल में महिलाओं का ज्यादा अधिकार है।
लड़कियों की कम उम्र में शादी नहीं करनी चाहिए
निर्णय लेने में उन्हें सक्षम बनाना चाहिए।
1 परिवार संपत्ति पर अब समान अधिकार होता है चाहे पुत्र हो या पुत्री बस हमारे समाज को जागरूक होने की आवश्यकता है
ReplyDelete2 आज के समाज में कुछ हद तक विवाह की उम्र में सुधार हुआ है पर आज भी कुछ पिछड़े क्षेत्रों में बाल विवाह जैसी रूढ़ियां व्याप्त है इसमें सुधार अति आवश्यक है
3 आज के समाज में रूढ़ियों को पीछे छोड़ महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण करने में सक्षम है इस पर थोड़ा और जोर देने की आवश्यकता है
4 आज के समाज की सबसे बड़ी कुप्रथा है दहेज इसके इससे कई परिवार बेवजह बलिदान हो जाते हैं उसमें सुधार हमारे देश की युवा पीढ़ी को जागरूकता की आवश्यकता है
5 पुत्र पुत्री वरीयता एक रूढ़िवादी प्रथा है इसे बदलने की आवश्यकता है इसमें पुत्र पुत्री को सामान वरीयता देनी चाहिए
6 मासिक धर्म आज हमारा समाज रूढ़िवादी प्रथा से जूझ रहा है आज भी हमारे समाज में महिलाओं को रसोई से दूर पूजा पाठ से दूर आदि कुप्रथा व्याप्त है इसमें सुधार की आवश्यकता है
7 लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर भी समाज में कई प्रकार के प्रश्न चलने लगा रहे हैं इसमें बहुत अधिक सुधार की आवश्यकता है जो कि बहुत आवश्यक है
8 लड़कियों को परिवार की अस्थाई सदस्य माना जाता है यह समाज की रूढ़िवादिता को हमारे समाज को समाप्त करना चाहिए इस और शिक्षित होने की आवश्यकता है
रूढ़िवादी प्रथा को समाप्त करना चाहिए और बेटा बेटी को एक समान अधिकार देना चाहिए
1) पुत्र पारिवारिक उतराधिकारी पहले से चला आता रहा है परन्तु अब ऐसा नहीं है क्यो की शिक्षा का विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक परिवर्तन के कारण समान आधीकर है।
ReplyDelete(2)पहले मासिक धर्म सुरु होते ही विवाह की योजना बना ली जाती थी लेकिन अब 18 वर्ष निर्धारित कर दी गई है।
(3) पहले पुरुष प्रधान होता था जिसकी जिम्मेदारी परिवार की देख भाल और भरण पोषड की होती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है बदलाव के साथ साथ सभी बेयस्क सदस्यों की भी जिम्मेदारी बनती है।
(4)पहले दहेज प्रथा चलाए मान था अब लगाम लगाया जा रहा है।
(5)पहले बेटियों को हीन भावना से देखा जाता था और बेटों को उच्च भावनाओं से देखा जाता था बदलाव होने से समान भावना से देखा जाता है।
(6) शिक्षा के कमी के कारण मासिक धर्म में रहते हुए रसोईघर , पूजा स्थल,सार्वजनिक स्थल पर जाने में मनाही थी परन्तु अब ऐसा नहीं है।
(7) लड़कियों के सरिरिक विकास होने पर घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था परन्तु अब ऐसा नहीं है।
(8)पहले का मानना था कि लड़कियों परिवार की अस्थाई सदस्य है क्यो की वह दूसरे घर चले जाएगी परन्तु अब समानता का आधिकार है।
देश काल परिस्थितियों के अनुसार आदि काल से महिला-पुरुष मे जेंडर रूपी अंतर बनाया था। जो सामाजिक, एवं प्राकृतिक मायनो मे भेद किया जाता रहा है। पर अब सभी मयनो मे परिस्थितियों मे अनुकूलनता आई है। जिस प्रकार लडकियां भी अब लडको के भाती सभी क्षैत्रो मे अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है।
ReplyDeleteSanatan se chali aa rahi rudibadi pirtha ko smapat karna hoga. Our ladka ladki ke bhed bhav ko mitana hoga. Tabhi desh our samaj ki unnati sambhav hai.
ReplyDeleteनमस्कार साथियों,
ReplyDeleteनिष्ठा प्रशिक्षण के चतुर्थ माड्यूल शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर आयामों की प्रासंगिकता में अपने विचार रख रहा हूँ, हो सकता है आप इनसे सहमत हों या ना हों -
1:- पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं पूर्व में हमारे देश में ऐसा कानून था कि अपनी पारिवारिक संपत्ति में केवल पुत्र ही नाम होता था किंतु अब ऐसा नही है अब पुत्र हो चाहे पुत्री, सभी को पारिवारिक संपत्ति में सामान अधिककार है।
2:- लड़कियों का शीघ्र विवाह - पहले लोगों के शिक्षित न होने के कारण लड़कियों का विवाह, जल्दी कर दिया जाता था, भले ही इस निर्णय से बालिकाओं के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता था, इस पर विचार ही नही किया जाता था, किंतु अब बदलाव नजर आने लगा है परंतु पिछड़े इलाकों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है।
3:- पुरुष देखभाल करने वाले/ पोषण करने वाले- महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व दिया जाता है पुरुष ही परिवार का भरण पोषण करने वाले देखभाल करने वाले माने जाते थे किंतु वर्तमान में यह रूढ़िवादिता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है अब महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण एवं देखभाल करने लगी हैं
4:- दहेज प्रथा- दहेज प्रथा वास्तव में अभी भी विकट समस्या है। आज भी पढ़े लिखे शिक्षित होने के बावजूद भी कई लोग दहेज प्रथा को स्वीकार करते हैं , ना जाने प्रतिदिन देश में कितनी बेटियां दहेज प्रथा की बलि चढ़ जाती हैं। इस ओर हम सबको मिलकर के बहुत प्रयास करना है ताकि यह दानवरूपी प्रथा किसी बेटी को ना निगल पाए।
5:-बेटियों पर बेटों को वरीयता- बेटियों की तुलना में आज बेटों को ज्यादा वरीयता दी जाती है। जबकि मैंने अपने अनुभव में देखा है बेटा भले ही मां-बाप का साथ छोड़ दें ,उनके सुख-दुख में उनका भागीदार ना बने, किंतु बेटियां कभी अपने मां बाप को नहीं भूलती। हमेशा उनका यथासंभव साथ देती रहती हैं अतः इस रूढ़िवादी सोच को बदल कर बेटा और बेटी दोनों को समान वरीयता दी जानी चाहिए।
6:-मासिकधर्म की वर्जनायें- आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में मासिक धर्म को शारीरिक अशुद्धता की दृष्टि से देखा जाता है। कहीं-कहीं मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को रसोईघर, पूजनस्थलों, और कई कार्यों में महिलाओं को भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
7:-लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध- लड़कों की तुलना में लड़कियों को बाहर घूमने फिरने की आजादी नहीं रहती है । लड़कियों को आज भी घर पर ही कैद होकर रहना पड़ता है। लड़कियां यदि बाहर किसी काम से जाएं तो मां-बाप क्यों, किसलिए, क्या काम, आदि प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं। अब शिक्षा के साथ सुधार नजर आ रहा है।
8:- लड़कियां परिवार की अस्थायी सदस्य हैं- लड़कियों को रूढ़िवादी सोच के अनुसार पराया धन माना जाता है और लड़कियां कि जब तक शादी नहीं होती तब तक भी हो उस परिवार की सदस्य हैं और शादी के बाद बेटी को परायी अमानत मान लिया जाता है, आज भी पढ़े लिखे, सभ्य लोगों को ऐसी बाते करते हुए मैंने अनुभव किया है ।
देश काल परिस्थितियों के अनुसार आदि काल से महिला-पुरुष मे जेंडर रूपी अंतर बनाया था। जो सामाजिक, एवं प्राकृतिक मायनो मे भेद किया जाता रहा है। पर अब सभी मयनो मे परिस्थितियों मे अनुकूलनता आई है। जिस प्रकार लडकियां भी अब लडको के भाती सभी क्षैत्रो मे अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है।
ReplyDeleteइन आठ बिन्दुओ में परिवर्तन होना आवश्यक है। समाज में रूढ़िवादी प्रथाओ को भी बदलने की आवश्यकता है जिसमे पुरुष के समान महिलाओं को भी समान अधिकार प्राप्त होगा।
ReplyDeleteहमें हमें लड़के लड़कियों को एक समान समझना चाहिए किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाहिए
ReplyDeleteनमस्कार साथियों,
ReplyDeleteमैं *बलवीर सिंह कौरव* शा मा वि बावन पाएगा (आनंद नगर) ग्वालियर
निष्ठा प्रशिक्षण के चतुर्थ माड्यूल *"शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर आयामों की प्रासंगिकता"* में अपने विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ -
*1:- पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं* पूर्व में हमारे देश में ऐसा कानून था कि अपनी पारिवारिक संपत्ति में केवल पुत्र ही नाम होता था किंतु अब ऐसा नही है अब पुत्र हो चाहे पुत्री, सभी को पारिवारिक संपत्ति में सामान अधिककार है।
*2:- लड़कियों का शीघ्र विवाह -* पहले लोगों के अशिक्षित होने के कारण लड़कियों का विवाह, कम उम्र में कर दिया जाता था, फिर चाहे उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़े इस बात पर विचार ही नही किया जाता था, किंतु अब बदलाव नजर आने लगा है परंतु पिछड़े इलाकों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है।
*3:- पुरुष देखभाल करने वाले/ पोषण करने वाले-* महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व दिया जाता है पुरुष ही परिवार का भरण पोषण करने वाले देखभाल करने वाले माने जाते थे किंतु वर्तमान में यह रूढ़िवादिता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है अब महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण एवं देखभाल करने लगी है l
*4:- दहेज प्रथा-* दहेज प्रथा वास्तव में अभी भी विकराल समस्या है। आज भी पढ़े लिखे शिक्षित होने के बावजूद भी कई लोग दहेज प्रथा को स्वीकार करते हैं , ना जाने प्रतिदिन देश में कितनी बेटियां दहेज प्रथा की बलि चढ़ जाती हैं। इस ओर हम सबको मिलकर के बहुत प्रयास करना है ताकि यह दानवरूपी प्रथा किसी बेटी को ना निगल पाए।
*5:-बेटियों पर बेटों को वरीयता-* बेटियों की तुलना में आज बेटों को ज्यादा वरीयता दी जाती है। जबकि मैंने अनुभव किया है,कि बेटा भले ही मां-बाप का साथ छोड़ दें ,उनके सुख-दुख में उनका भागीदार ना बने, लेकिन बेटियां कभी अपने मां बाप को नहीं भूलती। अतः इस रूढ़िवादी सोच को बदल कर बेटा और बेटी दोनों को समान वरीयता दी जानी चाहिए।
*6:-मासिकधर्म की वर्जनायें-* आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में मासिक धर्म को शारीरिक अशुद्धता माना जाता है। कहीं-कहीं मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को रसोईघर, पूजनस्थलों, और कई कार्यों से दूर रखा जाता है दूर रखा जाता है | जबकि यह एक नैसर्गिक प्रक्रिया है जो समाज की निरंतरता हेतु आवश्यक है|
*7:-लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध-* लड़कों की तुलना में लड़कियों को बाहर जाने की आजादी नहीं रहती है । लड़कियों को आज भी घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखा जाता है लड़कियां यदि बाहर किसी काम से जाएं तो मां-बाप क्यों, किसलिए, क्या काम, आदि प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं। वर्तमान की शिक्षा पद्धति ने इस रूढ़िवादिता में काफी सुधार किया है ।
*8:- लड़कियां परिवार की अस्थायी सदस्य हैं-* लड़कियों को रूढ़िवादी सोच के अनुसार पराया धन समझा जाता है और लड़कियां कि जब तक शादी नहीं होती तब तक भी हो उस परिवार की सदस्य हैं और शादी के बाद बेटी को परायी अमानत मान लिया जाता है, आज भी पढ़े लिखे, सभ्य लोगों को ऐसी बाते करते हुए मैंने अनुभव किया है । इसमें सुधार की आवश्यकता है जो केवल शिक्षा के माध्यम से ही किया जा सकता है।
बेटा बेटी एक समान
ReplyDeleteसबको दें शिक्षा का ज्ञान
हमें पुरानी रूढ़िवादी परंपराओं को बदलना होगा तथा लड़के और लड़कियां समान हैं और अवसर भी उपलब्ध कराने तथा एक बराबर हक भी मिलना चाहिए सुनील कुमार तिवारी माध्यमिक शिक्षा जन शिक्षा केंद्र मनगवां जिला रीवा
ReplyDeleteसामाजिक रूढ़ियों के कारण लिंग अनुपात बढ़ता चला आ रहा है जिसमें सामाजिक कुरीतियां पुत्र को अधिक महत्व देना एवं लड़कियों को पराया धन समझना यही सामाजिक कुरीतियां हैं। हमें नई शिक्षा नीति में इनमें परिवर्तन करना है।
ReplyDeleteआशीष पांचाल एकीकृत माध्यमिक विद्यालय चायनी विकासखंड कालापीपल
ReplyDeleteयह सच है कि हमारे देश में प्राचीन समय से लड़के और लड़कियों में भेदभाव चला आ रहा है, इसका मुख्य कारण एक है वह है अशिक्षा, लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ इसमे परिवर्तन हो रहा है ,जिस प्रकार अब लड़के लड़कियां शिक्षित हो रहे हैं तो इस भेद को मिटारहे है ,अब हमें शिक्षा को बढ़ाना है अगर लोग शिक्षित होंगे तो बाल विवाह दहेज प्रथा और लड़कों लड़कियों में भेद, की लड़कियां यह नहीं कर सकती लड़कियां वह नहीं कर सकती है ,वह सब दूर होगा ।पुराने समय में लोग पढ़े-लिखे नहीं थे ,तो वह भेदभाव को अत्यधिक जोर देते थे ।कि लड़कियां कुछ नहीं कर सकती लड़कियां आगे नहीं बढ़ सकती है ,परंतु यह भेदभाव और रूढ़िवादिता केवल शिक्षा से ही समाप्त हो सकती है। धन्यवाद।
सामाजिक रूढ़िवादिता देश के विकास होने में हमेशा बाधक रही है।हमें इन पर ध्यान देना चाहिए तथा आगे बढ़कर प्रत्येक क्षेत्र में सभी को प्रोत्साहित करना चाहिए।
ReplyDeleteजेंडर संबंधी सामाजिक रूढ़िवादी विचारधाराओ को हतोत्साहित और सभी को समान अवसर देकर इस तरह की समस्या से निजात मिल सकती है ।इस दिशा मे सरकारें व समाज निरंतर प्रयास रत हैं ।
ReplyDeleteनमस्कार मेरा नाम राजेंद्र प्रसादबतिवारीशासकीय प्राथमिक शाला मदरो रीवा।
ReplyDeleteहम देखते हैं कि समाज में सेवा की आशा लड़के से की जाती रही कि लड़का है बड़ा होकर सेवा करेगा।
पर सेवा यदि कोई करता है तो वो है लड़की , कभी माँ के रूप में ,कभी बहन, तो कभी स्त्री के रूप में
लड़का लड़की एक समान
सम समाज का करो निर्माण
Pratyek pariwar ke mata pita ko ladka aur ladki ko ek saman man na chahiye. Unki sampati per ladka aur ladki ko baraber adhikar hona chahiye.beti aur beta ko khoob parhaye tabhi hamara desh aage barhega.
ReplyDeleteBeta Betee Ek saman hai
ReplyDeleteSamay ke Sath ab logo ke soch badal rahi hai ab ladkiyan kisi bhi khetra me ladko se kam nahi hai
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रियाओं में जेंडर शब्द सामाजिक विषय है रूढ़िवादी प्रथा में बेटियों से बेटों को उत्तराधिकारी का दर्जा प्राप्त है यह प्रथा खत्म होनी चाहिए और एक अच्छे समाज के लिए अच्छी सोच विकसित होना चाहिए।हम शिक्षक एक राष्ट्र निर्माता के रूप में जाने जाते हैं ऐसी धारणाओं परंपराओं रीति-रिवाजों को समाप्त कर विद्यालय में शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में बालक एवं बालिकाओं को जागरूक करना हमारा परम कर्तव्य है।
ReplyDeleteहमारा देश सनातन काल से ही बालक और बालिका में भेद करता चला आ रहा है हमें इस रूढ़िवादी परंपरा को समाप्त करना है और बेटा और बेटी में समान अधिकार देने का प्रावधान रखना है और उन्हें इसी प्रकार के का लालन पोषण देना है कि उन्हें समान अधिकार मिले
ReplyDeleteपुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं
ReplyDeleteलड़कियों का शीघ्र विवाह
पुरुष देखभाल करने वाले/पोषण करने वाले
दहेज प्रथा
बेटियों पर बेटों को वरीयता
मासिक धर्म की वर्जनायेँ
लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध
लड़कियाँ परिवार की अस्थायी सदस्य हैं
इन आठ बिन्दुओ में परिवर्तन होना आवश्यक है। समाज में रूढ़िवादी प्रथाओ को भी बदलने की आवश्यकता है जिसमे पुरुष के समान महिलाओं को भी समान अधिकार प्राप्त होगा।
सामाजिक रूढ़िवादिता देश के विकास होने में हमेशा बाधक रही है।हमें इन पर ध्यान देना चाहिए तथा आगे बढ़कर प्रत्येक क्षेत्र में सभी को प्रोत्साहित करना चाहिए।
देश को विश्व के साथ कंधा मिला कर चलने के लिए अवश्यक है कि हम अपने आप को समय के साथ चले
ReplyDeleteउपरोक्त विचार गहरी रुढिवादी विचार धारा को दर्शाता है। अब समाज मे जागरूकता फैल रही है। बेटे बेटी के अंतर को समाज बहिष्कार करने लगा है ।हर क्षेत्र मे बेटियां बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही है जिसके अनेक उदाहरण हम देख रहे है। अब बेटियां परिवार का हिस्सा है। पुरानी बातों को समाज नकार रहा है।
ReplyDelete1 पारिवारिक संपत्ति पर अब समान अधिकार होना चाहिए चाहे पूछ रहे हो या पुत्री बस हमारे समाज को जागरूक
ReplyDeleteहोने की आवश्यकता है
2 आज के समाज में कुछ हद तक विवाह की उम्र में सुधार हुआ है पर आज भी पिछड़े क्षेत्रों में बाल विवाह जैसी रूढ़ियां व्याप्त है इसमें सुधार अति आवश्यक है
3 आज के समाज में महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण करने में सक्षम है
4 दहेज आज के समाज की सबसे बड़ी कुप्रथा है इससे कहीं परिवार बेवजह बलिदान हो जाते हैं दहेज के इस प्रथा को समाप्त करने के लिए देश की युवा पीढ़ी को जागरूक होने की आवश्यकता है
5. हमें पुत्र व पुत्री और सामान वरीयता देना चाहिए और इस रूढ़ी वादी वरीयता को समाप्त करना चाहिए
6. मासिक धर्म आज भी हमारे समाज में महिलाओं को रसोई वह पूजा-पाठ से दूर आदि कुप्रथा है
7. लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर भी समाज में कई प्रकार के प्रश्न चिह्न लग रहे हैं इसमें सुधार की आवश्यकता है
8 लड़कियां परिवार की अस्थाई सदस्य है इस रूढ़ीवादी को हमारे समाज को समाप्त करने की आवश्यकता है
आज के इस युग में रूढ़िवादी प्रथा को समाप्त करना चाहिए और बेटा बेटी को समान अधिकार देना चाहिए
हमेशा से लडकें - लडकियाँ एक समान है हमें इस रूडीवाद सोच को खत्म करके दोनों को समान रूप से प्रोत्साहित करना चाहिए
ReplyDeleteLadka ladki hamasa se ek barabar hai. Hama is rudiwad soch ko katam karka saman dristikon apnana chahiye.
ReplyDeleteBeti Hai To Kal Hai
ReplyDeleteदेश में व्याप्त कुरीतियों और लड़का ल और लड़की में भेदभाव व्याप्त है आज हमारा देश शिक्षित और विकासशील देशों की गिनती में आता है लेकिन समाज में कहीं कुरीतियां आज भी व्याप्त है नंबर 1 जैसे परिवार में अपने घर की पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए लोगों में यह मानसिकता है कि वह यह सोचते हैं कि पुत्र जो होता है उसके पीढ़ी को बढ़ाने वाला तथा कुल का वारिस होता है लेकिन आज के दौर में लड़कियां भी पीछे नहीं है अतः इस त्रुटि बात को बदलना चाहिए।
ReplyDelete2. दूसरे बिंदु पर यह विचार है कि महिलाओं को समानता का हक मिलना चाहिए जिससे वे समाज में फैल रही कुरीतियों और पुरुष से महिला को कम आंकने का जो गलत अवधारणा समाज में है वह दूर हो सके अतः महिलाएं भी आज देश में हर क्षेत्र में बराबरी से अपनी भागीदारी निभानी है
ब्रजकिशोर
ReplyDeleteमोहनपुरा
पीपिलयारसोडा
हमारे देश मे सनातन काल से पुरुष प्रधान व्यवस्था पोषित होती आयी है जिसने महिलाओं के प्रति समाज के नजरिये को भी प्रदुषित कर दिया है , इसलिये रुढिवादी व्यवस्थाओं में समय के साथ परिवर्तन अति आवश्यक है ।
बेटे और बेटियों के बीच असमानता सदियों से चली आ रही है इसका क्या कारण है यह बात सही सही आज तक समझ में नहीं आई परंतु यह निश्चित है कि ऐसा कोई काम नहीं है जिसे बेटे कर सके और बेटियां ना कर सके इसलिए आज इन रूढ़ियों से अलग होकर हमें बेटे और बेटियों को समान अवसर उपलब्ध कराना चाहिए और भेदभाव को पूरी तरह समाप्त करना चाहिए
ReplyDeleteइस प्रकार की सोच और प्रथाओं और विचारों को समय के साथ बदलना बहुत जरूरी है कारण बहुत सारे हैं जो योग्य है उसे ही हर काम में आगे करना चाहिए चाहे वह लड़का हो या लड़कियां
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteलड़की लड़का समान है केवल बोलने से नही होता। हमे यह करके दिखाना होगा यह पूरे समाज की जिम्मेदारी है।
ReplyDeleteवास्तव में स्त्री पुरुष में सामाजिक सांस्कृतिक रूप से अंतर करना सर्वथा बेमानी है। उक्त समस्त विन्दु एक रूढ़िवादिता से अधिक कुछ भी नहीं है। अंतर सिर्फ इतना है जितना प्रकृति माता ने बनाया है। दोनों की आवस्यकता में अंतर हो सकता है किन्तु क्षमता में नहीं, सम्मान में नहीं। मासिक धर्म के समय अचार न छूना, ईश्वर का नाम न लेना आदि रूढ़ियाँ अवैज्ञानिक हैं और इन्हे समाज से मिटाने की आवश्यकता है।
ReplyDeleteपुत्र पुत्री में संपत्ति का समान कानूनी अधिकार होना चाहिए ! सरकार को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए ! लड़कियों का शीघ्र विवाह नहीं करना चाहिए, उसके स्वास्थ्य का और उम्र का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए ! आजकल लड़कियां भी पुरुषों के समान सभी का ख्याल रखती है, और साथ ही साथ पालन पोषण भी करती है ! दहेज प्रथा बंद कराने के लिए समाज की सभी महिलाओं को आगे आना चाहिए ! दहेज देने वाले और दहेज लेने वाले दोनों पर कानूनी कार्रवाई होना चाहिए! बेटे बेटियों को अपनी अपनी समझ के अनुसार वरीयता देना चाहिए ! मासिक धर्म की वर्जन आए एक प्रकार से प्राकृतिक अभिशाप है ! जिसका महिलाओं को पालन करना ही चाहिए ! लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता बढ़ाने के लिए लड़कों के आवारा घूमने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए, तभी ये गतिशीलता बढ़ाई जा सकती है ! लड़कियों को शादी से पूर्व और शादी के पश्चात हमेशा हमेशा के लिए घर का स्थाई सदस्य माना जाना चाहिए ! क्योंकि घर के सारे शुभ अशुभ कार्य महिलाओं के बिना संभव नहीं है ! धन्यवाद ! शासकीय माध्यमिक विद्यालय रूपाबेड़ी !
ReplyDeleteHamare samaj mei ladka ladke mei bhedbhav keya jata hai aisa nhi hona chaheye . Samay badal chuka hai logo ko apni soch badal lene chaheye. Har pariwar ke mata pita ko ladka ladke ko sampatti mei barabar adhikaar hona chahiye
ReplyDeleteलैंगिक समानता एवं भेदभाव रखने वाले गतिविधि में अंकित इन सभी संस्थानों विचारों एवं प्रथाओं को संवैधानिक/कानूनी रूप से पूरी तरह से समाप्त किया जा चुका है ।
ReplyDeleteचुकी कानून बनाकर किसी विचार एवं व्यवहार को तत्काल रूप से परिवर्तित करना जो सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी दृढ़ हो थोड़ा कठिन होता है इसलिए
बस हमें इसे अपने व्यवहार में भी पूरी तरह से लागू करने की आवश्यकता है ताकि वास्तविक रुप से एक समरस और समान लैंगिक अधिकार वाले समाज का निर्माण हो सके।
अरुण प्रकाश कौशिक, (CAC)
जन शिक्षा केंद्र कन्या बैरसिया
जिला भोपाल
दहेज प्रथा का इतिहास तो काफी पुराना है मगर मौजूदा वक्त में यह एक खतरनाक बीमारी का रूप ले चुके हैं हालांकि इसके खिलाफ कानून तो है किंतु यह प्रथा भारत के कई स्थानों पर अभी भी देखी जा सकती है देश में औसतन हर 1 घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती है राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से वर्ष 2012 में दहेज हत्या के 8233 मामले सामने आए हैं आंकड़ों का औसत बताता है कि प्रत्येक घंटे में एक महिला दहेज की बलि चढ़ती है जबकि दहेज निषेध अधिनियम 1961 के अनुसार दहेज लेने देने या इसके लेनदेन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और ₹15000 के जुर्माने का प्रावधान है किंतु इस कुरीति का अभी भी अंत नहीं हुआ है अभी भी कई महिलाओं को इसका सामना करना पड़ता है
ReplyDeleteहमें इस कुरीति से बचने के लिए लड़कियों को शिक्षित करना पड़ेगा जिससे अगर उनके किसी भी अधिकारों का हनन होता है तो वह अपने हक के लिए लड़ने में सक्षम होगी
आज के जमाने में जो जेंडर से संबंधित जो समस्याएं हैं वह आज के परिदृश्य के अनुकूल नहीं है जो भी आज जेंडर को लेकर के महिला पुरुष लड़का या लड़की या अन्य किसी जेंडर के साथ में जो व्यवहार किया जाता है वह आज की आवश्यकता परिस्थिति के अनुकूल नहीं है चाहे प्राचीन काल में जिम नियमों का निर्माण किया गया था जब अनुकूल रहे हो लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य मैं बे बिल्कुल भी समाज कल्याण कारी नहीं है और यह समाज में प्रेम सद्भाव समानता सहयोग आदि उत्पन्न करने के स्थान पर वैमनस्य अशांति भेदभाव हीन भावना आदि का निर्माण करते हैं अतः आज के परिपेक्ष में हमें यह सोचना होगा क्या हजारों वर्ष पहले बनाए गए नियम आज की आवश्यकता को कहां तक पूर्ण करते हैं यदि वह पूर्ण नहीं करते हैं तो हमें इन नियमों को बदलने की आवश्यकता है लड़का लड़की आदमी औरत या किसी प्रकार के लैंगिक भेदभाव को मिटाकर ना केवल अधिकार बल्कि उनकी समानता के लिए कार्य करना चाहिए और सभी को एक समान अवसर उपलब्ध कराए जाने की उम्मीद करता हूं और मैं भी प्रयास करता रहूंगा इन परिस्थितियों में सुधार आए
ReplyDeleteपैतृक संपत्ति मे समान अधिकार होना चाहिए ।
ReplyDelete(1) पुत्र पारिवारिक उतराधिकारी पहले से चला आता रहा है परन्तु अब ऐसा नहीं है क्यो की शिक्षा का विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक परिवर्तन के कारण समान आधीकर है।
ReplyDelete(2)पहले मासिक धर्म सुरु होते ही विवाह की योजना बना ली जाती थी लेकिन अब 18 वर्ष निर्धारित कर दी गई है।
(3) पहले पुरुष प्रधान होता था जिसकी जिम्मेदारी परिवार की देख भाल और भरण पोषड की होती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है बदलाव के साथ साथ सभी बेयस्क सदस्यों की भी जिम्मेदारी बनती है।
लैंगिक समानता एवं भेदभाव रखने वाले गतिविधि में अंकित इन सभी संस्थानों विचारों एवं प्रथाओं को संवैधानिक/कानूनी रूप से पूरी तरह से समाप्त किया जा चुका है ।
चुकी कानून बनाकर किसी विचार एवं व्यवहार को तत्काल रूप से परिवर्तित करना जो सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी दृढ़ हो थोड़ा कठिन होता है इसलिए
बस हमें इसे अपने व्यवहार में भी पूरी तरह से लागू करने की आवश्यकता है ताकि वास्तविक रुप से एक समरस और समान लैंगिक अधिकार वाले समाज का निर्माण हो सके।
Ashok Wanhere DIET Khandwa
(1) पुत्र पारिवारिक उतराधिकारी पहले से चला आता रहा है परन्तु अब ऐसा नहीं है क्यो की शिक्षा का विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक परिवर्तन के कारण समान आधीकर है।
ReplyDelete(2)पहले मासिक धर्म सुरु होते ही विवाह की योजना बना ली जाती थी लेकिन अब 18 वर्ष निर्धारित कर दी गई है।
(3) पहले पुरुष प्रधान होता था जिसकी जिम्मेदारी परिवार की देख भाल और भरण पोषड की होती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है बदलाव के साथ साथ सभी बेयस्क सदस्यों की भी जिम्मेदारी बनती है।
लैंगिक समानता एवं भेदभाव रखने वाले गतिविधि में अंकित इन सभी संस्थानों विचारों एवं प्रथाओं को संवैधानिक/कानूनी रूप से पूरी तरह से समाप्त किया जा चुका है ।
चुकी कानून बनाकर किसी विचार एवं व्यवहार को तत्काल रूप से परिवर्तित करना जो सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी दृढ़ हो थोड़ा कठिन होता है इसलिए
बस हमें इसे अपने व्यवहार में भी पूरी तरह से लागू करने की आवश्यकता है ताकि वास्तविक रुप से एक समरस और समान लैंगिक अधिकार वाले समाज का निर्माण हो सके।
Ashok Wanhere DIET Khandwa
हमेशा से ही लडके लडकिया समान हैं जब ईश्वर ने इनमे भेद नही किया तो हम कौन होते हैंदोनो को एक समान अवसर देने चाहिए
ReplyDeleteladkiyon ko maths me dyan dekar padai karke uche pado par karya karna chahiye
ReplyDeleteयह एक परस्पर रूढ़िवादी सोच है और हमें इसको पूर्णता समाप्त करना चाहिए
ReplyDeleteहमें समाज में व्याप्त रूढ़ीवादी परंपराओं को बदलना होगा लड़का और लड़की को एक समान अवसर देकर उनकी प्रतिभा को निखारना होगा।
ReplyDeleteRakesh panthi primary teacher Khairoda bagrod block Ganj Basoda district Vidisha unique I'd by7721
मैकाले की शिक्षा पद्धति और पाश्चात्य सभ्यता/संस्कृति ने हमारी मानसिकता को विकृत कर दिया है।युवा पीढ़ी भ्रमित और दिशाहीन है।जवानों जवानी जवानी नहीं है जवानी के पौधों में संस्कार का पानी नहीं है। फलस्वरूप लड़कियों/महिलाओं के प्रति असुरक्षा की भावना बनी रहती। वैसे शासन की योजनाओं/कानूनों से समाज में जनजागृति तो आई है। लड़का-लड़की, महिला-पुरूष का भेदभाव कुछ हद तक समाप्त सा हो गया है। रमाकान्त पाराशर माध्यमिक शाला हापला JSK बड़ागांव गूजर खण्डवा मध्यप्रदेश
ReplyDelete1) पुत्र पारिवारिक उतराधिकारी पहले से चला आता रहा है परन्तु अब ऐसा नहीं है क्यो की इस विषय पर नये कानून बनाए गए हैं एवं उत्तराधिकार में महिलाओं को समान अधिकार प्रदान किये गए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम यह जानकारी प्रत्येक व्यक्ति तक पहुचाए जिसके लिये सामाजिक विज्ञान की पुुस्तकों में नवीन अध्यायों को जोडा जाना चाहिए
ReplyDelete(2)पहले मासिक धर्म सुरु होते ही विवाह की योजना बना ली जाती थी लेकिन अब 18 वर्ष निर्धारित कर दी गई है।
(3) पहले पुरुष प्रधान होता था जिसकी जिम्मेदारी परिवार की देख भाल और भरण पोषण की होती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है बदलाव के साथ साथ सभी वयस्क सदस्यों की भी जिम्मेदारी बनती है।
(4)पहले दहेज प्रथा चलायमान था अब रोक लगाई जा रहीी है।
(5)पहले बेटियों को बोझ की भावना से देखा जाता था और बेटों को उच्च भावनाओं से देखा जाता था बदलाव होने से समान भावना से देखा जाता है।
(6) शिक्षा के कमी के कारण मासिक धर्म में रहते हुए रसोईघर , पूजा स्थल,सार्वजनिक स्थल पर जाने में मनाही थी परन्तु अब ऐसा नहीं है।
(7) लड़कियों के सरिरिक विकास होने पर घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था परन्तु अब ऐसा नहीं है।
(8)पहले का मानना था कि लड़कियों परिवार की अस्थाई सदस्य है क्यो की वह दूसरे घर चले जाएगी परन्तु अब समानता का आधिकार है।
With the change of time we should change our mindset and treat boys and girls equally.girl should be the equal owner of parents property . Government is taking steps to emerge changes. We should also help in doing so.
ReplyDeleteओमप्रकाश पाटीदार प्रा.शा.नाँदखेड़ा रैय्यत विकासखंड पुनासा जिला खंडवा
ReplyDelete1.सम्पत्ति पर पुत्र और पुत्री दोनो का समान अधिकार है और अब इस संबंध में कानून भी बन गया है।2.लड़कियो का कम उम्र में विवाह करना आज भी कुछ समाज मे रूढ़ी बना हुआ है।3.दहेज प्रथा समाज के लिये कलंक है यह ऐसी कुप्रथा है जिसने कई परिवारों को कर्ज में धकेला है।4.बेटो को वरीयता देना गलत है बेटा बेटी दोनो को समान समझना ही शिक्षित होने का परिचायक है।
गतिविधि मे दर्शाये गये समस्त विचारों तथा मान्यताओं का खण्डन करते हुये संविधान मे दिये गये प्रावधानों के अनुसार अपने घर की बेटी को ,बेटे के समान बराबरी के हक,अधिकार व सम्पत्ति मे समान हिस्सा देकर पुरानी धारणाओं,, कुप्रथाओं, एवं लैंगिक भेदभाव को समाप्त किया जा सकता है।--लक्ष्मी नारायण जाटव मा.शिक्षक,शा.मा.वि. ओडपुरा घाटीगांव ग्वालियर म.प्र.
ReplyDeleteलड़के, लड़कियां दोनों से समान व्यवहार होना चाहिए। दोनो का संपत्ति में बराबर अधिकार है। दोनो को परिवार में निर्णय लेने का हक़ है। पुरुषों की तरह महिलाऐं भी भरण पोषण करने में सक्षम है ंं
ReplyDeleteलिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
दहेज प्रथा को समाप्त करना चाहिए। लड़के -लड़कियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। उन्हें बराबरी का सम्मान देना चाहिए।
लड़के लड़कियां दोनों से समान व्यवहार होना चाहिए। दोनो का संपत्ति में बराबर अधिकार है। दोनो को परिवार में निर्णय लेने का हक़ है। महिलाऐं भी भरण पोषण करने में सक्षम है ंं
ReplyDeleteलिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
दहेज प्रथा को समाप्त करना चाहिए।
मैं बृज बिहारी शुक्ल, माध्यमिक शिक्षक, शासकीय हाई स्कूल बुढ़िया, जिला-रीवाँ, मध्यप्रदेश।
ReplyDeleteमेरा सोचना है की लड़की तथा लड़के को एक समान समझा जाना चाहिए|
दोनों को बराबर का दर्जा मिलना चाहिए| दोनों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए|
अगर हम प्राचीन काल की बात करें तो उस समय तो लड़को और लड़कियों में बहुत भेदभाव होता था| लोगों की सोच थी के एक पुत्र अवश्य होना चाहिए| उनका मानना होता था की पुत्र हमारे खानदान को आगे बढ़ाएगा| यह भी माना जाता था के बेटा हमारा अंतिम संस्कार करेगा| लेकिन हमारा तर्क यह है की इस प्रकार की सोच गलत थी|
अब सब समझते हैं की केवल लड़का होने से ही अंतिम संस्कार नहीं होगा|पहले की ये सोच गलत थी जहाँ बेटियों को बोझ समझा जाता था| उनके जन्म के समय ही उनकी शादी की जिम्मेदारियों के बारे में सोचा जाने लगता था दूसरी तरफ, आज के समय में लड़कियाँ भी लडको की बराबरी करने लगी है| वे समान रूप से अपना परिवार चलाने की क्षमता रखती हैं|
आज के समय में पहले से बहुत बदलाव आया है| अगर कहा जाये के लड़का नाम रोशन करेगा तो लड़कियां भी किसी से कम नहीं| आज लडकिया लडको के समान ही काम कर रही हैं|
यदि बात की जाए लड़कियों की शिक्षा की, तो पहले लड़कियां अशिक्षित हुआ करती थी, सिर्फ घर के कार्य करती थी| अगर कोई लड़की पढना चाहती थी तो सवाल रहता था की लड़की पढ़कर क्या करेगी? स्कूल की पढाई यदि करने दी जाती थी, तब भी कॉलेज की शिक्षा उन्हें नसीब नही होती थी|दूसरी ओर लडको को खूब पढ़ाया जाता था लड़कियों को शिक्षा न देने के कारण भी अनुचित होते थे- लड़की ने आखिर में शादी ही तो करनी है, लड़का लड़की से ज्यादा पढ़ा-लिखा ढूँढना पड़ेगा परंतु आज सभी को बराबर रूप से शिक्षा प्रदान की जा रही है।
लड़कियां भी अपने परिवार एवं माता पिता का देखभाल कर रही है।
प्राचीन काल मे ज्यादातर हिस्से में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के साथ अछूतों के तरह व्यवहार किया जाता था जबकि यह एक सहज वैज्ञानिक एवं शारीरिक क्रिया है परन्तु अब इसमें जागरूकता आ गयी है।
अब लड़कियों को भी बराबरी का अवसर प्राप्त हो रहा है। वे हर जगह बराबर पुरुषों के साथ कंधे पर कंधा मिल हर क्षेत्र में अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन दिखा रही है।
आज सरकार एवं समाज के सहयोग से एवं मौजूदा कानून के कारण समाज में इन मानदंडों का खत्म करने में काफी हद तक सफलता मिल रही है शिक्षा से जागरूकता आई है परंतु फिर भी पिछड़े एवं निर्धन क्षेत्रों में अभी इन परंपरागत रूढ़ियों में बदलाव नहीं आ पाया है inक्षेत्रों में अधिक प्रयास और जागरूकता लाने की आवश्यकता है
ReplyDeleteLadke aur ladkiyon ko saman Adhikar prapt hona chahie
ReplyDeleteलड़कियां हर वो काम कर सकती है तो लड़के कर सकते है इसलिए हर क्षेत्र में दोनों को समान अधिकार और दर्जा होना चाहिए।
ReplyDelete।राजकुमार शर्मा मा वि नौहरी कलां।
लड़के लड़कियों को समान अवसर देना चाहिए ।हमे अपनी सोच बदलनी चाहिए क्योंकिभगवान ने हमे हमारे अन्दर सभी समान है। हमे भेदभाव नहीं करना चाहिए ।
ReplyDeleteइन सभी रूढ़ि वादियो और कुरीतियों का कारण समाज में शिक्षा का अभाव है।
ReplyDeleteजिस समाज में शिक्षित महिलाओं की कमी है, उस समाज में महिलाएं ऐसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकती है। जरूरत हैं देश की समस्त महिलाओं को अनिवार्यत शिक्षित करना ताकि वह इन कुरीतियों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद कर सके।
नमस्कार मैं सुंदरलाल सूर्यवंशी निष्ठा के चौथे प्रशिक्षण में अपने विचार रख रहा हूं ।
ReplyDeleteकि सामाजिक मानदंड और व्यवहार में पुत्र और पुत्री में जो अंतर समझा जाता है , वह पारंपरिक रवैया है ।इसमें जैसे पुत्र को पारिवारिक संपत्ति पर अधिकार का होना। लड़कियों का शीघ्र विवाह होना उसमें दहेज प्रथा एवं सामाजिक वातावरण ही इस प्रकार का होता है कि पुरुष को महिलाओं से कुछ समझा जाता है यहां पर जबकि शिक्षा के समान अधिकार प्राप्त है तो ऐसी स्थिति में लड़का एवं लड़की लड़कियों दोनों को ही समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए।
Sabhi religion ko lardki aur lardko may difference katam hona chahiye. Lardki aur lardke dono ek saman hai
ReplyDeleteइन सभी रूढ़ि वादियो और कुरीतियों का कारण समाज में शिक्षा का अभाव है।
ReplyDeleteजिस समाज में शिक्षित महिलाओं की कमी है, उस समाज में महिलाएं ऐसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकती है। जरूरत हैं देश की समस्त महिलाओं को अनिवार्यत शिक्षित करना ताकि वह इन कुरीतियों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद कर सके।
लड़कियों को पराया धन कभी भी नहीं समझना चाहिए। वाल विवाह प्रथा बन्द होनी चाहिए। समान अधिकार मिलना चाहिए। महिलायें।रूढ़ीवादिता समाप्त होनी चाहिए।
ReplyDeleteपारिवारिक संपत्ति पर बेटा बेटी दोनो का समान अधिकार है । शिक्षा के प्रसार द्वारा बेटी को कमजोर समझना, कम उम्र मे शादी कर देना, बेटी के निर्णय को न स्वीकारने, मासिक धर्म के दौरान उन्हे अलग रखना आदि धारणाओं पर कुछ हद तक रोक हुयी है । शिक्षा इन कुरीतियों को दूर करने का सशक्त माध्यम है । -- --जे के मंसूरे माध्यमिक शिक्षक किरनापुर बालाघाट ।
ReplyDeleteGirls should be weight equal to boys.Age old derogatory convictions should be criticised regarding their physical and emotional issues.There should be a positive outlook towards women.
ReplyDeleteबालक बालिकाएं दोनों एक समान हैं इसलिए सभी प्रकार के अधिकार बालक को जो दिए जाते हैं उतनी ही बालिकाओं को भी दी जानी चाहिए समाज आज भी बालक बालिकाओं में भेदभाव करता है बालक बालिकाओं को बिल्कुल एक समान अधिकार मिलना चाहिए किसी प्रकार का भेदभाव बिल्कुल नहीं होना चाहिए और यह जितने बिंदु दिए हैं हम इसमें सहमत हैं
ReplyDeleteपुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं
ReplyDeleteलड़कियों का शीघ्र विवाह
पुरुष देखभाल करने वाले/पोषण करने वाले
दहेज प्रथा
बेटियों पर बेटों को वरीयता
मासिक धर्म की वर्जनायेँ
लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध
लड़कियाँ परिवार की अस्थायी सदस्य हैं
उपर्युक्त सभी धारणाओं और प्रथाओं को बदलने की महती आवश्यकता है
और हमारी सम्माननीय विधायिका द्वारा समय-समय पर आवश्यक बदलाव किए गए हैं जो कि बहुत ही प्रसंशनीय है
परंतु जब तक लोगों में इससे संबंधित वांछित जागरूकता नहीं आएगी तब तक सुखद परिणाम मिलने में थोड़ी दिक्कत तो रहेगी...
पर फिर भी उम्मीद की जा सकती हैं कि धीरे-धीरे ही सही पर अच्छे परिणाम जरूर आएंगे...
धन्यवाद
मांगीलाल मीणा
शा. मा. वि. , छाछखेड़ी
नीमच (म. प्र.)
...इन्हें हम कुप्रथाएँ भी कह सकते हैं, इनको बदलने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचती है....
ReplyDeleteलड़कियों को पराया धन कभी भी नहीं समझना चाहिए। वाल विवाह प्रथा बन्द होनी चाहिए। समान अधिकार मिलना चाहिए। महिलायें।रूढ़ीवादिता समाप्त होनी चाहिए।
ReplyDeleteसन्ध्या गौतम(मा. शिक्षक)
ReplyDeleteजिला:-सतना(म.प्र.)
मेरे विचार से गतिविधि में दी गई रूढ़िवादी विचार धारा को बदलने की जरूरत इसलिए है क्योंकि जब तक सम्पति में सिर्फ लड़के का हक,लड़कियों का शीघ्र विवाह, दहेज प्रथा.....आदि जैसी कुरीतियां समाज में व्याप्त रहेंगी तब तक हमारा समाज पुरूष प्रधान समाज ही रहेगा चाहे दिखावा कुछ भी होता रहे।लड़कियों को उनका अधिकार और सम्मान दिलाकर ही समाज में बराबरी कायम की जा सकती है।
सभी को समान रूप से शैक्षणिक सामाजिक तथा आर्थिक अवसर प्राप्त होना आवश्यक है
ReplyDeleteमैं रविंद्र बंजारा प्राथमिक शिक्षक श्यामटोरा जन शिक्षा केंद्र राजपुर तहसील एवं जिला अशोकनगर मध्य प्रदेश* पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं -वर्तमान में पुत्र पुत्री को समानता का अधिकार है हमारे देश में पुरुषों को ज्यादा प्रधानता शुरू से ही दी जा रही है इस क्रम में महिलाएं काफी पिछड़ गई है लेकिन वर्तमान में काफी सुधार देखा गया है जेंडर असमानता काफी हद तक दूर हुई है फिर भी और प्रयास तेज करने की आवश्यकता है जिससे समाज में समानता का स्पष्ट भाव दिखाई दे *पुराने समय में लड़कियों का शीघ्र विवाह कर दिया जाता था वर्तमान में 18 वर्ष के पश्चात यह संभव है लेकिन कहीं अपवाद स्वरूप ऐसे उदाहरण देखने को आज भी मिलते हैं उसमें भी हमें जागरूकता दिखाने की आवश्यकता है *पुरुष देखभाल करने वाले पोषण करने वाले ऐसा बिल्कुल भी नहीं है महिलाएं सबसे ज्यादा देखभाल एवं पोषण का कार्य वर्तमान में कर रही है और करती आई है यह केवल पुरुष मानसिकता है* दहेज प्रथा* बेटियां बेटों की को वरीयता *मासिक धर्म की वर्जना *लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध *लड़कियां परिवार के अस्थाई सदस्य यह सब कुप्रथा बहुत समय से चली आ रहे हैं लेकिन वर्तमान में समावेशी शिक्षा के प्रयास से एवं गुणवत्ता युक्त शिक्षा से काफी हद तक इसमें बदलाव नई समझ के उदाहरण देख कर हम अपने समाज को और आप नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं जिससे हम आपने स्वस्थ समाज का निर्माण कर पाए
ReplyDeleteपिछले सालों से इस दिशा में बहुत अधिक और सार्थक प्रयास हुए हैं। अब शासन स्तर पर लड़का और लड़की में समानता का व्यवहार किया जा रहा है। आने वाले समय में और परिवर्तन आएगा।
ReplyDeleteअनिल कुमार साहू
माध्यमिक शिक्षक
शासकीय माध्यमिक शाला घाना टुंडा
विकासखण्ड उदयपुरा जिला रायसेन मध्य प्रदेश
Always, boys and girls are the same, we should end this Rudibad thinking and encourage them both equally.
ReplyDelete(1)अब पुत्रियों को भी पैतृक सम्पत्ति में बराबरी का हक है।
ReplyDelete(2) अब पुत्रियों का विवाह शिक्षा पूरी होने पर एवं उनकी सहमति से ही होने लगा है।
(3) पुत्रियां भी शिक्षित और स्वावलंबी हैं अतः वे देखभाल भी कर सकतीं हैं।
(4) दहेज प्रथा बंद - सी हो गई है । समझदार पिता दहेज के इच्छुक परिवार में अपनी बेटी को देखा ही नही।
(5) बेटे और बेटियां हमारी दोनों आंखों के समान बराबर हैं ।
(6) मासिक धर्म की वर्जनाएं शारीरिक आराम की दृष्टि से ही ऐच्छिक रह गई हैं।(7) लड़कियां अब शारीरिक रूप से काफी गतिशील हो गई हैं । वे खेलकूद और अन्य प्रतियोगिताओं में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती हैं।
(8) शादी के बाद वे ससुराल की सदस्य भी बन जाती हैं। और यह कई दृष्टियों से ठीक भी है , लेकिन समय-समय पर पीहर में जरूर उपस्थित रहतीं हैं।
जमाना बदल गया है साहिबान !!!
अब पहले जैसा बहुत कुछ नहीं रहा है।
उपरोक्त कथनों पर जब हम विचार करते हैं ,तब हम पाते हैं कि वर्तमान समय में हमारे समाज, प्रथाओं तथा विचारों में लगातार परिवर्तन आते जा रहे हैं|
ReplyDelete1. वर्तमान समय में पुत्र हो या पुत्री दोनों का पैतृक संपत्ति में समान अधिकार है|
2. वर्तमान में बालिकाओं की शिक्षा तथा उनका अपने पैरों पर खड़े होने पर लगातार जोर दिया जा रहा है इसमें शासन के द्वारा भी विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही है तथा पालको को भी इसके लिए जागरूक किया जा रहा है |कुछ पिछड़े इलाकों में अभी भी बालिकाओं के शीघ्र विवाह पर जोर दिया जाता है वहां सुधार की आवश्यकता है|
3. पुत्र को पोषण करने वाला माना जाता था परंतु आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए पुत्रियां अपनी पारिवारिक तथा सामाजिक जिम्मेदारियों को बहुत ही अच्छी तरह से निभा रही है|
4. बेटी कितनी ही होनहार क्यों ना हो जब उसके विवाह की बात आती है तब उपहार के नाम पर दहेज की बात जरूर शामिल होती है चूंकि दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनन अपराध है, अतः हमारा भी दायित्व है कि इस कुरीति को समाज से दूर करने के लिए हम सभी मिलकर पूर्ण प्रयास करें|
5. बेटियों पर बेटों को वरीयता देना एक रूढ़िवादी सोच है जिसे हमें बदलना होगा क्योंकि वर्तमान समय में देखा जाए तो बेटियां अपने कर्तव्यों के निर्वहन में कोई कमी नहीं रखती हैं| वैसे तो बेटे और बेटी में तुलना नहीं की जानी चाहिए क्योंकि दोनों ही समान है|
6. मासिक धर्म संबंधी समस्याएं तो आज भी प्रचलित है , जिनमें परिवर्तन आवश्यक है|
7. बालिकाओं की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध- इस पर मेरा विचार है कि इसे केवल बालिकाओं के लिए नहीं होना चाहिए और ना ही प्रतिबंध के तौर पर लिया जाना चाहिए, बल्कि बालक हो या बालिका हमें उनमें यह संस्कार डालना चाहिए कि यदि कोई भी बाहर किसी काम से जाता है, तो वह अपने से बड़ों को बता कर जाए ताकि बड़ों को बच्चों के विषय में जानकारी रहे| यह उनकी सुरक्षा की दृष्टि से भी आवश्यक है|
8. आज भी यह मान्यता है कि लड़कियां पराया धन होती हैं |विवाह के बाद उन्हें इस घर से जाना ही है अतः वह परिवार की अस्थाई सदस्य है इस सोच को भी बदलना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि विवाह के बाद भी बेटियों का परिवार पर उतना ही अधिकार है जितना कि बेटों का|
Beta beti dono ko saman adhikar milna chahiye
ReplyDeleteरूढ़िवादी प्रथा को समाप्त करना चाहिए और बेटा बेटी को समान अधिकार देना चाहिए
ReplyDeleteरुढिवादी सामाजिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन आवश्यक है ।
ReplyDeleteजेंडर रूढ़िवादिता को समाप्त करने के लिए हमें उपयुक्त संस्थानों विचारों और प्रथाओं को बदलना अत्यंत आवश्यक है ताकि जेंडर भेज ना हो सके और महिला पुरुष को समान अधिकार मिल सके समाज में दोनों को समान सम्मान मिले
ReplyDeleteभारत देश मे प्राचीन समय से पुरुष प्रधान व्यवस्था पोषित होती आयी है जिसने महिलाओं के प्रति समाज के नजरिये को भी प्रदुषित कर दिया है , परंतु वर्तमान परिवेश के बदलाव को देखते हुए इस रुढिवादी व्यवस्थाओं में समय के साथ परिवर्तन अति आवश्यक है ।
ReplyDeleteहर समाज एक पूर्व नियोजित व्यवस्था के अनुसार ही चलता है, चूंकि हर समाज की अपनी अपनी मान्यताएं एवं व्यवस्थाएं है जिसमें जेंडर भेद आसानी से दिख जाता है, इसलिए स्कूल एवम् सामाजिक संस्थाओं द्वारा प्रयास कर प्रत्येक समाज को उसकी मान्यताओं तथा विश्वास के आधार पर समाजी करण के नए आयामों से जोड़कर जेंडर भेदभाव को कम करने की कोशिश करनी चाहिए।
ReplyDeleteरूढ़िवादिता से हट कर जेंडर संबंधित समस्या का निदान किया जा सकता है अब पहले से बदलाव आ रहा है
ReplyDeleteYe sari rudivadi prathay band honi chahiye shikhan adhigam k anusar saman behaviour hona chahiye
ReplyDeleteलड़के लड़कियां दोनों से समान व्यवहार होना चाहिए। दोनो का संपत्ति में बराबर अधिकार है। दोनो को परिवार में निर्णय लेने का हक़ है। महिलाऐं भी भरण पोषण करने में सक्षम है ंं
ReplyDeleteलिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
उपरोक्त रुढ़िवादी विचारधाराऐं/प्रथाएँ, प्राचीन काल से पुरुष सत्तात्मक समाज द्वारा अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए स्थापित की गई थी, जिनकी जड़ आज भी कहीं न कहीं लोगों की मानसिकता में बसी हुई है, परंतु समाज का दृष्टिकोण वर्तमान में हो रहे बदलाव और जेंडर संवेदनशीलता के कारण बदल रहा है .समान अवसर, प्रोत्साहन और परिवारिक पृष्ठभूमि में स्त्री की महत्ता से इन कुप्रथाओं /विचार धाराओं को आसानी से बदला जा सकता है
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ReplyDeleteलड़के लड़कियां दोनों से समान व्यवहार होना चाहिए। दोनो का संपत्ति में बराबर अधिकार है। दोनो को परिवार में निर्णय लेने का हक़ है। महिलाऐं भी भरण पोषण करने में सक्षम है ंं
लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
पुरानी रूढ़िवादी प्रथाओं को बदलने की आवश्यकता है ताकि महिलाओ और पुरषों के समान अधिकार मिल सके पारिवारिक संपत्ति मे महिलाओ को समान हिस्सा मिले दहेज़ प्रथा बंद हो हर क्षेत्र मे महिलाओ को भी पुरषों के समान अवसर मिले
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ReplyDeleteलड़के लड़कियां दोनों से समान व्यवहार होना चाहिए। दोनो का संपत्ति में बराबर अधिकार है। दोनो को परिवार में निर्णय लेने का हक़ है। महिलाऐं भी भरण पोषण करने में सक्षम है ंं
लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
Vicharon AVN prathom ko badalkar ek sukhi aur sampann ne aatmhatya Pradesh har Drishti se natak samajik arthik sukhi aur Raat mein Dard nirdesh sukhi
ReplyDeleteजितेन्द्र वर्मा
ReplyDeleteप्राथमिक शिक्षक
शा .प्राथमिक विद्यालय मोमदिया
मोंगरगाँव भगवानपुरा जिला खरगोन मध्यप्रदेश।
गतिविधि-4 सामाजिक मापदंड ओर व्यवहार का विवरण
(1) .परिवार संपत्ति पर अब समान अधिकार होता है, चाहे वह लडका हो या लडकी बस हमारे समाज को जागरूक होने की आवश्यकता है।
(2).आज के समाज में कुछ हद तक विवाह की उम्र में सुधार हुआ है पर आज भी कुछ पिछडे क्षेत्रों में बाल विवाह जैसी रुढियों मै व्याप्त है. इसमें सुधार करना अति आवश्यक है।
(3).आज के समाज में रुढियों को पीछे छोड़ महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण करने में समक्ष हैं इस पर थोड़ा ओर जोर देने की आवश्यकता है।
(4).आज के समाज की सबसे बड़ी कुप्रथा हैं. दहेज उत्पीड़न इसके इससे कई परिवार बेवजह बलिदान हो जाते है, उसमें सुधार हमारे देश व राज्य की युवा पीढ़ी को ओर आम नागरिक को जागरुकता अभियान फैलाने की आवश्यकता है।
(5).पुत्र व पुत्री मे वरीयता एक रुढिवादी प्रथा है इसे बदलने की आवश्यकता है, इसमें पुत्र, पुत्री को समान रूप से वरीयता देना चाहिए।
(6).मासिक धर्म आज हमारा समाज रुढिवादी प्रथाओ से जूझ रहा है। आज भी हमारे समाज में महिलाओं को रसोई घर से दुर, पुजा पाठ से दुर आदि कुप्रथा व्याप्तं हैं. इसमें सुधार व जागरूकता अभियान की आवश्यकता है।
(7).लडकियों कि शारीरीक गतिविधियां व गतिशीलता पर भी समाज में कई तरह के प्रश्न चलने लगा रहे हैं कि इसमें बहुत अधिक सुधार की आवश्यकता है. जो कि बहुत ही आवश्यक है।
(8).लडकियों को परिवार की अस्थाई सदस्य माना जाता है,यह समाज की रुढिवादीता को हमारे समाज को समाप्त करना चाहिए, इस पर शिक्षित होने की आवश्यकता है।
रुढिवादी प्रथाऔ को समाप्त करना चाहिए और बेटे व बेटी को एक समान रूप से अधिकार देना चाहिए।
जय हिंद
जय भारत।
नमस्कार साथियों,
ReplyDeleteनिष्ठा प्रशिक्षण के चतुर्थ माड्यूल शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर आयामों की प्रासंगिकता में अपने विचार रख रहा हूँ, हो सकता है आप इनसे सहमत हों या ना हों -
1:- पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं पूर्व में हमारे देश में ऐसा कानून था कि अपनी पारिवारिक संपत्ति में केवल पुत्र ही नाम होता था किंतु अब ऐसा नही है अब पुत्र हो चाहे पुत्री, सभी को पारिवारिक संपत्ति में सामान अधिककार है।
2:- लड़कियों का शीघ्र विवाह - पहले लोगों के शिक्षित न होने के कारण लड़कियों का विवाह, जल्दी कर दिया जाता था, भले ही इस निर्णय से बालिकाओं के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता था, इस पर विचार ही नही किया जाता था, किंतु अब बदलाव नजर आने लगा है परंतु पिछड़े इलाकों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है।
3:- पुरुष देखभाल करने वाले/ पोषण करने वाले- महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व दिया जाता है पुरुष ही परिवार का भरण पोषण करने वाले देखभाल करने वाले माने जाते थे किंतु वर्तमान में यह रूढ़िवादिता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है अब महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण एवं देखभाल करने लगी हैं
4:- दहेज प्रथा- दहेज प्रथा वास्तव में अभी भी विकट समस्या है। आज भी पढ़े लिखे शिक्षित होने के बावजूद भी कई लोग दहेज प्रथा को स्वीकार करते हैं , ना जाने प्रतिदिन देश में कितनी बेटियां दहेज प्रथा की बलि चढ़ जाती हैं। इस ओर हम सबको मिलकर के बहुत प्रयास करना है ताकि यह दानवरूपी प्रथा किसी बेटी को ना निगल पाए।
5:-बेटियों पर बेटों को वरीयता- बेटियों की तुलना में आज बेटों को ज्यादा वरीयता दी जाती है। जबकि मैंने अपने अनुभव में देखा है बेटा भले ही मां-बाप का साथ छोड़ दें ,उनके सुख-दुख में उनका भागीदार ना बने, किंतु बेटियां कभी अपने मां बाप को नहीं भूलती। हमेशा उनका यथासंभव साथ देती रहती हैं अतः इस रूढ़िवादी सोच को बदल कर बेटा और बेटी दोनों को समान वरीयता दी जानी चाहिए।
6:-मासिकधर्म की वर्जनायें- आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में मासिक धर्म को शारीरिक अशुद्धता की दृष्टि से देखा जाता है। कहीं-कहीं मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को रसोईघर, पूजनस्थलों, और कई कार्यों में महिलाओं को भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
7:-लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध- लड़कों की तुलना में लड़कियों को बाहर घूमने फिरने की आजादी नहीं रहती है । लड़कियों को आज भी घर पर ही कैद होकर रहना पड़ता है। लड़कियां यदि बाहर किसी काम से जाएं तो मां-बाप क्यों, किसलिए, क्या काम, आदि प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं। अब शिक्षा के साथ सुधार नजर आ रहा है।
8:- लड़कियां परिवार की अस्थायी सदस्य हैं- लड़कियों को रूढ़िवादी सोच के अनुसार पराया धन माना जाता है और लड़कियां कि जब तक शादी नहीं होती तब तक भी हो उस परिवार की सदस्य हैं और शादी के बाद बेटी को परायी अमानत मान लिया जाता है, आज भी पढ़े लिखे, सभ्य लोगों को ऐसी बाते करते हुए मैंने अनुभव किया है ।
मेरे विचार.....
रुढिवादी व्यवस्था में परिवर्तन जरुरी है
ReplyDeleteदिए गए सभी विचारों / मान्यताओं/ संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक है क्योंकि ये सभी जेडर असमानता को बढ़ावा देते है।
ReplyDeleteसमाज मैं व्याप्त इस संकुचित मानसिकता को समाप्त करने की महती आवश्यकता है ।
ReplyDeleteWith the change of time we should change our mindset and treat boys and girls equally.girl should be the equal owner of parents property . Government is taking steps to emerge changes. We should also help in doing so. Rekha sinha PRT K.V Bailey Road
ReplyDeleteहमें समाज को दिशा देने की आवश्कता है जिससे समाज में फैली इस रूढ़िवादिता को पूरी तरह समाप्त किया जा सके ।
ReplyDeleteनरेन्द्र कुमार मिश्रा माध्यमिक शिक्षक शासकीय माध्यमिक विद्यालय अतनिय।
जिला छतरपुर मध्य प्रदेश
Bms no l kasrawad khargone
ReplyDeleteAnswer 1 heridity tradition
2run away from home 3head of the home 4self comfortably 5out door work 6 mc body pain and religious problems8 social crimes 9 surname family atmosphere all change and developed a hybrid species
आज के समय में लडकों और लडकियों मे कोई अंतर नहीं होना चाहिए दोनो को बराबर का हक होना चाहिए रूढिवादीता नहीं होना चाहिए।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रियामें जेंडर सामाजिक विषय है रूढ़िवादी प्रथा में बेटो को उत्तराधिकारी का दर्जा प्राप्त है यह प्रथा ख़त्म होनी चाहिए और एक अचे समाज के लिये अछि सोच विकसित होन चाहिये बेटियां बेटो अथवा महिला पुरुष दोनों को सामान समझाना चाहिये वर्त्तमान डोर में छात्रों की अपेक्षा छात्राएं पड़े में ज्यादा ध्यान देती हे अतः पुरानी सोच को बदल कर महिला और पुरुष दोनों को सामान समझना चाहिए
ReplyDeleteउपरोक्त गतिविधि मे दिये गये कथन हमारे समाज का दर्पण है । हमारे समाज मे कई मुद्दों पर लड़का लड़की मे भेदभाव किया जाता है ।....
ReplyDeleteलड़कियों को संपत्ति का अधिकारी कानून ने तो मान लिया है । पर पुत्र सत्तात्मक सोच होने के कारण ना तो कोई बेटा अपनी बहन को अधिकार देना चाहता है ना लड़कियां खुद लेती है हक 80% पर कहीं कहीं जगह आर्थिक परेशानी के चलते अलग केस भी देखने मे आते है जहां इस अधिकार के चलते कोर्ट case भी चलते है ।
लड़की को पराये घर का बोला जाता .....इस बात से स्पष्ट है ...लड़की का कोई घर नही होता ......कई बार ससुराल वाले भी गलत व्यवहार करते है ...पुरुष का पहले खाना खाना , महिलाओं का घर के सभी सदस्यों के खाने के बाद खाना .मासिक धर्म के समय महिलाओं के साथ अछूतों जैसा व्यवहार करना , उनको बहुत बुरा बोलना ...,दहेज के लिए लड़कियों को जला देना , घरेलू हिंसा , पति का पत्नी पर हाथ उठाना, गालियां देना , लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की पढ़ाई पर ध्यान ना देना ....उन्हें घर के कामकाज मे ही व्यस्त रखना आदि ऐसे कई मुद्दे है .......जो लड़कियों पर लड़कों द्वारा तथा पुरानी रूढ़िवादी सोच के चलते वृद्धजन द्वारा भी अत्याचार किए जाते है महिलाओं का शोषण होता है ।
पर आज फिर भी कुछ मायनों मे कुछ सोच बदली है पर अभी भी लड़ाई बाकी है मेरे साथियों ! हम सबको मिलकर आगे आना होगा ।
धन्यवाद 🙏🙏
दीप्ति जैन, शा .मा .वि .सोनागिर स्टेशन
दतिया (म. प्र .)
I am Ghasiram bisen ms khamghat block lalburra district Balaghat Madhya Pradesh vratman smya meboysgirls koi bhedbhav nhi hai smanta ka adhikar hai soch me privrtn rudivadi ko jd se khatm kiya jana avasyak hai
ReplyDeleteआगे बढते हुये समाज में इन छोटी छोटी बातों को पीछे छोड़ना होगा रुढिवादी व्यवस्था में परिवर्तन बहुत जरूरी है
ReplyDeleteMost importantly Education is the right of everyone. In every activity participation of both genders must. There should be a healthy environment. Ban all narrow thoughts.Preference should be based on qualities not gender. Our both eyes are same.Stop differentiation in gender.
ReplyDeleteरूढ़िवादी मान्यताओं को खत्म करने के लिए हमें समाज को और अधिक जागरूक करने की आवश्यकता है यह सब तभी संभव है जब शिक्षक इस में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं
ReplyDeleteJageshwar sharma ms karanpur
ReplyDeletePrachin samay se samaj me mahilayon ko ek alag sthan prapt he.
Mahilayon ka karyakshtra alag he, mahilayon ke adhikar alag hain.
Aaj hame lagta he ki mahilayon ka karyakshetra alag kyon he,mahilayon ke afhikar puruson se kam kyon hain.
Shayad prachin samay me parsthitiyan bhinn thi,puruson ke karya alag the , mahilayon ke karya alg the, samaj me jevika ke sadhan alag the , kum the ,aur kathin bhi the.
लड़कियों को पराया धन कभी भी नहीं समझना चाहिए। वाल विवाह प्रथा बन्द होनी चाहिए। समान अधिकार मिलना चाहिए। महिलायें।रूढ़ीवादिता समाप्त होनी चाहिए।
ReplyDeleteमैं रंजीत कुमार मंडल माध्यमिक शिक्षक शासकीय माध्यमिक विद्यालय सुंदर खेड़ी तहसील राघोगढ़ परिवार में पुत्र संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है यह पूर्व में कानून था पर अब ऐसा नहीं है पुत्र पुत्री दोनों पिता का संपत्ति का बराबर हकदार है यदि पिता ने संपत्ति का नामित नहीं किया है तो ऐसा कानून है ।लड़कियों का शीघ्र विवाह - पहले लोगों के शिक्षित न होने के कारण लड़कियों का विवाह, जल्दी कर दिया जाता था, किंतु अब बदलाव नजर आने लगा है परंतु पिछड़े इलाकों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है।
ReplyDelete3:- पुरुष देखभाल करने वाले/ पोषण करने वाले- महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व दिया जाता है पुरुष ही परिवार का भरण पोषण करने वाले देखभाल करने वाले माने जाते थे किंतु वर्तमान में यह रूढ़िवादिता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है अब महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण एवं देखभाल करने लगी हैं
4:- दहेज प्रथा- दहेज प्रथा वास्तव में अभी भी विकट समस्या है। आज भी पढ़े लिखे शिक्षित होने के बावजूद भी कई लोग दहेज प्रथा को स्वीकार करते हैं , ना जाने प्रतिदिन देश में कितनी बेटियां दहेज प्रथा की बलि चढ़ जाती हैं। इस ओर हम सबको मिलकर के बहुत प्रयास करना है ताकि यह दानवरूपी प्रथा किसी बेटी को ना निगल पाए।
5:-बेटियों पर बेटों को वरीयता- बेटियों की तुलना में आज बेटों को ज्यादा वरीयता दी जाती है। जबकि मैंने अपने अनुभव में देखा है बेटा भले ही मां-बाप का साथ छोड़ दें ,उनके सुख-दुख में उनका भागीदार ना बने, किंतु बेटियां कभी अपने मां बाप को नहीं भूलती। हमेशा उनका यथासंभव साथ देती रहती हैं अतः इस रूढ़िवादी सोच को बदल कर बेटा और बेटी दोनों को समान वरीयता दी जानी चाहिए।
6:-मासिकधर्म की वर्जनायें- आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में मासिक धर्म को शारीरिक अशुद्धता की दृष्टि से देखा जाता है। कहीं-कहीं मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को रसोईघर, पूजनस्थलों, और कई कार्यों में महिलाओं को भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
7:-लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध- लड़कों की तुलना में लड़कियों को बाहर घूमने फिरने की आजादी नहीं रहती है । लड़कियों को आज भी घर पर ही कैद होकर रहना पड़ता है। लड़कियां यदि बाहर किसी काम से जाएं तो मां-बाप क्यों, किसलिए, क्या काम, आदि प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं। अब शिक्षा के साथ सुधार नजर आ रहा है।
8:- लड़कियां परिवार की अस्थायी सदस्य हैं- लड़कियों को रूढ़िवादी सोच के अनुसार पराया धन माना जाता है और लड़कियां कि जब तक शादी नहीं होती तब तक भी हो उस परिवार की सदस्य हैं और शादी के बाद बेटी को परायी अमानत मान लिया जाता है, आज भी पढ़े लिखे, सभ्य लोगों को ऐसी बाते करते हुए मैंने अनुभव किया है ।
मेरे विचार.....
Samaj mein jari laingik asamanata ko door karne ke liye ye jaroori hai.
ReplyDeleteमुकेश कुमावत मा.वि. बगूद
ReplyDeleteइन सभी सभी कुरुतियों का बहुत हद तक समाधान हो हो रहा है सामाजिक तौर पर भी एवं कानूनी रुप से भी। हमें और भी सार्थक सोच के साथ प्रारंभिक शिक्षण के दौरान ही प्रमुखता से इन पुरानी विचारधाराओं को पुरी तरह समाप्त करने की जरुरत है।
Male female are same but body structure different
ReplyDeleteभारतीय समाज में जेंडर से संबंधित बहुत सारी रूढ़िवादी विचारों में परिवर्तन आए हैं जैसे पूर्व में सिर्फ पुत्र ही पैतृक धन और संपत्ति का उत्तराधिकारी रहता था लेकिन अब लड़कियों को भी समान अधिकार प्राप्त हैं । लड़कियां भी घर का भरण पोषण करने लगी हैं और घर के सभी निर्णय में अपना योगदान दे रही हैं । लड़कियां अब स्वयं का निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं ।लड़कियों को अब बोझ की तरह नहीं समझा जाता है बल्कि उन्हें भी समान रूप से पढ़ाया लिखाया जाता है और उचित आयु में उनकी शादियां हो रही है। कुछ स्थानों पर दहेज जैसी कुप्रथा अभी भी प्रचलित है।
ReplyDeleteरूढिवादिता बंद करके बेटे और बेटी में भेदभाव नही करके दोनो को आगे बढने के समान अधिकार देना चाहिये
ReplyDeleteमेरे विचार से तो ये सारे विकल्पों में बदलाव की जरूरत है क्योंकि आज के दौर में लड़की, लड़का सब एक है और इसकी शुरुआत हमें अपने घर से करनी चाहिए
ReplyDeleteरुढ़ी वादी मान्यताओं को समाप्त करना चाहिए और लड़का लड़की दोंनों को समान अधिकार प्राप्त होना चाहिये।
ReplyDeleteरूढ़िवादी समाज में अब ज्ञान के वजह से परिवर्तन आ रहा है एवं महिलाओं को भी संपत्ति के अधिकार का देने का विचार किया जा रहा है जबकि शासन ने इसके लिए बराबर का अधिकार प्रदान कर दिया है
ReplyDeleteरूढ़िवादी प्रथा को समाप्त कर दोनों को समान अधिकार देना चाहिए।
ReplyDeleteरामनिवास गौर एकीकृत शासकीय कन्या माध्यमिक शाला। सिराली पहले समय में पुत्र को ही कानूनी संपत्ति का अधिकारी माना जाता था लड़कियों को नहीं लेकिन आज कानून के हिसाब से लड़कियां भी बराबर की हकदार है ।लड़कियों का शीघ्र विवाह पुराने जमाने में कर दिया जाता था उनके स्वास्थ्य की चिंता नहीं की जाती थी लेकिन आज के परिदृश्य में सभी लोग समझदार हो गए हैं और लड़की की उम्र होने पर ही उसकी शादी की जाती है। दहेज प्रथा की बात करें तो पहले समय में दहेज एक अभिशाप के रूप में माना जाता था दहेज मांगा जाता था और उसे पुत्री के पिता के द्वारा दिया भी जाता था लेकिन आज के समय में दहेज को बहुत गलत चीज माना जाता है और ऐसी बात तो नहीं है कि दहेज दिया ही जाए बेटियों पर वरीयता का प्रश्न है तो आज भी कई जगह बेटों को बेटी से ज्याफ वरीयता दी जाती है लेकिन लोगों की मानसिकता बदली है और आज बेटे और बेटियों में अंतर नहीं समझा जाता है। आज भी कई जगह मासिक धर्म की रचनाएं हैं महिलाओं को पूजा घर में दर्शनीय स्थलों पर जाने की मनाही होती है। लड़कियों के सारे गतिशीलता पर प्रतिबंध आज भी लगाया जाता है लड़कियों को कोमल समझा जाता है आज उनके बचाव के लिए एक पिता चिंतित रहता है कि कहीं लड़की अकेली जाए तो कुछ गलत ना हो जाए लेकिन कुछ लड़कियां आत्मनिर्भर हुई है और उन्होंने अपने आप को इतना सख्त मना लिया है कि वह कहीं पर भी जा सकते हैं ।लड़कियों को परिवार की स्थाई सदस्य समझा जाता है ऐसा माना जाता है कि लड़कियां तो विवाह के पश्चात अपने ससुराल चली जाती हैं और मायके से उनका कोई सरोकार नहीं होता है लेकिन ऐसा नहीं है लड़कियों की भी परिवार में उतनी ही जरूरत होती है जितनी कि लड़कों की उनका पूरा अधिकार परिवार में होता है।
ReplyDelete(1) पुत्र पारिवारिक उतराधिकारी पहले से चला आता रहा है परन्तु अब ऐसा नहीं है क्यो की शिक्षा का विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक परिवर्तन के कारण समान आधीकर है।
ReplyDelete(2)पहले मासिक धर्म सुरु होते ही विवाह की योजना बना ली जाती थी लेकिन अब 18 वर्ष निर्धारित कर दी गई है।
(3) पहले पुरुष प्रधान होता था जिसकी जिम्मेदारी परिवार की देख भाल और भरण पोषड की होती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है बदलाव के साथ साथ सभी वयस्क सदस्यों की भी जिम्मेदारी बनती है।
(4)पहले दहेज प्रथा चलाए मान था अब लगाम लगाया जा रहा है।
(5)पहले बेटियों को हीन भावना से देखा जाता था और बेटों को उच्च भावनाओं से देखा जाता था बदलाव होने से समान भावना से देखा जाता है।
(6) शिक्षा के कमी के कारण मासिक धर्म में रहते हुए रसोईघर , पूजा स्थल,सार्वजनिक स्थल पर जाने में मनाही थी परन्तु अब ऐसा नहीं है।
(7) लड़कियों के शारीरिक विकास होने पर घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था परन्तु अब ऐसा नहीं है।
(8)पहले का मानना था कि लड़कियों परिवार की अस्थाई सदस्य है क्यो की वह दूसरे घर चले जाएगी परन्तु अब समानता का अधिकार है।
मैं मोहन सिंह सिसोदिया p.s dumahedi तहसील मोहन बडोदिया प्राथमिक शिक्षक परिवार में पुत्र संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है यह पूर्व में कानून था पर अब ऐसा नहीं है पुत्र पुत्री दोनों पिता का संपत्ति का बराबर हकदार है यदि पिता ने संपत्ति का नामित नहीं किया है तो ऐसा कानून है ।लड़कियों का शीघ्र विवाह - पहले लोगों के शिक्षित न होने के कारण लड़कियों का विवाह, जल्दी कर दिया जाता था, किंतु अब बदलाव नजर आने लगा है परंतु पिछड़े इलाकों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है।
ReplyDelete3:- पुरुष देखभाल करने वाले/ पोषण करने वाले- महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व दिया जाता है पुरुष ही परिवार का भरण पोषण करने वाले देखभाल करने वाले माने जाते थे किंतु वर्तमान में यह रूढ़िवादिता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है अब महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण एवं देखभाल करने लगी हैं
4:- दहेज प्रथा- दहेज प्रथा वास्तव में अभी भी विकट समस्या है। आज भी पढ़े लिखे शिक्षित होने के बावजूद भी कई लोग दहेज प्रथा को स्वीकार करते हैं , ना जाने प्रतिदिन देश में कितनी बेटियां दहेज प्रथा की बलि चढ़ जाती हैं। इस ओर हम सबको मिलकर के बहुत प्रयास करना है ताकि यह दानवरूपी प्रथा किसी बेटी को ना निगल पाए।
5:-बेटियों पर बेटों को वरीयता- बेटियों की तुलना में आज बेटों को ज्यादा वरीयता दी जाती है। जबकि मैंने अपने अनुभव में देखा है बेटा भले ही मां-बाप का साथ छोड़ दें ,उनके सुख-दुख में उनका भागीदार ना बने, किंतु बेटियां कभी अपने मां बाप को नहीं भूलती। हमेशा उनका यथासंभव साथ देती रहती हैं अतः इस रूढ़िवादी सोच को बदल कर बेटा और बेटी दोनों को समान वरीयता दी जानी चाहिए।
6:-मासिकधर्म की वर्जनायें- आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में मासिक धर्म को शारीरिक अशुद्धता की दृष्टि से देखा जाता है। कहीं-कहीं मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को रसोईघर, पूजनस्थलों, और कई कार्यों में महिलाओं को भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
7:-लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध- लड़कों की तुलना में लड़कियों को बाहर घूमने फिरने की आजादी नहीं रहती है । लड़कियों को आज भी घर पर ही कैद होकर रहना पड़ता है। लड़कियां यदि बाहर किसी काम से जाएं तो मां-बाप क्यों, किसलिए, क्या काम, आदि प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं। अब शिक्षा के साथ सुधार नजर आ रहा है।
8:- लड़कियां परिवार की अस्थायी सदस्य हैं- लड़कियों को रूढ़िवादी सोच के अनुसार पराया धन माना जाता है और लड़कियां कि जब तक शादी नहीं होती तब तक भी हो उस परिवार की सदस्य हैं और शादी के बाद बेटी को परायी अमानत मान लिया जाता है, आज भी पढ़े लिखे, सभ्य लोगों को ऐसी बाते करते हुए मैंने अनुभव किया है ।
मेरे विचार.....
हुपेन्द्र पाठक शासकीय प्राथमिक विद्यालय मदनपुरा डबरा जिला ग्वालियर
ReplyDeleteअपने देश में ऐसा कानून था कि अपनी पारिवारिक संपत्ति में केवल पुत्र ही उत्तराधिकारी होता था किंतु अब ऐसा नही है अब पुत्र हो चाहे पुत्री, सभी को पारिवारिक संपत्ति में सामान अधिकार है।
पुरानी सोच, असुरक्षा के कारण लड़कियों का विवाह, जल्दी कर दिया जाता था, भले ही इस निर्णय से बालिकाओं के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता था। किंतु अब बदलाव नजर आने लगा है परंतु पिछड़े /ग्रामीण इलाकों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है।
ऐसा माना जाता है कि पुरुष ही परिवार का भरण पोषण करने वाले देखभाल करने वाले होते हैं, किंतु वर्तमान में यह रूढ़िवादिता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है अब महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण एवं देखभाल करने लगी हैं। फिर बात उड़ीसा की हो या लक्ष्मी लकड़ा की
आज भी पढ़े लिखे शिक्षित होने के बावजूद भी कई लोग दहेज प्रथा को स्वीकार करते हैं , ना जाने प्रतिदिन देश में कितनी बेटियां दहेज प्रथा की बलि चढ़ जाती हैं। शिक्षित और कार्यशील होने के कारण वर्तमान में बेटियां स्वयं दहेज प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं।
रूढ़िवादिता के कारण बेटियों की तुलना में बेटों को ज्यादा वरीयता दी जाती है। रूढ़िवादी सोच को बदल कर बेटा और बेटी दोनों को समान वरीयता दी जानी चाहिए। बदलाव दृष्टिगोचर है
आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में मासिक धर्म को शारीरिक अशुद्धता की दृष्टि से देखा जाता है। मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को रसोईघर, पूजा स्थलों, और कई कार्यों में महिलाओं को भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
लड़कों की तुलना में लड़कियों को बाहर घूमने फिरने की आजादी नहीं रहती है ।
वर्तमान में धीरे-धीरे सुधार आ रहा है।
Jitane bhi option upar diye he unko badalna jaruri he ..in sab ka ek hi answer hota he ki ladka ho ya ladki dono hi apni santan hoti he aur unka barabar ka hak hota he isiliye ladke aur ladki me koi bhed bhao kiye bina hame dono ko barabari ka sthaan dena chahiye..kesa ladka wesi he apne liye ladki...
ReplyDeleteDon't differ between. girls and boys.these are equal
ReplyDeleteShiv Charan Nath HM PS khejara Guna Madhya Pradesh
Men & Women both are same
ReplyDeleteAll kind of work done by women.
mai shri mat jyoti sour prthmik shishak epes sarkhadi block Khurai district sagar mere bichar se ladka aur ladkiyo mai bhedbhao ko mita Dena chahiye kyoki dono he god duara pradat hai dono mai he qualities hai dono he intelligent hai isliye dono ko her shhetra mai saman adhikar milna chahiye samaj ka vikash tabhi hoga jab girls and boys dono sath mai aage aakar kam karege or desh ka future tabhi develop hoga jab her jagah mahilao ki bhagedari hogi
ReplyDeleteदोंनों में समानता होनी चाहिए ।
ReplyDeleteजेंडर के आधार पर बालक और बालिका में अंतर करना बालिकाओं को बालकों से कम दर्जा देना बालिकाओं को हतोत्साहित करता है
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रियाओं में जेंडर शब्द सामाजिक विषय है रूढ़िवादी प्रथा में बेटियों से बेटों को उत्तराधिकारी का दर्जा प्राप्त है यह प्रथा खत्म होनी चाहिए और एक अच्छे समाज के लिए अच्छी सोच विकसित होना चाहिए।हम शिक्षक एक राष्ट्र निर्माता के रूप में जाने जाते हैं ऐसी धारणाओं परंपराओं रीति-रिवाजों को समाप्त कर विद्यालय में शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में बालक एवं बालिकाओं को जागरूक करना हमारा परम कर्तव्य है।
ReplyDeleteरुढ़िवादी सामाजिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन आवश्यक है।
ReplyDeleteपुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं
ReplyDeleteवर्तमान में क़ानूनी रूप से जरुर नियम है कि पुत्री भी अधिकारी है किन्तु वास्तव में ऐसा होता नहीं , सामाजिक मान्यताएं हावी हो जाती है इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि मान लिया जाता है कि मातापिता का दायित्व भी पुत्र का है
दहेज प्रथा
आंशिक भागों के छोड़ दिया जाये तो यह समस्या अब कम है , लोग काफी हद तक समझने लगे है
बेटियों पर बेटों को वरीयता
मासिक धर्म की वर्जनायेँ
लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध
लड़कियाँ परिवार की अस्थायी सदस्य हैं
उपरोक्त चारों अभिशाप के रूप में सामाजिक तानेबाने पर पुरुषसत्ता को कायम रखने का बहाना है
मैं राम सिंह शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेल्दरा विकासखंड मैहर जिला सतना मध्य प्रदेश मेरे विचार अनुसार हमें जेंडर विविधताओं के आधार पर बालिकाओं को कम आंकना यह एक सामाजिक अपराध है बालक और बालिका दोनों ही समान है और आज हर प्रकार का कार्य करने में सक्षम है
ReplyDeleteये एक अमानवीय व्यवहार है जिसे दूर करना अति आवश्यक है।केवल पुत्रों पर सम्पत्ति का अधिकार, दहेज़ प्रताड़ना, स्त्री को केवल गृहिणी के रूप में देखना, मासिक धर्म की वर्जनाएं आदि सभी ऐसी मानसिक प्रताड़ना है जो उन्हें अन्दर ही अन्दर खोखला कर देती है उनके मन की हिन भावनाओं को जागृत करती हैं। जबकि एक स्त्री ही संसार का स्रोत है.... इस अमानवीय व्यवहार को दूर करने का मार्ग स्वयं हम से होकर गुजरता है जिसे पार करना और पार करवाना हमारा कर्तव्य होना चाहिए।
ReplyDeleteपुत्र पारिवारिक उतराधिकारी पहले से चला आता रहा है परन्तु अब ऐसा नहीं है क्यो की शिक्षा का विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक परिवर्तन के कारण समान आधीकर है।
ReplyDeleteपहले मासिक धर्म सुरु होते ही विवाह की योजना बना ली जाती थी लेकिन अब 18 वर्ष निर्धारित कर दी गई है।
पहले पुरुष प्रधान होता था जिसकी जिम्मेदारी परिवार की देख भाल और भरण पोषड की होती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है बदलाव के साथ साथ सभी बेयस्क सदस्यों की भी जिम्मेदारी बनती है।
पहले दहेज प्रथा चलाए मान था अब लगाम लगाया जा रहा है।
पहले बेटियों को हीन भावना से देखा जाता था और बेटों को उच्च भावनाओं से देखा जाता था बदलाव होने से समान भावना से देखा जाता है।
शिक्षा के कमी के कारण मासिक धर्म में रहते हुए रसोईघर , पूजा स्थल,सार्वजनिक स्थल पर जाने में मनाही थी परन्तु अब ऐसा नहीं है।
लड़कियों के सरिरिक विकास होने पर घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था परन्तु अब ऐसा नहीं है।
पहले का मानना था कि लड़कियों परिवार की अस्थाई सदस्य है क्यो की वह दूसरे घर चले जाएगी परन्तु अब समानता का आधिकार है।
Me Mahesh Sharma LDT Ms dhuboti,kalapipal,shajapur,MP
ReplyDeleteBetiyo ko Beto par Vareeyta jaisa Ki gatividhi me dikhaya gaya he ki beti Aam laati he Kintu daadi dwara Bete ko bada tukda dene par Beti dwara tark diya jaata he me badi hoon mujhe Aam ka jyada tukda Diya jaaye kintu rudivaadita me Bete ko Beti se Shresht Samjha jaata he kanooni utaradhikari samjha jaata he betiyo ko paraya samjha jaata he asthayi samjha jaata he evam ladko se ladkiyo ko sharirik rup se Kamjor Samjha jaata he evam unki gatishilta Par Pratibandh laga kar unhe Paraye ghar ki Samjhkar Sheegrh vivah par jor diya jaata he jo ki Rudivaadita Ka udharan he
बालक बालिका समानता के लिए बालिका को वे समस्त अधिकार देना होंगे जो बालक को प्राप्त है।
ReplyDeleteआज बेटी भी पिता की संपत्ति की उतनी ही हिस्सेदार है जितने की बेटे। आज दहेज़ प्रथा धीरे धीरे खत्म हो रही है। पुरुष भी घर संभालने लगे हैं। बेटियां भी बेटों से किसी मामले में कम नहीं हैं ये उन्होंने साबित कर दिया है।
ReplyDeleteहमारे समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने का प्रयास हम सब को मिलजुल कर करना चाहिए। जिससे जेंडर असमानता को दूर किया जा सके और एक अच्छे समाज का निर्माण किया जा सके।
ReplyDeletePurane smy se hi male or female me bhed bhav kiya jata rha h, kintu ab smy aa gya h is bhed bhav ko mitane ka. Iske liye government dwaara kai kanun bhi bnaye gye h, jese ki uttradhikar kanun. Jiske dwara oetrak sampatti me bete or betiyo ki barabar ki bhagidari sunishchit ki gai h.
ReplyDeleteShikshan adhigam prakriya mein zender sabd samajik vishay hai rudivadi pratha me betiyon se beton ko uttaradhikari ka darja prapt hai yeh pratha khatm honi chaahiye aur ek achhe samaj ke liye ek achhi soch vicsit hona chahiye. Ladke aur ladkiyon ko saman samjhna chahiye, aaj ke samay mein chhatrapati ki apeksha chhatrayen padai me jyada dhyaan deti hain., aur hrdaya kshetra me aaj chhatrayen, mahilaen hi aage hai. Isiliye dono ki saman samajhna chahiye.
ReplyDeleteनमस्कार,
ReplyDeleteमैं मोहम्मद असलम ख़ान (MS, Haripur, Guna, MP) निम्न बिंदुओ पर अपने विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ -
पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं -ये एक ज़्र्वई ग़लत धारणा है जिसने जेंडर भेदभाव को सबसे ज़्यादा बढ़ावा दिया है। पूर्व में हमारे देश में ऐसा कानून था कि अपनी पारिवारिक संपत्ति में केवल पुत्र ही नाम होता था किंतु अब ऐसा नही है अब पुत्र हो चाहे पुत्री, सभी को पारिवारिक संपत्ति में सामान अधिककार है।
लड़कियों का शीघ्र विवाह - अशिक्षा की वजह से ज़्हअमेज में जन्म लेने वाली समस्याओं में सबसे दुःखद समस्या है बाल विवाह। लोगों के शिक्षित न होने के कारण लड़कियों का विवाह, जल्दी कर दिया जाता था, भले ही इस निर्णय से बालिकाओं के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता था, इस पर विचार ही नही किया जाता था, किंतु अब बदलाव नजर आने लगा है परंतु पिछड़े इलाकों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है।
पुरुष देखभाल करने वाले/ पोषण करने वाले- ईश्वर और प्रकृति का हवाला देकर आज भी महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व दिया जाता है पुरुष ही परिवार का भरण पोषण करने वाले देखभाल करने वाले माने जाते थे किंतु वर्तमान में यह रूढ़िवादिता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है अब महिलाएं भी अपने परिवार का भरण पोषण एवं देखभाल करने लगी हैं
दहेज प्रथा- समय बदल गया है किंतु दहेज रूपी दानव आज भी ज़िंदा है। दहेज प्रथा वास्तव में अभी भी विकट समस्या है। आज भी पढ़े लिखे शिक्षित होने के बावजूद भी कई लोग दहेज प्रथा को स्वीकार करते हैं , ना जाने प्रतिदिन देश में कितनी बेटियां दहेज प्रथा की बलि चढ़ जाती हैं। इस ओर हम सबको मिलकर के बहुत प्रयास करना है ताकि यह दानवरूपी प्रथा किसी बेटी को ना निगल पाए।
बेटियों पर बेटों को वरीयता-हमारा समाज सदियों से इस इस रूढ़ी में फंसा हुआ है और बेटियों की तुलना में आज भी बेटों को ज्यादा वरीयता दी जाती है। अनुभव में देखा जाता है कि बेटा भले ही मां-बाप का साथ छोड़ दें ,उनके सुख-दुख में उनका भागीदार ना बने, किंतु बेटियां कभी अपने मां बाप को नहीं भूलती। हमेशा उनका यथासंभव साथ देती रहती हैं अतः इस रूढ़िवादी सोच को बदल कर बेटा और बेटी दोनों को समान वरीयता दी जानी चाहिए।
मासिकधर्म की वर्जनायें- शहरी क्षेत्रों में इस बारे में काफी जागरूकता आयी है किंतु अभी भी ग्रामीण क्षेत्रो में मासिक धर्म को शारीरिक अशुद्धता की दृष्टि से देखा जाता है। कहीं-कहीं मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को रसोईघर, पूजनस्थलों, और कई कार्यों में महिलाओं को भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध- लड़कियों के जन्म लेते ही ये भेदभाव शुरू हो जाता है कि लड़कों की तुलना में लड़कियों को बाहर घूमने फिरने की आजादी नहीं होना चाहिए । लड़कियों को आज भी घर पर ही कैद होकर रहना पड़ता है। लड़कियां यदि बाहर किसी काम से जाएं तो मां-बाप क्यों, किसलिए, क्या काम, आदि प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं। अब शिक्षा के साथ सुधार नजर आ रहा है।
लड़कियां परिवार की अस्थायी सदस्य हैं- ये भ्रांति सदियों से चली आ रही है और इसी रूढ़िवादी सोच के अनुसार पराया धन माना जाता है और लड़कियां कि जब तक शादी नहीं होती तब तक भी हो उस परिवार की सदस्य हैं और शादी के बाद बेटी को परायी अमानत मान लिया जाता है, आज भी पढ़े लिखे, सभ्य लोगों को ऐसी बाते करते हुए सुना जा सकता है ।
ajj k jamane mai dono he ek saman hh ladkiyo ka jaldi vivah ni krana chahiye kuki ajj k jamane mai ladkiya ladko sy agy ja rhi h
ReplyDeleteAajkal ladke ladkiyon mein kisi prakaar ka bhedbhaav karna ek mithya samaan lagta hai jo ki ye rudhiwaadi ta puraani ho chuki hai aajkal ladkiyaan aasmaan mein udaan bhar rahi hai hum bhi in nanheen pariyon mein pankh lag
ReplyDeleteलडके ओर लडकियों मे समानता का व्यवहार करना चाहिए ।सभी को समान अवसर देने चाहिए।
ReplyDeleteबेटा बेटी दोनों समान है
ReplyDeleteआज समय तेज़ी से बदल रहा है और हमें इसमें और भी बदलाव करने की आवश्यकता है लड़का-लड़की के भेदभाव जेंडर भेदभाव आदि
ReplyDeleteरूढ़िवादी सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन आवश्यक है
ReplyDeleteपरिवर्तन होना जरूरी है
ReplyDeleteबालक बालिका समानता के लिए बालिका को भी वे सारे अधिकार देना होगा जो बालक को प्राप्त है बेटी भी पिता की संपत्ति की उतनी अधिकारी हो जितना बेटे होते है।
ReplyDeleteलड़का लड़की एक समान होना चाहिए भेदभाव नहीं करना चाहिए समान अवसर दिए जाने चाहिए
ReplyDeleteबेटी है तो कल है समय की मांग एवम आवश्यकता ने बेटी को हर क्षेत्र में अव्वल बनाया है अब बेटा ,बेटी दोनों समान है इनमें भेदभाव एक करना एक बड़ा अपराध है। निश्चित ही निष्ठा प्रशिक्षण इस क्षेत्र में एक मील का पत्थर होगा। बेटा के समान बेटी का पूर्ण अधिकार है।
ReplyDeleteलड़का लड़की एक समान होना चाहिए
ReplyDeleteRAJPAL THAKUR govt boys ASHRAM MOGARGAON block bhagwanpura ladka Ho ya ladki dono k sath saman vyvhar Krna chahiye dono ko saman shiksha av mata pita ki sampti sabhi k barabar k adikar hota he
ReplyDeleteरूढ़िवादी व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी है।लड़के और लड़कियों को समान अधिकार मिलना चाहिए।
ReplyDeleteयह विचार मेरे अपने हैं इन विचारों से किसी का कोई लेना देना नहीं है पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी थे अब नहीं है अब तो पुत्र सामाजिक रूप से कानूनी उत्तराधिकारी है सरकार के द्वारा पुत्रियों को भी संपत्ति में समान अधिकार प्रदान कर दिए गए हैं l अशिक्षित लोगों में लड़कियों का विवाह शीघ्र कर देने की जो प्रथा है वह सामाजिक रीति रिवाज के भय के कारण हैं l शिक्षित लोगों में अब शीघ्र विवाह करने की प्रथा लगभग समाप्ति की ओर है ,यह सत्य है कि पुरुष देखभाल करने वाले और परिवार का पोषण करने वाले अभी भी हैं क्योंकि अधिकतर परिवारों में या अशिक्षित परिवारों में तो पुरुष ही परिवार का कर्ताधर्ता होता है अथवा सामाजिक भय के कारण अशिक्षित व्यक्तियों द्वारा महिलाओं को उत्तरदायित्व के निर्णय करने की सोच से परे रखा जाता है जबकि आर्थिक कार्य में महिलाएं बराबर पुरुष का साथ प्रदान करती है यह सत्य है की लालची लोगों के द्वारा दहेज प्रथा को बढ़ावा दिया जाता है और महिलाओं पर अत्याचार किया जाता है ,सर्वथा गलत है l दहेज प्रथा पूर्णता समाप्त होना चाहिए और इस पर बने कानून का निष्पक्ष रुप से पालन करवाना चाहिए l बेटियों पर बेटों को वरीयता देना एक सामाजिक बुराई है, बेटे और बेटियों को समान समझना चाहिए मासिक धर्म की वजह से लड़कियों को या महिलाओं को बहुत से कार्य करने से वर्जित कर दिया जाता है जबकि यह तो प्रकृति द्वारा प्रदत एक प्रक्रिया है इस पर जो फिल्म बनी है वह बहुत अच्छी सीख प्रदान करती है लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध लगाना अनुचित है क्योंकि लड़के और लड़कियां परिवार में समानता का अधिकार रखते हैं यह सोच भी सही नहीं है कि लड़कियां परिवार की अस्थाई सदस्य है जबकि लड़कियों के द्वारा ही परिवार को प्रत्येक प्रकार से आगे बढ़ाने की महकती भूमिका निभाना पढ़ती है l *धन्यवाद*
ReplyDeleteवर्तमान में भी ये सभी सामाजिक बुराई हमारे समाज में व्याप्त है परंतु आधुनिक शिक्षा एवं सोशल मीडिया आदि के प्रभाव से इन बुराइयों को लगातार कम करने में मदद मिली है परंतु हमारे समाज को यह समझना होगा कि हर वह काम जो लड़का कर सकता है वही काम एक लड़की भी कर सकती है इसलिए लड़का और लड़की दोनों समान है इसलिए हमें इन दोनों में भेदभाव ना करके समान अधिकार देना चाहिए
ReplyDeleteसमाज में फैली हुई है तमाम रूढ़िवादी विचारधाराएं को समाप्त करने का समय है और उन को बदलने की आवश्यकता है
ReplyDeleteपारिवारिक संपत्ति के उत्तराधिकारी सामाजिक राजनीतिक धार्मिक आर्थिक संस्थानों में जेंडर की विविधता की पहचान करना उसे स्वीकार करना एवं सम्मान करने के साथ ही बेटा और बेटी को महिलाएं एवं पुरुषों को समान अधिकार देना हमारा कर्तव्य है बेटा बेटी एक समान तभी बने देश महान धन्यवाद
ReplyDeleteहर जगह लड़कियों की तुलना में आज लड़को को ज्यादा महत्व दिया जाता है। जबकि हमने अनुभव में देखा है लड़का भले ही मां-बाप का साथ छोड़ दें, उनके बुढापे में उन्हें कोई सुख न दे किंतु लड़कियां कभी अपने मां बाप को नहीं भूलती। हमेशा उनके सुख दुख में यथासंभव साथ देती रहती हैं अतः रूढ़िवादी सोचो को बदलकर दोनों को समान वरीयता दी जानी चाहिए।
ReplyDeleteजो अनपढ या रूढ़िवादी लोग हैं वे लडकों को वंश बढाने वाला मानते हैं लेकिन कुछ लोग लड़की होने पर उनहे ही सबकुछ मान लेते हैं|लड़कीयो की शादी करके अपनी जिम्मेदारी से पलला झाड लेते हैं| जबकि लड़कीया अपने माता-पिता का ध्यान जयादा अच्छे से रखती है|
ReplyDeleteजो अनपढ या रूढ़िवादी लोग हैं वे लडकों को वंश बढाने वाला मानते हैं लेकिन कुछ लोग लड़की होने पर उनहे ही सबकुछ मान लेते हैं|लड़कीयो की शादी करके अपनी जिम्मेदारी से पलला झाड लेते हैं| जबकि लड़कीया अपने माता-पिता का ध्यान जयादा अच्छे से रखती है|
ReplyDeleteEPES. GOVT. H.S.S.HATOD - - 1-आज कानूनी रूप से पुत्र व पुत्री संपत्ति का समान अधिकार रखते हैं। पुत्री के विवाह के बाद यदि वह संपत्ति में हिस्सा मांग ले तो... मायके के दरवाजे उसके लिए बंद हो जाते है। बहुत कम ही होता होगा कि स्व विवेक से भाई ने बहन को उसका अधिकार दिया होगा।
ReplyDelete2-लड़कियों में आगे बढ़ने की इच्छा इतनी बढ़ गई है कि, पढी लिखी लड़की शीघ्र विवाह नहीं करना चाहती। जब तक खुद कमाने न लग जाये।
3-आजकल विवाहित जिंदगी हो या अविवाहित! दखलंदाजी कोई पसंद नहीं कर्ता। ऐसे में पुरूष देखभाल करने वाले हो या पोषणकरने वाले। सिर्फ आर्थिक सहयोग ही लिया जाता है उनसे। फैसले करने का हक तो युवक - युवती स्वयं रखते हैं। जहां, मजबूरियां होती है वहां यह विवशता से मान्य किया जाता है।
4-दहेज प्रथा यूं तो बंद है। पर लडकियां अपने स्तर को उच्च रखने के लिए स्वयं ही इसका ध्यान रखती है कि कहीं कोई कमी न रह जाए।
5-आज की स्थिति में यहकम ही देखने को मिलता है कि बेटियों पर बेटों की वरीयता हो।
6-मासिक धर्म की वर्जनाएं भी सिर्फ पूजन पाठ तक ही सीमित रह गई है।
7-लडकियों की शारीरिक गतिशीलता पर बिल्कुल भी प्रतिबंध नहीं रह गया है। हर क्षेत्र में लड़कियां, लड़को से कम नहीं है।
8-यही एक बिंदु है जो आज भी सत्य है। लड़की जब माता-पिता के यहाँ रहती है तो उसे कहा जाता है-तुम्हे पराये घर जाना है। और यही बात आगे भी चलती है कि वहां भी वह परायी ही रहती है।