मॉड्यूल 15 गतिविधि 1: अपने बचपन की यादों को साझा करें
एक पल रूकें और अपने बचपन के दिनों की यादों के बारे में सोचें।अब एक सुखद और एक दुखद स्मृति की सूची बनाएँ । इसके अलावा, अपने शुरुआती वर्षों में सीखी गई दो कहानियाँ/ कविताएँ साझा करें।
चिंतन के लिए कुछ समय लें और कमेंट बॉक्स में अपनी टिप्पणी दर्ज करें ।
राजेंद्र प्रसाद मिश्र सहायक शिक्षक शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय लक्ष्मणपुर जिला रीवा मध्य प्रदेश वर्ष 1965 से ग्रामीण क्षेत्र सुखद सूची नंबर 1 माता पिता का संरक्षण नंबर दो अच्छा भरण पोषण नंबर तीन चड्डी बनियान में भी स्कूल जाने के लिए उपयुक्त नंबर 4 पुतली में बंधी रोटी घी के नाम उनके साथ हजार कभी-कभी नंबर पांच दोस्तों का साथ रोटी की अदला बदली नंबर 6 अरहर के तने की कलम लकड़ी की पार्टी कोयले का पुत्ता छुही कीबोड की उसमें डले टूटे वाल दुखद सूची नंबर 1 साला में अनुपस्थित होने पर शिक्षक के द्वारा मार पड़ती घर में बताने पर घर के लोगों द्वारा भी पड़ी मार नंबर दो कोचिंग की सुविधा नहीं नंबर 3 किसी भी गलती की शिकायत ना जाने गांव का कौन आदमी कर देता था बचपन की कहानी शेर और चूहा बचपन की कविता रसखान की कविता आज गई होती बोल रही हो रसखान रही का नंद के भाव नहीं
ReplyDeleteप्राथमिक शिक्षा के दिनो मे सुखद लगता था जब बच्चो के साथ बैठकर खाना गाना बजाना एवंदु खेल खेलते थे। दुखद यह कि जब हम अपनी लापरवाही से भाग नही कर पाये सर जी ने पिता जी के सामने कान पकड़कर उठा कर पटक दिया था।
Deleteबचपन के दिनों को यादकरके मै बहुत रोमाँचित और खुशी का अनुभव करता हूँ। बचपन में प्रायमरी स्कूल में मैं अपने संगी /सहपाठियों के साथ सभी खेल खेला करते थे और पढ़ाई भी बहुत अच्छी तरह से हमको उस समय क़े गुरुजी कराते थे ।बागवानी , गाना ,बजाना,नृत्य,नाटक ,भाषण,अंत्याकक्षरी ,वाद-विवाद ,खेल-कूद, व्यायाम -कुश्ती , आदि सभी प्रकार की गतिविधि में भाग लेने की मैं बहुत रुचि रखता था।
Deleteबचपन से मुझे मेरे गुरुजी ने बीड़ी, सिगरेट और शराब न पीने और ,माँस न खाने का संकल्प दिला दिये थे सो आज तक मैं शाकाहारी हूँ ।बचपन का जीवन वास्तत में सही आनंद और उत्साह का जीवन है।
Good
DeleteBachman me Mata pita ka aashirvad prapt kar school ki oor jane ka shukhad vatavaran tha.ek jhole me slate batti ,parada, aur kuchh kitaabon ko lekar avm sath me ghee lagi rotiyan aaj bhi sukhad anubhav deti hain.school ki prarthna ask bhi man ki shanti pradan karti hai.mata ke bachche k prati prem ki vah kavita aaj bhi man ko shanti pradan karti hai.
ReplyDeleteउठो लाल अब आँखें खोलो
पानी लाई मुँह धो लो
बीती रात, कमल दल फूले..........................
मैं बचपन मे बहुत शरारती था मुझे खेलने का बहुत शौक था घर के पास ही विद्यालय था जब मन हुया घर आकर भोजन करके पुनः शाला बापस चले गए पहले की शिक्षण ब्यवस्था बहुत बढ़िया थी बोझ नही था लेकिन आज की शिक्षा बोझिल बचपन कही खो से गया है
DeleteMata pita Ka aashish prapt Kar school Jane Ka shukhad vatavaran tha.baste me slate batti pahada kuchh kitaben aur madhyahan bhojan k liye ghi lagi rotiyan aaj BHI man ki Khush Kar deti hain.school me shikshika dwara sunai gai Kavita aaj BHI man ko bhav vibhor Kar deti hai.
ReplyDeleteChanda mama ki Kavita
Ya chal re matke tammak too
Ya Anya kavitayen man ko Khush Kar deti hain
सुखद स्मृति--
ReplyDeleteनिश्चिंतता
माता पिता पर निर्भरता
मित्रों का साथ
खेलकूद
ग्रांड पेरेंट्स का स्नेह और साथ
दुखद स्मृति--
अपने कार्यों के लिये बडों पर निर्भर
बडों की डांट आदि
बचपन की कहानी---
खरगोश और कछुआ
शेर और चूहा
बचपन की कविता---
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झांसी की रानी आदि
सुखद स्मृति मां का पति स्नेह है और हर बात पर मेरा पक्ष लेना दुखद स्मृति पिताजी का बात-बात पर डांटना और चिमनी की रोशनी में पढ़ाई करना कहानियां झूठ का फल और सच का पुरस्कार कविताएं मां खादी की चादर दे दे मैं गांधी बन जाऊं दूसरी कविता खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
ReplyDeleteयहजीवन का सुख द ,खेल कूद भरा ,हर बात और भावना पर सीखने सिखाने काअवसर देने कासमय है। इसका सदुपयोग करने के अपार संभावनाएं पृदान की गईंं हैं।
ReplyDeleteSukhda smrati_mata.pita ke dwara hamesha padhai, ke liye protsahan.dukha_smrati-choti bahan ki mrityu.kavita-yh kadam ka ped agar man hota yamuna tire.aur maan khadi ki chadar de de.
DeleteSukhad ghtna-apni saheliyon k sath jaana aur khub msti krna unke bich khud ko safe n happy feel krna
ReplyDeleteDukhad-school se aate wqt mera n meri frnd ka accident ho jana
Kavita- ma khadi ki chaadr de de mein gaandhi bn jaaun..
Kahaani-abbu khaan ki bkri
माता पिता पर निर्भरता
ReplyDeleteग्रांड पेरेंट्स का स्नेह और साथ
दुखद स्मृति--
अपने कार्यों के लिये बडों पर निर्भर
बडों की डांट आदि
बचपन की कहानी---
खरगोश और कछुआ
शेर और चूहा
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झांसी की रानी
आदि।
Helena Mary Singh PS khajri JSK Katangi patan jabalpur apne bachpan ki sukhad ghatna jab apne dosto ke sad kandhe per basta tage neen kilometers dodte school jana or khelna koodna dukhad ghatana teen friends achanak nahate waqt nadi me doob gaye or nahi nacho kavitay chanda mama door ke puye pakay gud ke aap gaye thali me munne ko de pyali me thali gaye toot munna gaya rooth and utho lal ab aakhe kholo pani layi hu mu dholo biti rat kamal dal phule unke uper bhawre jhoole Sher choohe ki or pyase kouye ki kahani ab tak smaran kerti hu
ReplyDeleteबचपन की यादों की अगर आप बात करें तो पूर्व प्राथमिक के अनुभव को बताना चाहूंगी पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में मैं शाला जाने में बिल्कुल भी रुचि नहीं लेती थी बहुत छुट्टी लिया करती थी ।प्राथमिक के बाद कक्षा पहली से ऐसा परिवर्तन आया कि यदि तबीयत भी खराब हो तो शाला की छुट्टी नहीं करने का मन करता था पढ़ाई छूट जाने का डर रहता था ।आज भी सोचती हूं क्या कारण था जो पहले मैं स्कूल जाना नहीं चाहती थी ?क्या वहां का शिक्षण मुझे रुचिकर नहीं लगता था या मुझे घर और अपने दादा का प्रेम अधिक भाता था।
ReplyDeleteबचपन की बहुत ही सुखद और दुखद घटना है जीवन में घटी हम बचपन में जब स्कूल जाते थे जब कोई मोबाइल नहीं थी कोई कंप्यूटर नहीं था उसके बाद भी शिक्षक लोग इतनी अच्छी शिक्षा देते थे जो आज वर्तमान में मोबाइल कंप्यूटर पर आकर ठहर गई मित्रों के साथ स्कूल जाना स्कूल में पढ़ाई के समय समझ कोई खेल ना होना फिर भी खेल कबड्डी जो होती थी स्कूल के द्वारा उस में भाग लेना और प्रथम द्वितीय की जब कभी प्रथम नहीं आते थे तो निराश होकर एक दूसरे को मिलाकर खुशियां मनाते थे हिंदी की पुस्तक उठो लाल अब आंखें खोलो पंचवटी इस तरह की कई कविताएं जो हम याद करते थे आज भी याद आती है बचपन आज याद आता है और वह बचपन आज के बच्चों में नहीं हो सकता जो हम लोगों ने प्राप्त किया
Deleteबचपन की यादों की अगर आप बात करें तो पूर्व प्राथमिक के अनुभव को बताना चाहूंगी पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में मैं शाला जाने में बिल्कुल भी रुचि नहीं लेती थी बहुत छुट्टी लिया करती थी ।प्राथमिक के बाद कक्षा पहली से ऐसा परिवर्तन आया कि यदि तबीयत भी खराब हो तो शाला की छुट्टी नहीं करने का मन करता था पढ़ाई छूट जाने का डर रहता था ।आज भी सोचती हूं क्या कारण था जो पहले मैं स्कूल जाना नहीं चाहती थी ?क्या वहां का शिक्षण मुझे रुचिकर नहीं लगता था या मुझे घर और अपने दादा का प्रेम अधिक भाता था।
ReplyDeleteशीबा खान ,सहायक शिक्षक, शा.पूर्व प्राथमिक प्रशिक्षण संस्थान, जबलपुर
बचपन की सुखद स्मृति में गांव में अपने दोस्तों के साथ खेलना प्राकृतिक स्थानों पर घूमना दुखद स्मृति दूरदर्शन पर आने वाले कार्यक्रमों को ठीक से नहीं देख पाना कभी बिजली का ना होना या टीवी का नहीं चल पाना
ReplyDeleteBachpan m light ki subidha na hone k karan bhut hi mushkilo s pdhai kr pate the or maa k hath ki bana hua khana ek sukhad anubhav hota tha
ReplyDeleteबचपन मे मुझे पढ़ाई करना स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता था कभी किसी शिक्षक की डांट नही पड़ी क्योकि मेरा काम हमेशा पूरा रहता था सबके साथ खेलना पढ़ना अलग ही आनंद होता था ।बचपन की कविता मछली जल की कीकी रानी
ReplyDeleteSarvesh Landry,(middle teacher) GMS mahadeva Santa(MP} डाइस कोड-23130717005
ReplyDelete###
वस्तुतः बचपन जीवन की वह अवस्था होती है जिसमे औपचारिकता नही होती और जीवन की जीने के वास्तविक रंगों का समावेश होता है। वह दिन जब मुझे पहली बार स्कूल जाना था मेरे लिए अत्यंत उत्सुकता भरा अवसर था पर जब मुझे एक ही स्थान (स्कूल )पर कुछ सीमाओं के बंधन में कुछ समय व्यतीत कर पाना मेरे लिए अत्यंत दुखद था।
बचपन मे पढ़ी गयी "खरगोश और कछुए की दौड़ "की कहानी और ",सिहासन ही उठे राजवंशों--------" कविता मुझे आज भी प्रेरणा देती है।
Sarvesh Pandey (middle teacher) GMS mahadeva Santa(MP} डाइस कोड-23130717005
ReplyDelete###
वस्तुतः बचपन जीवन की वह अवस्था होती है जिसमे औपचारिकता नही होती और जीवन की जीने के वास्तविक रंगों का समावेश होता है। वह दिन जब मुझे पहली बार स्कूल जाना था मेरे लिए अत्यंत उत्सुकता भरा अवसर था पर जब मुझे एक ही स्थान (स्कूल )पर कुछ सीमाओं के बंधन में कुछ समय व्यतीत कर पाना मेरे लिए अत्यंत दुखद था।
बचपन मे पढ़ी गयी "खरगोश और कछुए की दौड़ "की कहानी और ",सिहासन ही उठे राजवंशों--------" कविता मुझे आज भी प्रेरणा देती है।
Me jb bachpan me school jata to bhut hi dukh hota tha udas ho jata kyoki jb yaad ya homwork nhi hota to sir ki dat Or mar pdti .. Lekin jb chutti hoti ya lanch ya fir jis sir se mar pdni he uska pired nikl jata to ksam se itni khusi hoti thi ki sab kuch mil gya ho 😊😊
ReplyDeleteमुझे याद आती है। खूब लङी मरदानी थी। वो तो झाँसी वाली रानी थी बुनदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
ReplyDeleteKakcha 1st me tha tab mere teacher ke dwara diya gaya naam "Bapu "aaj v meri isi naam se pehchan Gadasarai or relative ke beech hai.Diwali Dashehra ki chuttiyo me masti gher ka kam ye sab sukhad anubhooti h .Dukhad ...pariwarik condition ke karan yaha se waha bhatakna ...kahaniyo me Sachcha Sukh.or Cheti ka jewan cls 2 ki story hai jinhe ham padhe h .jo aaj v nhi bhool sakta.
ReplyDeleteपहले की शिक्षा बहुत ही सुख द यादों सेभरी ,निशि्ंचता माता पिता का दुलार साथियों के साथ खेल कूद दा दादी कीकहानियां आदि।बचपन की कहानी गुरु की आग्या सबसे बडी. है।
ReplyDeleteMata pita Ka aashish prapt Kar school Jane Ka shukhad vatavaran tha.baste me slate batti pahada kuchh kitaben aur madhyahan bhojan k liye ghi lagi rotiyan aaj BHI man ki Khush Kar deti hain.school me shikshika dwara sunai gai Kavita aaj BHI man ko bhav vibhor Kar deti hai.
ReplyDeleteChanda mama ki Kavita
Ya chal re matke tammak too
Ya Anya kavitayen man ko Khush Kar deti hain
सुखद स्मृति--
ReplyDeleteनिश्चिंतता
माता पिता पर निर्भरता
मित्रों का साथ
खेलकूद
ग्रांड पेरेंट्स का स्नेह और साथ
दुखद स्मृति--
अपने कार्यों के लिये बडों पर निर्भर
बडों की डांट आदि
बचपन की कहानी---
खरगोश और कछुआ
Mata pita Ka aashish prapt Kar school Jane Ka shukhad vatavaran tha.baste me slate batti pahada kuchh kitaben aur madhyahan bhojan k liye ghi lagi rotiyan aaj BHI man ki Khush Kar deti hain.school me shikshika dwara sunai gai Kavita aaj BHI man ko bhav vibhor Kar deti hai.
ReplyDeleteChanda mama ki Kavita
Ya chal re matke tammak too
Ya Anya kavitayen man ko Khush Kar deti hain
Mata pita Ka aashish prapt Kar school Jane Ka shukhad vatavaran tha.baste me slate batti pahada kuchh kitaben aur madhyahan bhojan k liye ghi lagi rotiyan aaj BHI man ki Khush Kar deti hain.school me shikshika dwara sunai gai Kavita aaj BHI man ko bhav vibhor Kar deti hai.
ReplyDeleteChanda mama ki Kavita
Ya chal re matke tammak too
Ya Anya kavitayen man ko Khush Kar deti hain
सुखद स्मृति कक्षा दो तक कुछ नहीं आना और उसमें फेल होना साथियों का आगे निकल जाना फटे कपड़ों और बिना चप्पलों से रोज स्कूल जाना देर से जाने पर मार पढ़ना होमवर्क नहीं करने पर डांट खाना स्कूल से जल्दी छुट्टी होने पर मेले में चले जाना खाली हाथ घूम कर वापस आ जाना पढ़ने में मैं औसत दर्जे का छात्र था ! धीरे-धीरे बड़ों से सीखकर मैंने थोड़ा ज्ञान बढ़ाया धन्यवाद!
ReplyDeleteHr kisi ki trh hmara bachpan bhi kai khatti mithi yado se bhara hua h. Prathmik classes ki kai kahaniya Or kavitaye jese sher Or chuha adi aaj bhi yad h.
ReplyDeleteसुखद स्मृति-प्रतिदिन माता पिता का आशीर्वाद प्राप्त कर विद्यालय जाना,कपड़े के साधारण झोले में कलम दवाद,चमकती हुई काली पाटी और 1रुपये का मनोहरपोथी पहाड़ा, साथ ही झोले में कुछ मिट्टी लकड़ी आदि के स्वनिर्मित खिलौने।पानी पीने के बहाने से बार बार कक्षा से बाहर जाना।फैल पास होने का कोई डर नही।इस प्रकार से प्राथमिक शिक्षा बहुत रुचिकर थी।
ReplyDeleteकुछ कविताएं-उठो लाल अब आँखे खोलो पानी लाई हुँ मुँह धोलो.......
बहुत दिनों की बुढ़िया एक, चलती थी लाठी को टेक,जाना था उसको ससुराल.....आदि।
bahut shari sharat pr Padna bahut achcha lagtta tha ...light na hone ki bajhe se lalten ki roshni me padai kari or bahut sari bate hai shayad ye platform bahut chota hai pr ....achichi likhawat ki wajhe se kai dat bhi khana padi kuki koi biswash nahi kr pata tha ki likhawat meri hi hai .....
ReplyDeleteAisa samay jisse yad karte hi man mein Khushi ka ehsas Ho voh kagaj ki kashti voh taat Patti... Voh lalten ki Roshani... Vah pita ji ki dant....jindagi ka sabse achcha samay aapka or hamara bachpan
ReplyDeleteडॉक्टर अंबेडकर माध्यमिक शाला कृपालपुर सतना
ReplyDeleteबचपन की वो यादें जो आज भी हमे सुखद अनुभूति के दर्शन कराती है।उस समय हमें सिर्फ लाड प्यार दुलार वह भी हमारी पढ़ाई से प्रेरित हो कर मिलता था।जब हमारे प्राथमिक के शिक्षक हमारी पढ़ाई से खुश हो कर हमारे भाई से गुणगान करते थे।
कक्षा में अव्वल रहने पर स्कूल के सारे बच्चे हमे हीरो से कम नही मानते थे।
वह भी तब जब हम किसी प्रश्न का उत्तर यथावत अपने गुरु जी को सुना देते थे।
किन्तु उस समय का परिवेश जिसमे चड्ढी ,पैजामा के साथ शर्ट पहन कर ,लकड़ी की पट्टी,के साथ एक बोरका जिसके एक साइड काला potta जिसे पट्टी में पोत कर साफ सुंदर लिखने के लिए तैयार किया जाता था।
वही दूसरी तरफ खड़िया या छुही से भरा जिसमे हम सरपट की कलम बना कर छुही से डुबो कर पट्टी में ककहरा, मात्रा, गिनती ,पहाड़ा लिखते थे,जब हमारे शिक्षक उसे जांच देते तब हमें खुशी की सीमा न दिखती थी।
फ्री एवं स्वतंत्र मन से खेलना कूदना, जंगलों की सैर करना अपने बालसखाओ के साथ, मां का खाने के लिए आग्रह करना,रूठ जाने पर मानना कभी इस जीवन के अंग हुआ करते थे।
वाह रे वह बचपन कास फिर वही वापस आ जाय।
सुखद स्मृति-प्रतिदिन माता पिता का आशीर्वाद प्राप्त कर विद्यालय जाना,कपड़े के साधारण झोले में कलम दवाद,चमकती हुई काली पाटी और 50न.पै.का मनोहरपोथी पहाड़ा, साथ ही झोले में कुछ मिट्टी लकड़ी आदि के स्वनिर्मित खिलौने।पानी पीने के बहाने से बार बार कक्षा से बाहर जाना।फैल पास होने का कोई डर नही।इस प्रकार से प्राथमिक शिक्षा बहुत रुचिकर थी।
ReplyDeleteकुछ कविताएं-उठो लाल अब आँखे खोलो पानी लाई हुँ मुँह धोलो.......
बहुत दिनों की बुढ़िया एक, चलती थी लाठी को टेक,जाना था उसको ससुराल.....आदि
श्रीमती जय श्री यदुवंशी सहा. शिक्षक प्रा शाला पाचनजोत (आमला)
यह जीवन का सुखद,खेलकूद ,भरा हर बात, और भावना पर सीखने सिखाने का अवसर देने का समय है।इसका सदुपयोग करने के अपार संभावनाएं प्रदान की गई हैं।
ReplyDeletejay utha
ReplyDeletejal bhar
ghar chal.
दुखद और सुखद घटनाएं
ReplyDeleteमुझे स्कूल जाना पसंद नहीं था इसलिए स्कूल टाइम पर दोस्त भाई के साथ घर से निकल कर नाले में खेला करते थे एक बार पकड़े गए तो मम्मी से खूब पिटे। ये घटना मेरे लिए दुखद और सुखद दोनों है क्योंकि इसमें स्कूल न जाने का आनंद था तो दूसरी ओर पिटाई का दुख भी।
कछुआ और खरगोश की कहानी और मैं गाँधी
बन जाऊं कविता
प्राथमिक शिक्षा के दौरान सबसे अच्छी बात मुझे जो लगी वह थी सुंदरलेखन विधा ।हमारे समय में होल्डर व बरु से (बाँस की हस्त निर्मित कलम) से अक्षर व अंक लिखवाते थे जिससे अक्षरों की बनावट सुंदर हुआ करती थी । स्याही वाला पेन हमें कक्षा 6 में ही दिया गया ।
ReplyDeleteबचपन की सुखद स्मृति में गांव में अपने मित्रो के साथ खेलना पर्यटक स्थलों पर घूमना , दुखद स्मृति दूरदर्शन पर आने वाले कार्यक्रमों को ठीक से नहीं देख पाना कभी बिजली का ना होना या टीवी का नहीं चल पाना इत्यादि
ReplyDeleteनदी मे नहाना खेत में घूमना मेले मे जाना झुले झूलना।बड़ा मजा आता था।
ReplyDeleteवह बचपन गुम गया है हमें उसे दुवारा लाना है
ReplyDeleteबचपन की सुखद स्मृति
ReplyDeleteबचपन के स्कूल के दिनों में मेरे मुझे पढ़ाने वाली मैडम बहुत प्यार से अपने पास बुलाती थी और मुझे लिखना और पढ़ना एवं कविताएं सिखाती थीं कक्षा के अन्य बच्चों की पिटाई होती थी परंतु मेरी कभी पिटाई नहीं हुई मैं मेरी मैडम का सबसे प्रिय छात्र था। मुझे पढ़ने लिखने के लिए सामग्री भी मेरी मैडम जी दिया करती थीं।
दुखद अनुभव:- ऐसे कोई अनुभव मुझे याद नहीं जिनसे मुझे बचपन में दुख हुआ हो ।
कविता:-एक दो तीन चार
भैया बनो होशियार
सबक है कहना , अनपढ़ ना रहना
जाना ,गुरुजी के पास पोथी पढ़ना पट्टी में लिखना.........
बचपन की यादें शायद ही आज हमें झकझोर कर रख देती है। जैसे माता-पिता का दुलार, रात को रामायण जैसे धारावाहिक देखने जाना , बचपन के मित्रों के साथ खेलना, नानी मां / माता से कहानियां सुनना ,माता-पिता द्वारा दी गई स्लेटों की याद भी ताजा कर देती हैं। साथ ही स्कूलों में शिक्षकों के डंडा पीर भी शामिल है जिससे उन्हें डंडा पीरों और दंड के कारण आज हम शिक्षक बने हैं। मित्रों की सहायता करना जैसे पेन पेंसिल स्याही तथा लिखी गई कॉपियों को पानी से भिगोकर मिटाना तथा उसका उपयोग करना भी शामिल है। यह यादें हमें सुखद अनुभूति पैदा करती हैं।
ReplyDeleteहमारे बचपन की कविता--
हुए बहुत दिन बुढ़िया एक
चलती थी लाठी को टेक
उसके पास बहुत था माल
जाना था उसको ससुराल
मगर राह में चीते शेर
लेते थे राही को घेर
बुढ़िया ने सोची तदबीर
जिससे चमक उठी तकदीर
मटका एक मगाया मोल
लंबा लंबा गोल मटोल
उस में बैठी बुढ़िया आप
वह ससुराल चली चुपचाप
बुढि़या गाती जाती यूँ
चल रे मटके टम्मक टू।
Sabhi doston ke sath milkar school Jana chhutti hone per ek sath Ghar aana khub Masti karna padhai likhai kana aadi.
ReplyDeleteसोहवत पटेल प्राथ, शिक्षक psभरतपुर बिकासखण्ड मानपुर, जिला-उमरिया म, प्र,मैंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के आधीन अध्यापन किया है।शिक्षक को बच्चे और अभिभावक दोनों ही आदर के भाव से देखते थे।उसका कारण यह है कि बिन भय होता न प्रीत, जब बच्चों वाला न आने पर या विकर्षण कार्य पूरा न होने पर बेंत खाते में। तब बच्चें भय से सबक को पूरा भी करते थें तथा आदर भी करते थे।आज बिना भय के कारण समाज इतना बिगड़ चुका है कि चारों तरफ मार-पीट,भ्रष्टाचार, लूट-पाट डकैती, चोरी नशापान अपहरण जेसे कुरीतियां समाज मेव्याप्त है। कहीं न कहीं इन सबका कारण समाज और शासन दोनों हैं। समाज को सही दिशा की ओर ले जाने का भारत होता है, तब उसे फ्रीहेण्डल छोड़ दिया जाता है।कहीं न कहीं नैतिक गुणों के बिकास के लिये कुछ न कुछ नया करना होगा।
ReplyDeleteBefikra,khush,jangle jana,talab me nahaana,jangli fal khana ye sukhad pahlu. Teacher se darna,pitna dukhad tha.din nikla,kiran uth,aur deedee aaee mithaee laee kavita ab bhi yad he.
ReplyDeleteBachpan me machhli jal ki rani aur bander aur do billiyon ki story bahut badhiya lagti thi
ReplyDeleteJitender gps dp sottar
मैं बचपन मे बहुत शरारती था मुझे खेलने का बहुत शौक था घर के पास ही विद्यालय था जब मन हुया घर आकर भोजन करके पुनः शाला बापस चले गए पहले की शिक्षण ब्यवस्था बहुत बढ़िया थी बोझ नही था लेकिन आज की शिक्षा बोझिल बचपन कही खो से गया है
ReplyDeleteबचपन का समय सब से प्यार और सबसे न्यारा होता है।बचपन के आनन्द को कभी भी भुला नही जा सकता है।बचपन में खेलना कूदना मस्ती मौज करना।सभी को अच्छा लगता है।बचपन की शैतानियों को कभी नही भुला जा सकता है।
ReplyDeleteबचपन का समय सबसे नियारा होता है बचपन के आनंद को भी कभी भूलना नहीं जस भूला नहीं जा सकता बचपन में खेलना कूदना मस्ती मौज करना सभी को अच्छा लगता है बचपन की शैतानियां को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
ReplyDeleteBachpan ka sukhad anubhav- doston ke sath masti krna,doston ke sath padna unke sath ghumna,phirna bachpan ki yado ka sukhad and anubhavo ki yad dilate he.Dukhad smriti-Aaj ke dino sbhi apne apne kam me vyasta rehte he sbhi dosto ka ek sath na milna .
ReplyDeleteBachpan me tanav mukt rahte the aajadi ki kami thi
ReplyDeleteबचपन की कविता मछली जल की कीकी रानी बचपन मे मुझे पढ़ाई करना स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता था कभी किसी शिक्षक की डांट नही पड़ी क्योकि मेरा काम हमेशा पूरा रहता था सबके साथ खेलना पढ़ना अलग ही आनंद होता था ।
ReplyDeleteबचपन तो बचपन ही था ,हमेशा लगता तथा कब बड़ा होऊंगा . पर आज जब मै बड़ा हो गया हु तो लगता है वे दिन कभी लौट केर न आयंगे. स्कूल आते जाते रस्ते मे कबिता गुनगुनाना आवर स्कूल मई जाकर भू ल जाना ..
ReplyDeleteनहीं हुआ है अभी सबेरा, पूरब की लाली पहचान-
चिडियों के जगने से पहले, खाट छोड़ उठ गया किसान-
खिला-पिलाकर बैलों को लेकर, करने चला खेत पर काम-
चिडियों के जगने से पहले, खाट छोड़ उठ गया किसान-
खिला-पिलाकर बैलों को लेकर, करने चला खेत पर काम-
नहीं हुआ है अभी सबेरा, पूरब की लाली पहचान..
Bachpan me school jana Bahut bachcha lagta tha.bo khaki hap pant spayed hap shart sir par gandhi topic lagakar doston ke badi shan se jate the.school me parade, ginti kavita jor jor se chillakar padte the.to Bahut majha Aata tha.school me kabhi tika lagane bali teem aati thi to school ki deewar fandkar bhag jate the. Kinyoki enjecson se bahut dar lagta tha. Bachpan ki kavita. -mera rhoda,sharpay doudna,abhi yad bhai.
ReplyDeleteK.c.kushwaha.
P/s BamhanGaon khurd
Hoshngabad (m.p.)
बचपन में मामाजी द्वारा सुनाई है एक कहानी याद आ की मित्रता में कोई अमीर गरीब नहीं होता भगवान कृष्ण एवं सुदामा की। एक गरीब वामन को एक राजा ने गले से लगाया और सम्मान दिया ।
ReplyDelete
ReplyDeleteमैं बचपन मे बहुत शरारती थी।बचपन की कविता मछली जल की रानी बहुत अच्छे से पढ़ती, गुनगुनाती थी। मे मुझे पढ़ाई करना स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता था
मुझे खेलने का बहुत शौक था, घर के पास ही विद्यालय था जब मन हुया घर आकर भोजन करके पुनः शाला बापस चले गए पहले की शिक्षण ब्यवस्था बहुत बढ़िया थी बोझ नही था लेकिन आज की शिक्षा बोझिल बचपन कही खो गया बच्चो का ....
सुखद याद-दोस्तो के साथ खेलना
ReplyDeleteदुखद याद- कक्षा 10 के बाद स्कूल छूटना
कहानी-शेर और चूहा
कविता- उठो लाल अब आँखें खोलो
बचपन की सुखद स्मृति में गांव में अपने दोस्तों के साथ खेलना प्राकृतिक स्थानों पर घूमना दुखद स्मृति दूरदर्शन पर आने वाले कार्यक्रमों को ठीक से नहीं देख पाना कभी बिजली का ना होना या टीवी का नहीं चल पाना
ReplyDeleteमेरा बचपन मेरे के सानिध्य मे बिता मेरे पिता एक आदर्श शिक्षक के रूप मे मेरे साथ आज भी है। उनका उदेश्य सिर्फ हर वर्ग, जाती ,धर्म के बच्चों के लिए शिक्षा देना ओर सर्वांगीण शिक्षा खेल कुद,सामाजिकता,धर्म भाईचारा ओर एक अच्छा नागरिक बने। मैनै उनके बताऐ मार्ग पर सतत बच्चों के लिए ही है। बचपन मे एक कविता-मै गांधी बनजाऊगा।चल रे मडके टमक टुँ कक्षा -2-3मै सबको सुना ता था। स्कूल मे जब निरीक्षण मे मुझे पुरस्कार भी मिले । ओर थोडी सी त्रुटि पर सुताई भी बहुत होती थी।
ReplyDeleteबचपन में मुझे टेबल टेनिस खेलना पसंद था। पतंग उड़ाना भी अच्छा लगता था।
ReplyDeleteमॉड्यूल 15 गतिविधि 1: अपने बचपन की यादों को साझा करें।
ReplyDeleteसुखद अनुभव - बचपन मे मुझे पड़ना ओर स्कूल जाना बहोत अच्छा लगता था। अपनी सहेलीयों के साथ खेलना ओर खाने की छुट्टी में एक दूसरे का टिफिन बाटना या शेयर करना। जब स्कूल से घर पर वापस आते ही मम्मी का प्यार से पूछना की, "बेटा आ गई,ओर कैसा रहा आज का दिन ।" वैसे तो बचपन की बहोत सी अच्छी यादे है।
दुखद अनुभव- एक बार जब हिंदी की विद्या मेंम का टिफ़िन धोने नदी पर गए तो उसका ढक्कन हाथ से छूट गया और बह गया तो में ओर मेरी सहेली बहोत डर गई। मेंम डाँटेगी हमें !
कहानी- खरगोश ओर कछुए की।
कविता- खूब लड़ी मर्दानी, मछली जल की रानी है, इत्यादि ।
गाना - देदी हमे आजादी बिना, इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके।
वैसे तो समझ मे नही आ रहा है कि, कैसे लिखूं पर कोशिश की है !!!! पढ़ने के लिए आप सभी शिक्षक साथियों को , धन्यवाद !!!!!!
मेरा बचपन सुखद एवं आनंदमय था दोस्तों के साथ खेलना बात बात पर लडाई झगड़ा रुठना मनाना अंग बंग खेलना छिपा छिपी कलाम डाली खेलना माँ से कहानियाँ सुन ना पढने के लिए शिक्षको से डरना
ReplyDeleteSeema Shrivastava BV1588 Hoshangabad Pipariya G.M.S.Panariप्राथमिक स्कूल सबसे महत्तवपूर्ण स्कूलहै बच्चे स्कूल आकर खुशी का अनुभव करता है बच्चे का सर्वागीण विकस प्राथमिक स्कूल से ही होता है
ReplyDeleteबचपन में मुझे विधालय जाना एवं पढाई करना बहुत अच्छा लगता था। मैं घर से विधालय तक 2 कि.मी.पैदल चलता था। मुझे पढाने वाले शिक्षक आदर्श शिक्षक थे। मैं हिन्दी पढना एवं श्रुतलेखन कक्षा 3 में पूर्णतः सीख चुका था।
ReplyDeleteअरविंद कुमार यादव प्राथमिक शाला कटोरी जन शिक्षा केंद्र madhi गांव का दो कमरे वाला प्राथमिक विद्यालय 2 शिक्षक नाला पार कर स्कूल जाना मन लगाकर पढ़ना चार किताबे कॉपी मैं चारों विषय दो रिफिल वाला पेन कक्षा पांच में प्रथम आने पर गुरु जी द्वारा जलेबी खिलाना आज तक स्मृति में दादा जी का निधन दुखद स्मृति
ReplyDeleteमेरा बचपन संघर्षपूर्ण रहा ।
ReplyDeleteबचपन की यादों की अगर आप बात करें तो पूर्व प्राथमिक के अनुभव को बताना चाहूंगी पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में मैं शाला जाने में बिल्कुल भी रुचि नहीं लेती थी बहुत छुट्टी लिया करती थी ।प्राथमिक के बाद कक्षा पहली से ऐसा परिवर्तन आया कि यदि तबीयत भी खराब हो तो शाला की छुट्टी नहीं करने का मन करता था पढ़ाई छूट जाने का डर रहता था ।आज भी सोचती हूं क्या कारण था जो पहले मैं स्कूल जाना नहीं चाहती थी ?क्या वहां का शिक्षण मुझे रुचिकर नहीं लगता था या मुझे घर और अपने दादा का प्रेम अधिक भाता था।
ReplyDeleteरमेश प्रसाद महरा प्राथमिक शिक्षक ब्लांक पाटन जबलपुर संकुल हाई स्कूल उड़ना सड़क
बचपन में मुझे विधालय जाना एवं पढाई करना बहुत अच्छा लगता था। मैं घर से विधालय तक 2 कि.मी.पैदल चलता था। मुझे पढाने वाले शिक्षक आदर्श शिक्षक थे। मैं हिन्दी पढना एवं श्रुतलेखन कक्षा 3 में पूर्णतः सीख चुका था।
ReplyDeleteरमेश प्रसाद महरा प्राथमिक शिक्षक शासकीय प्राथमिक शाला कुमगवां संकुल हाई स्कूल उड़ना सड़क पाटन ब्लांक जबलपुर
सुखद स्मृति-प्रतिदिन माता पिता का आशीर्वाद प्राप्त कर विद्यालय जाना,कपड़े के साधारण झोले में कलम दवाद,चमकती हुई काली पाटी और 1रुपये का मनोहरपोथी पहाड़ा, साथ ही झोले में कुछ मिट्टी लकड़ी आदि के स्वनिर्मित खिलौने।पानी पीने के बहाने से बार बार कक्षा से बाहर जाना।फैल पास होने का कोई डर नही।इस प्रकार से प्राथमिक शिक्षा बहुत रुचिकर थी।
ReplyDeleteकुछ कविताएं-उठो लाल अब आँखे खोलो पानी लाई हुँ मुँह धोलो.......
बहुत दिनों की बुढ़िया एक, चलती थी लाठी को टेक,जाना था उसको ससुराल.....आदि।
सुखद स्मृति--
ReplyDeleteनिश्चिंतता
माता पिता पर निर्भरता
मित्रों का साथ
खेलकूद
ग्रांड पेरेंट्स का स्नेह और साथ
दुखद स्मृति--
अपने कार्यों के लिये बडों पर निर्भर
बडों की डांट आदि
बचपन की कहानी---
खरगोश और कछुआ
शेर और चूहा
बचपन की कविता---
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झांसी की रानी आदि
बचपन मे मुझे पढ़ाई करना स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता था कभी किसी शिक्षक की डांट नही पड़ी क्योकि मेरा काम हमेशा पूरा रहता था सबके साथ खेलना पढ़ना अलग ही आनंद होता था ।बचपन की कविता मछली जल की कीकी रानी
ReplyDeleteराजेन्द्र प्रसाद झारिया प्राथमिक शिक्षक शासकीय प्राथमिक विद्यालय रानीताल संकुल शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नुनसर ब्लांक पाटन जबलपुर
सुखद स्मृति--
ReplyDeleteनिश्चिंतता
माता पिता पर निर्भरता
मित्रों का साथ
खेलकूद
ग्रांड पेरेंट्स का स्नेह और साथ
दुखद स्मृति--
अपने कार्यों के लिये बडों पर निर्भर
बडों की डांट आदि
बचपन की कहानी---
खरगोश और कछुआ
शेर और चूहा
बचपन की कविता---
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झांसी की रानी आदि
बचपन की वो यादें, जो हमें पुन: तरोताजा कर देती हैं। वो स्कूल जाना, मस्ती करना, वो स्कूल में प्रथम आने की हौड़, वो मामा-मौसी के घर जाना...बस यही सब यादें हमें पुन: तरोताजा बनाते रहती हैं।
ReplyDeleteबचपन में ,मैं अपने गुरु जी का प्रिय शिष्य था, और मैं उनकी सदा टेबल के नीचे बैठता था हमारे गुरु जी हमको बड़े प्रेम से पढ़ाते थे, जब भी हमको कहानियों के माध्यम से पढ़ाते थे तो मुझे बड़ा अच्छा लगता था और वह हमें कविताएं भी सुनाते थे ,उस समय जो कविता हमें सुनाई जाती थी |वह है ,हुए बहुत दिन बुढ़िया एक, चलती थी लाठी को टेक, उसके पास बहुत था माल, जाना था उसको ससुराल ,मगर राह में चीते ,शेर ,लेते थे राही को घेर बुढ़िया ने सूची तकदीर जिससे चमक उठे तकदीर matka1 मंगाया मोल लंबा लंबा गोल मटोल उसमें बैठे गुड़िया आप का ससुराल चली चुपचाप बुढ़िया उग आती जाती हूं चल मेरे मटके टम्मक टू हमारे गुरु जी हमें चौकों की सहायता से सलाम सीता और रावण का खेल भी दिखाते थे जब रावण आता था तो सीता अपना मुंह फेर लेती थी और जब राम जी आते थे तो सीता अपना मुंह राम जी की तरफ कर लेती थी वह भी हमें बहुत अच्छा लगता था इसके अलावा हमारे गुरु जी बच्चों को खा कर के एक दूसरे से प्रश्न पूछने का अवसर देते थे मैं उस समय कक्षा तीन में पढ़ता था लेकिन मैंने कक्षा 5 के मीनिंग याद कर लिए थे तो मैंने कक्षा 5 का जब मीनिंग सुनाया तो हमारे गुरुजी बहुत प्रसन्न हुए और मुझे शाबाशी दी तो मुझे बहुत अच्छा लगता है लेकिन जब मैं कक्षा 6 में आया तो हमारे गणित के टीचर बात बात पर पीटा करते थे जिससे मुझे दुख होता था और मुझे वह पसंद नहीं थे इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि बच्चे उसी टीचर को प्रेम करते हैं जो उन्हें प्रेम से सहानुभूति से पढ़ाता है लेकिन जो टीचर केवल झंडे के बल पर ही पढ़ाती हैं उन शिक्षकों को बच्चे पसंद नहीं करते हैं तथा बच्चे दुख का अनुभव करते हैं| मैं रघुवीर गुप्ता शासकीय प्राथमिक विद्यालय नयागांव जन शिक्षा केंद्र शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सहसराम विकासखंड -विजयपुर जिला -Sheopur मध्य प्रदेश
ReplyDeleteबचपन के दिन बहुत ही सुखद थे प्रारंभिक शिक्षा शासकीय विद्यालय मे हुई सुखद पल बचपन में बहुत मस्ती किया करते थे दुखद पल स्कूल जाने में बहुत रोते थे उठो लाल अब आंखे खोलो
ReplyDeleteपानी लाई हूं मुह धो लो
बचपन की सुखद स्मृति में गांव में अपने दोस्तों के साथ खेलना प्राकृतिक स्थानों पर घूमना दुखद स्मृति दूरदर्शन पर आने वाले कार्यक्रमों को ठीक से नहीं देख पाना कभी बिजली का ना होना या टीवी का नहीं चल पाना
ReplyDeleteबचपन का समय सबसे अनोखा होता है बचपन के आनंद को भी कभी भूलना नहीं जा सकता बचपन में खेलना कूदना मस्ती मौज करना सभी को अच्छा लगता है मुझे याद आती है बचपन की यादे। बचपन कीशैतानियां को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
ReplyDeleteजीजी आई मिठाई लाई,शीला इधर आ।
ReplyDeleteजीजी की मिठाई खा ।
व
एक अंधा था एक लंगडा था ।(कहानी )
माता पिता पर निर्भरता
ReplyDeleteमित्रों का साथ
खेलकूद
ग्रांड पेरेंट्स का स्नेह और साथ
दुखद स्मृति--
अपने कार्यों के लिये बडों पर निर्भर
बडों की डांट आदि
बचपन की कहानी---
खरगोश और कछुआ
शेर और चूहा
बचपन की कविता---
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झांसी की रानी आदि
बचपन की सुखद स्मृति
ReplyDeleteबचपन में हमें स्कूल जाने के कारण सुबह जल्दी गाय-भैंसों को चराने नहीं जाना पड़ता था स्कूल में हमें खिचड़ी मिलती थी और सोयाबीन के बने कुरकुरे जिसे हम बड़े ही चाव से खाते थे यार दोस्तों के साथ अनेक प्रकार के खेल खेलते थे और बहुत मजे करते थे पेड़ों पर चढ़ते थे और कूदते .
बचपन की दुखद स्मृतियां
उस समय विद्यालय अनुशासन बहुत सख्त होते थे छोटी सी गलती पर अनेक छडिया पड़ती थी घर पर पता चलने पर मां बाप भी बुरी तरह से कूटते थे किताबे स्वयं खरीदना पड़ती थी निशुल्क किताबों की कोई व्यवस्था नहीं थी हाथ से बनाए हुए झूले ही लेकर स्कूल जाना पड़ता था मां बाप विद्यालय शुरू होने के चार चार पांच 5 महीने तक कोई किताबे लाकर नहीं देते थे नाही आजकल की तरह पेन होते थे
बचपन की एक कविता
भोर हुआ सूरज उगाया जल में पड़ी सुनहरी छाया अब तो जागो प्यारे
बचपन की दूसरी यादगार कविता
आशीशों का आंचल भरकर प्यारे बच्चों लाई हूं युग जननी में भारत मां तुम्हारे द्वार आई हूं
सुखद स्मृति- गाँव का स्कूल, पिता गरीब,निरक्षर पूरे समाज मे कोई पढ़ा लिखा नही, पिताजी की पढ़ाने की इच्छा, कक्षा तीन तक कुछ नहीं आना कारण सरकारी स्कूल ,फटे कपड़ों और बिना चप्पलों से रोज स्कूल जाना देर से जाने पर मार पढ़ना डांट खाना स्कूल से जल्दी छुट्टी होने पर दोस्तों के साथ खेलने चले जाना खाली हाथ घूम कर वापस आ जाना पढ़ने में मैं औसत दर्जे का छात्र था ! धीरे-धीरे बड़ों से सीखकर मैंने थोड़ा ज्ञान बढ़ाया जल्द शादी होने पर भी लगातार पढ़ाई कर अपनी मंजिल को पाकर एक शिक्षक प्रशिक्षकके रूप में मप्र लेवल पर अच्छा कार्य किया। मेरी बचपन की कहानी में- पिताजी से मोहल्ला क्लास में बड़े बच्चों के साथ प्रतिदिवस कहानियां सुनना। धन्यवाद
ReplyDeleteग्रामीण क्षेत्र सुखद सूची नंबर 1 माता पिता का संरक्षण नंबर दो अच्छा भरण पोषण नंबर तीन चड्डी बनियान में भी स्कूल जाने के लिए उपयुक्त नंबर 4 पुतली में बंधी रोटी घी के नाम उनके साथ हजार कभी-कभी नंबर पांच दोस्तों का साथ रोटी की अदला बदली नंबर 6 अरहर के तने की कलम लकड़ी की पार्टी कोयले का पुत्ता छुही कीबोड की उसमें डले टूटे वाल दुखद सूची नंबर 1 साला में अनुपस्थित होने पर शिक्षक के द्वारा मार पड़ती घर में बताने पर घर के लोगों द्वारा भी पड़ी मार नंबर दो कोचिंग की सुविधा नहीं नंबर 3 किसी भी गलती की शिकायत ना जाने गांव का कौन आदमी कर देता था बचपन की कहानी शेर और चूहा बचपन की कविता रसखान तथा मां खादी की चादर दे दे की कविता आज गई होती बोल रही हो रसखान रही का नंद के भाव नहीं
ReplyDeleteसुखद अनुभूति - सहेलियों के साथ खेलना वो भी आउटडोर games, जो आजकल बच्चे कम खेलते । वे mobile मे ही लगे रहते ॥ इससे हम सभी बच्चों का शारीरिक विकास अच्छा होता था ।
ReplyDelete2nd मेरा B.Sc.मे कॉलेज top करना और तत्कालीन विधायक द्वारा 10000/-, shield और प्रमाण पत्र मिलना । मम्मी बहुत खुश हुई थी उस दिन ॥और भी ऐसे कई लम्हे , जो मम्म्मी और भाई बहन के साथ गुजारे ....
दुखद अनुभूति - मेरे पापा का इस दुनिया से जाना , शायद मैं उसी दिन रोई होऊँगी सबसे ज्यादा , वो मुझे बहुत प्यार करते थे ॥ मैं सिर्फ 8 साल की थी .....वो सबसे ज्यादा दुःखद अनुभूति थी .....फिर हालांकि दुख आये , पर मम्मा के साथ से खुश रहते थे हम बच्चे ॥
मछली जल की रानी और उठो लाल अब आंखें खोलो ,...ये कविताएं बहुत प्रचलित थी और सूरदास कबीरदास जी के दोहे । तथा कहानियों मे कछुए खरगोश की ....जिससे हमें सीख मिलती ....हमें किसी को अपने से कमजोर नही समझना चाहिए ।
धन्यवाद 🙏
दीप्ति जैन शिक्षिका दतिया (म. प्र.)
बचपन के दिनों की यादों के विषय में बात करें तो मेरी सबसे सुखद स्मृतियों में से नाना-नानी के घर जाकर बहन -भाइयों के साथ घूमना तथा खेलना है और दुखद स्मृतियों में नाना जी का चले जाना और मां की तबीयत का बिगड़ना|
ReplyDeleteचल रे मटके टम्मक टूँ, मछली जल की रानी है, मां खादी की चादर दे दे ,उठो लाल अब आंखें खोलो, इत्यादि कविताएं और कहानियों में कछुआ तथा खरगोश की कहानी, ईदगाह कहानी है जिसमें बच्चा अपनी दादी के लिए चिमटा खरीद कर लाता है|
ASHIM KUMAR TIWARI CAC BALSAMUD RAJPUR BARWANI
ReplyDeleteहमारे बचपन की कविता--
हुए बहुत दिन बुढ़िया एक
चलती थी लाठी को टेक
उसके पास बहुत था माल
जाना था उसको ससुराल
मगर राह में चीते शेर
लेते थे राही को घेर
बुढ़िया ने सोची तदबीर
जिससे चमक उठी तकदीर
मटका एक मगाया मोल
लंबा लंबा गोल मटोल
उस में बैठी बुढ़िया आप
वह ससुराल चली चुपचाप
बुढि़या गाती जाती यूँ
चल रे मटके टम्मक टू।
KULDEEP kourav GMS chargaon kala block chichli district narsinghpur mp. Pre primary education me parents ka bahut hi important role hota h. Meri pre primary education ghar pe parents dwara bahut hi achhe se hui.tables ,numbers, alphabet sab learn ho chuka tha.
ReplyDeleteOk
ReplyDeleteकल्पना बेडेकर प्र.अ. जबलपुर
ReplyDeleteबचपन के दिनों का क्या कहना , मैं अपने आई - बाबा की प्रथम रत्न ,दिव्यांग होने पर भी कभी कमी महसूस नहीं होने दी । नौ माह से लेकर नौ वर्ष तक पैर में प्लास्टर होने के कारण मेरी आजी मुझे स्कूल छोडने -लेने जाती थी ।
मेरी बाल मंदिर की पटवर्धन काकू और प्राथमिक की कुलकर्णी बहिनजी ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया ।
उठो लाल अब आंखें खोलों , पुष्प की अभिलाषा,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी की रानी थी ।
बचपन में श्लोक का याद होना ।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया ।
बचपन में स्कूल जाना बहुत अच्छा तो नहीं लगता था लेकिन धीरे-धीरे स्कूल जाने में मजा आने लगा पढ़ाई करने में मजा आने लगा है पहले शिक्षा में इतना पूछ नहीं था अच्छा दी जाती थी बिना दबाव के आजकल की शिक्षा में दुनिया भर की जो चीजें आ गई हैं उनकी वजह से बच्चे खुद कंफ्यूज हो जाते हैं उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है इसलिए शिक्षा में वही सीरियल आ जाए जो बच्चों के लिए जरूरी है कक्षा पहली से आठवीं तक क्योंकि अगर आप प्रकार की चीजें करना क्या है इसलिए दुनिया भर के अभियानों का प्रैक्टिकल बच्चे को पढ़ाने में ना किया जाए तो ज्यादा अच्छा होगा मेरी नजरिए से क्योंकि पढ़ाई पहले की थी जो हम लोगों ने पढ़ाई में आता है और ना ही पढ़ाने में आता है
ReplyDeleteमैने जिस विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की है। वहाँ मेरे पापाजी ही शिक्षक थे। जो सभी बच्चों के ही नहीं अपितु पूरे गाँव के ही एक आदर्श शिक्षक रहे हैं। हम सभी बच्चों में विद्यालय जाने के प्रति इतना उत्साह रहता था कि समय से पहले ही पहुँचकर विद्यालय एवं आस-पास साफ सफाई कर, सभी वस्तुओं को व्यवस्थित कर लेते थे। एवं गुरुजी का सभी बहुत सम्मान करते थे।
ReplyDeleteबचपन मे मुझे पढ़ाई करना स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता था बचपन की एक कविता
ReplyDeleteभोर हुआ सूरज उगाया जल में पड़ी सुनहरी छाया अब तो जागो प्यारे
बचपन की दूसरी यादगार कविता
हुए बहुत दिन बुढ़िया एक
चलती थी लाठी को टेक
उसके पास बहुत था माल
जाना था उसको ससुराल
मगर राह में चीते शेर
लेते थे राही को घेर
बचपन के दिनों में कई सुखद और दुखदन स्मृतियां हमारे मन में बस जाती हैं बचपन में ठंड में समय पर स्कूल ना पहुंचने पर टीचर की मार कर डर लगता था पर विद्यालय में पहुंचकर अपनी कक्षा में सब साथियों के साथ मिलकर पढ़ाई करना खेलकूद करना प्राथमिक शिक्षा बहुत रुचिकर लगती थी थी चल रे मटके टम्मक टू खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी आदि कविताओं को सीखा जो आज भी हमें बहुत अच्छी लगती है। रमन श्रीवास्तव शासकीय हाई स्कूल धवारी गली नंबर 5 सतना
ReplyDeleteBachpan ki yaden ke sath Samay ki padhaai aur Khel Kaun Ki prakriya Sab alag dhang se thi lekin aaj ki puri prakriya Badal chuki hai bacchon ko fayda Hota Hai khel ku Mein
ReplyDeleteRadheshyam Lodhi Prathmik Shikshak
Prathmik Shala bandol Tahsil gotegaon Jila Narsinghpur Madhya Pradesh
बचपन में पिताजी द्वारा सुनाई गई कहानियां माताजी का अनुशासन और सर द्वारा हमेशा विद्यालय में मुझे सीखने के लिए अवसर देना विज्ञान के शिक्षक गॉड सर मुझे आज भी याद है जो हमेशा मुझे अवसर देते थे और जिसके कारण ही मैंने विज्ञान लेकर आगे पढ़ाई करी आज भी सर की बहुत याद आती है सुरेंद्र कुमार गुप्ता माध्यमिक विद्यालय देवरी
ReplyDeleteबचपन की सुखद स्मृति में गांव में अपने मित्रो के साथ खेलना पर्यटक स्थलों पर घूमना , दुखद स्मृति दूरदर्शन पर आने वाले कार्यक्रमों को ठीक से नहीं देख पाना कभी बिजली का ना होना या टीवी का नहीं चल पाना इत्यादि
ReplyDeleteबचपन की सुखद स्मृतियों में माता-पिता का और घर के बड़े बुजुगों का आशीर्वाद लेना, खेलना, पर्यटक स्थलों की सैर करने, स्कूल में सिखायी गयी हर बात को आत्मसात करना , गृहकार्य नियमित रूप से करना, माता-पिता द्वारा बताए गए हर कार्य को करना ,उनकी हर बात को मानना अच्छा लगता था और दुखद स्मृतियों में अपने किसी प्रिय मित्र का चले जाना, अपने घर कुछ ऐसे भैतिक संसाधन के न होने पर दुःखी होना जो अन्य लोगों के पास हो पर हमारे पास न होना।
ReplyDeleteबचपन मे मुझे पढ़ाई करना स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता था कभी किसी शिक्षक की डांट नही पड़ी क्योकि मेरा काम हमेशा पूरा रहता था सबके साथ खेलना पढ़ना अलग ही आनंद होता था ।बचपन की कविता मछली जल की कीकी रानी
ReplyDeleteमें योगेन्द्र सिंह रघुवंशी श मा शाला बेरुआ बचपन मे मुझे पढ़ाई करना स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता थाबचपन के दिनों में कई सुखद और दुखदन स्मृतियां हमारे मन में बस जाती हैं
ReplyDeleteबचपन की यादों की अगर आप बात करें तो पूर्व प्राथमिक के अनुभव को बताना चाहूंगी पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में मैं शाला जाने में बिल्कुल भी रुचि नहीं लेती थी बहुत छुट्टी लिया करती थी ।प्राथमिक के बाद कक्षा पहली से ऐसा परिवर्तन आया कि यदि तबीयत भी खराब हो तो शाला की छुट्टी नहीं करने का मन करता था पढ़ाई छूट जाने का डर रहता था ।आज भी सोचती हूं क्या कारण था जो पहले मैं स्कूल जाना नहीं चाहती थी ?क्या वहां का शिक्षण मुझे रुचिकर नहीं लगता था या मुझे घर और अपने दादा का प्रेम अधिक भाता था।
ReplyDeleteकैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद
ReplyDeleteबचपन से ही मुझे गणित में दिलचस्पी थी, परंतु अन्य विषयों की तरफ ध्यान नहीं था। इसलिए गणित जानने के कारण तो मैं होशियार था, परंतु अन्य विषयों में शिक्षकों की डांट खानी पड़ती थी।
ReplyDeleteसुखद अनुभव में याद है एक बार मैं अपने मित्रों के साथ स्कूल से सीधे उनके घर पर गया, उन्हीं के पास मेरी दो टीचर रहतीं थीं। उन्होंने जब पूछा तो मेरे मित्रों ने कह दिया कि मैं घर पर बता कर आया हूं। टीचरों के घर पर अविस्मरणीय अनुभव रहा। दुखद अनुभव चुंकि घर पर बता कर नहीं गया था, सो सब लोग मुझे ढूंढ़ रहे थे, पापा आॉफिस से आ गये, पूरा मोहल्ला मुझे ढूंढने में लगा, मां का रो-रो कर बुरा हाल। मैं जैसे ही मोहल्ले में घुसा तो लग गया कि आज बहुत पिटूंगा। मुझे देखते ही मां ने दौड़कर गले लगा लिया, पर पापा की बो गुस्से वाली नज़र अभी याद आती है।
सुखद स्मृति --दादी का स्कूल ले जाना बेर पापड़ खिलाना ! दुखद स्मृति --शिक्षक द्वारा पिटाई ,मुर्गा बनाना ! संग के साथी इस पर चिढ़ाते! खरगोश और कछुआ शेर और चूहा की कहानी आदि!
ReplyDeleteबचपन मे हम जिस स्कूल में पढ़ते थे उस स्कूल में एक बच्चे को तीन पहिये की सायकिल पर उसके घर बाले छोड़ने आते थे।हमने भी घर पर जिद्द की हम सायकिल पर जाएंगे किन्तु पिताजी ने मना कर दिया कि बड़े हो जाओ तब दिला देंगे,एक दिन हमारे मामा जी आये हमने अपनी मांग उन्हें भी बतायी तो उन्होंने हमारी मांग पूरी कर दी । जब सायकिल आयी तो हम बहुत खुश हुए किन्तु पिताजी बहुत नाराज हुए कि चोट लगा लोगे । सायकिल को हम पैरों से कम चला पाते थे,एक दिन हम सामने बाले के स्लोप पर चढ़ाकर नीचे की तरफ आ रहे थे तो सायकिल सहित गिर पड़े और हमारा माथा फट गया जिसमें कि पांच टांके लगे । पिताजी की बात सच साबित हुई।बचपन मे हमे शेर और चूहा व खरगोश और कछुआ कि कहानी बहुत पसंद आयी जबकि कविता के रूप में " यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता".…...व खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.....बहुत पसंद थी।
ReplyDeleteसुखद स्मृति-प्रतिदिन माता पिता का आशीर्वाद प्राप्त कर विद्यालय जाना,कपड़े के साधारण झोले में कलम दवाद,चमकती हुई काली पाटी और 1रुपये का मनोहरपोथी पहाड़ा, साथ ही झोले में कुछ मिट्टी लकड़ी आदि के स्वनिर्मित खिलौने।पानी पीने के बहाने से बार बार कक्षा से बाहर जाना।फैल पास होने का कोई डर नही।इस प्रकार से प्राथमिक शिक्षा बहुत रुचिकर थी।
ReplyDeleteयह जीवन का सुखद,खेलकूद ,भरा हर बात, और भावना पर सीखने सिखाने का अवसर देने का समय है।इसका सदुपयोग करने के अपार संभावनाएं प्रदान की गई हैं।
ReplyDeleteबचपन की यादें कुछ सुखद तो कुछ दुखद थी। मैंने गांव में रहकर अपनी प्राथमिक शिक्षा माध्यमिक शिक्षा पूर्ण की।उस समय सोशल मीडिया डीजिलाइजेशन बहुत कम था।रहन सहन सादा था मानव को केवल अपनी अनिवार्य आवश्यक्ता पूर्ण करने में लगा रहता था।साधनों का अभाव था।बच्चो का यूनिफार्म हाफ पेन्ट हाफ शर्ट हुआ करती थी।पहले से वर्तमान में शिक्षा के क्षैत्र में बहुत परिवर्तन देखने को मिलते है।
ReplyDeleteकविता- मां खादी की चादर देदे में गाँधी बन जाऊं।
कहानी-शेर और चूहा की कहानी
कहानी-कछुआ और खरगोश की कहानी
मुझे बचपन में अपने दोस्तों के साथ खेलने तथा उनके साथ स्कूल जाने में बहुत मजा आता था उस समय को याद करती हूं तो मुझे बहुत अच्छा लगता है की तरह हम बारिश के मौसम में कागज की नाव चलाती थी
बचपन में मेरी मां की तबीयत बहुत खराब हो गई थी वह यह समय मुझे बहुत दुखी हुआ आज भी याद आता हैं तो मुझे तकलीफ होती है
कविता -आगे कदम बढ़ाएंगे, पुष्प की अभिलाषा
कहानी- खरगोश और कछुआ, ईदगाह
रानी पटेल प्राथमिक शिक्षक
सुखद स्मृति--
ReplyDeleteनिश्चिंतता
माता पिता पर निर्भरता
मित्रों का साथ
खेलकूद
ग्रांड पेरेंट्स का स्नेह और साथ
दुखद स्मृति--
अपने कार्यों के लिये बडों पर निर्भर
बडों की डांट आदि
बचपन की कहानी---
खरगोश और कछुआ
शेर और चूहा
बचपन की कविता---
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झांसी की रानी आदि
बचपन की बाते मुझे याद आती है।उठो लाल अब आंखे खोलो पानी लाई मुंह धोलो।खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी, बुंदेले हर बोलो के मुंह हमने सुनी कहानी थी.....।खरगोश व कछुआ की कहानी।शेर व चूहे की कहानी।कक्षा में दो अकम दो दुवा चार....जोर जोर से बुलाकर पहाड़े सीखना।कक्षा में होमवर्क न ले जाने पर चुपचाप बैठे रहना।
ReplyDeleteबचपन का समय सब से प्यार और सबसे न्यारा होता है।बचपन के आनन्द को कभी भी भुला नही जा सकता है।बचपन में खेलना कूदना मस्ती मौज करना।सभी को अच्छा लगता है।बचपन की शैतानियों को कभी नही भुला जा सकता है।
ReplyDeleteबचपन का समय सब से प्यार और सबसे न्यारा होता है।बचपन के आनन्द को कभी भी भुला नही जा सकता है।बचपन में खेलना कूदना मस्ती मौज करना।सभी को अच्छा लगता है।बचपन की शैतानियों को कभी नही भुला जा सकता है।
ReplyDeleteबचपन की बहुत ही सुखद और दुखद घटना है जीवन में घटी हम बचपन में जब स्कूल जाते थे जब कोई मोबाइल नहीं थी कोई कंप्यूटर नहीं था उसके बाद भी शिक्षक लोग इतनी अच्छी शिक्षा देते थे जो आज वर्तमान में मोबाइल कंप्यूटर पर आकर ठहर गई मित्रों के साथ स्कूल जाना स्कूल में पढ़ाई के समय समझ कोई खेल ना होना फिर भी खेल कबड्डी जो होती थी स्कूल के द्वारा उस में भाग लेना और प्रथम द्वितीय की जब कभी प्रथम नहीं आते थे तो निराश होकर एक दूसरे को मिलाकर खुशियां मनाते थे हिंदी की पुस्तक उठो लाल अब आंखें खोलो पंचवटी इस तरह की कई कविताएं जो हम याद करते थे आज भी याद आती है बचपन आज याद आता है और वह बचपन आज के बच्चों में नहीं हो सकता जो हम लोगों ने प्राप्त किया
ReplyDeleteकहानी कछुआऔरखरगोश
ReplyDeleteकविता _नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
मैं बचपन मे बहुत शरारती था मुझे खेलने का बहुत शौक था घर के पास ही विद्यालय था जब मन हुया घर आकर भोजन करके पुनः शाला बापस चले गए पहले की शिक्षण ब्यवस्था बहुत बढ़िया थी बोझ नही था लेकिन आज की शिक्षा बोझिल बचपन कही खो से गया हैउठो लाल अब आंखें खोलों , पुष्प की अभिलाषा,
ReplyDeleteखूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी की रानी थी ।
बचपन में श्लोक का याद होना ।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया ।
बचपन की सुखद घटना जब पहली बार कविता सुनाने पर शिक्षिका ने गोद में उठा लिया
ReplyDeleteदूसरी मेरी टीचर रोज सुबह 4 बजे पूरे मोहल्ले में घूम कर देखती थी कि हम पढ़ाई कर रहे या नहीं
दुखद घटना
दूसरे बच्चे के मस्ती करने पर मुझे भी घुटना टेक की सजा जबकि में लिख रही थी बहुत अपमानित महसूस की
कविता
बड़ी भली है अम्मा मेरी ताजा दूध पिलाती है
कहानी
ईदगाह कहानी ने बहुत प्रभावित किया था
बचपन की यादों में की सुखद और दुखद स्मृति अंकित हैं।
ReplyDeleteअमर सिंह सोलंकी शासकीय माध्यमिक विद्यालय द्वारका नगर फंदा पुराना शहर भोपाल मध्यप्रदेश
Bachpan me apne dosto ke sath khelna or prakritik jagaho pr jana aadi
ReplyDeleteमैं पेड़ के नीचे खेलती थी मेरे दादा दादी मुझे कहानी सुनाते थे एवं ऊंचाइयों पर जाने की प्रेरणा देते थे जिससे मुझे उद्देश्य पूर्ण करने की शिक्षा मिलती थी।
ReplyDeleteमेरे बचपन की मधुर स्मृतियों में प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी माँ से एक नई कहानी सुनना, और उस कहानी के बारे में प्रतिप्रश्न कर अपनी जिज्ञासा शांत करना था।जब कभी नींद न आती तो माँ लोरी गाकर एवं थपकी देकर मुझे सुलाती।स्कूल में भी प्रति शनिवार बालसभा में सभी बच्चे नई नई चीजें सुनाते।
ReplyDeleteसुखद स्मृतियाँ:-
ReplyDelete(1) अल्हड़ जीवन कोई चिंता नही माता पिता का अपार स्नेह।
(3) साईकिल चलाना सिखने का सुखद अनुभव।
(2) गणित के शिक्षक का शैक्षणिक सहयोग
दु:खद स्मृतियाँ:-
(1)साईकिल करते वक्त हाथ मे पोस्ट फेक्चर।
(2) मातृत्व पक्ष के नजदीकी रिश्तेदार का अचानक कम आयु मे दुःखद निधन की आज भी याद आती है।मुझसे काफी स्नेह रखते थे।
कविताताएंं:- (1) सूरज के आते भोर हुआ
लाठी लेझिम का शोर हुआ
यह नागपंचमी झम्मक-झम
यह ढोल-ढमाका ढम्मक-ढम
मल्लों की जब टोली निकली।
यह चर्चा फैली गली-गली
दंगल हो रहा अखाड़े में
चंदन चाचा के बाड़े में।।
सुन समाचार दुनिया धाई,
थी रेलपेल आवाजाई।
यह पहलवान अम्बाले का,
यह पहलवान पटियाले का।
ये दोनों दूर विदेशों में,
लड़ आए हैं परदेशों में।
देखो ये ठठ के ठठ धाए
अटपट चलते उद्भट आए
थी भारी भीड़ अखाड़े में
चंदन चाचा के बाड़े में।।
(2) उस समय 'मध्य भारत English reader
Book' parts (1),(2) व (3) के नाम से course text Books पढ़ाई जाती थी । जिसकी एक कविता मुझे आज भी याद है
Do your best,your very best and do it every day.
Little Boy s and little girls thats no wisest way. No matter what work come to you ,do your with right good wleath.
सुखद बचपन कि स्मृतियां:
ReplyDeleteबचपन में हमें स्कूल जाने के कारण सुबह जल्दी गाय-भैंसों को चराने नहीं जाना पड़ता था। स्कूल में हमें खिचड़ी और सोयाबीन के बने कुरकुरे मिलते थे जिसे हम बड़े ही चाव से खाया करते थे। इष्ट मित्रों के साथ नना प्रकार के खेल खेलते थे और बहुत मोज मस्तियां करते थे यथा - पेड़ों पर चढ़ना,कूदना और फिर चड़ना।
बचपन की दुखद स्मृतियां:
तत्कालीन विद्यालय अनुशासन बहुत सख्त होते थे। छोटी सी गलती पर अनेक छडिया/डंडे पड़ते थे। घर पर पता चलने पर मम्मी पापा भी बुरी तरह से पिटाई करते थे। शासन द्वारा निशुल्क पाठ्य पुस्तकें वितरण व्यवस्था नहीं होने के कारण पुस्तकें स्वयं ही क्रय करनी पड़ती थी। हाथ से बनाए हुए थैले ही लेकर स्कूल जाना पड़ता था। सत्रारंभ के बाद लगभग 4-5 महीने तक नई किताबे उपलब्ध नहीं करवाई जाती थी।
प्रथम यादगार कविता:
"भोर हुआ सूरज उगाया जल में पड़ी सुनहरी छाया अब तो जागो प्यारे।"
द्वितीय यादगार कविता:
"आशीशों का आंचल भरकर प्यारे बच्चों लाई हूं युग जननी में भारत मां तुम्हारे द्वार आई हूं।"
किसी चिंता के जीवन ,नदी मैं नहाने जाना ,खेतों मैं जाना,पढ़ना एवम खेल
ReplyDeleteDo your best,you are very best and do it every day.
ReplyDeleteLittle Boys and little girls thats no wisest way. No matter what work come to your school or at your school do your with right good wleath.
Do your best,you are very best and do it every day.
ReplyDeleteLittle Boys and little girls thats no wisest way. No matter what work come to your school or at your home do it with your right good wleath.
माता पिता पर निर्भरता
ReplyDeleteग्रांड पेरेंट्स का स्नेह और साथ
दुखद स्मृति--
अपने कार्यों के लिये बडों पर निर्भर
बडों की डांट आदि
बचपन की कहानी---
खरगोश और कछुआ
शेर और चूहा
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झांसी की रानी
आदि।
Bachpan ke Samay Mein ham log Dadi Nani ke ghar Jate the aur vahan per kahaniyon ke Madhyam se Kai Prakar ki cheeze seekhte the
ReplyDeleteसुखद बचपन कि स्मृतियां:
ReplyDeleteबचपन में हमें स्कूल जाने के कारण सुबह जल्दी गाय-भैंसों को चराने नहीं जाना पड़ता था। स्कूल में हमें खिचड़ी और सोयाबीन के बने कुरकुरे मिलते थे जिसे हम बड़े ही चाव से खाया करते थे। इष्ट मित्रों के साथ नना प्रकार के खेल खेलते थे और बहुत मोज मस्तियां करते थे यथा - पेड़ों पर चढ़ना,कूदना और फिर चड़ना।
बचपन की दुखद स्मृतियां:
तत्कालीन विद्यालय अनुशासन बहुत सख्त होते थे। छोटी सी गलती पर अनेक छडिया/डंडे पड़ते थे। घर पर पता चलने पर मम्मी पापा भी बुरी तरह से पिटाई करते थे। शासन द्वारा निशुल्क पाठ्य पुस्तकें वितरण व्यवस्था नहीं होने के कारण पुस्तकें स्वयं ही क्रय करनी पड़ती थी। हाथ से बनाए हुए थैले ही लेकर स्कूल जाना पड़ता था। सत्रारंभ के बाद लगभग 4-5 महीने तक नई किताबे उपलब्ध नहीं करवाई जाती थी।
प्रथम यादगार कविता:
"भोर हुआ सूरज उगाया जल में पड़ी सुनहरी छाया अब तो जागो प्यारे।"
द्वितीय यादगार कविता:
"आशीशों का आंचल भरकर प्यारे बच्चों लाई हूं युग जननी में भारत मां तुम्हारे द्वार आई हूं।"
मैं बचपन में बहुत शरारती था मुझे खेलने का बहुत शौक था घर के पास ही विद्यालय था जब मन हुआ घर आकर भोजन करके पुनः साला वापस चले गए पहले की शिक्षण व्यवस्था बहुत बढ़िया थी बोझ नहीं था लेकिन आज की शिक्षण व्यवस्था रुचिकर है
ReplyDeleteBachpan mein Main Mujhe a padhaai Karna School Jana Achcha lagta tha mujhe a Aaj Bhi e bachpan ki ki kavita Yad hai Ashish on ka Aanchal bhar kar Pyare bacche Lai hun you Janani Mein Bharat Mata ka Dwar Tumhare I hu.
ReplyDeleteBachpan ka school Jana yadon se bhara h bahut maza aata ttha jab school jate tthhe mata pita ki mehnat ki vajha se aaj is layaq h
ReplyDeletePapa hame ghune meena bajar le gaye Maja Aya, meri gudiya gho gai. Dukh hua. AK dharaja ak dhi Rani dono mar gaye katam kahani. Udo lal ankhe kholo,,..,......
ReplyDeleteगांव में रहकर खेतों में जाना गाय का दूध लगाना व दूध पीना अच्छा लगता था। बच्चों के साथ लुका छुपी का खेल खेलना।मेले में जाकर सिनेमा देखना। शाला में जाकर कविता पढ़ना।चल रे मटके टम्मक टू अब बचपन की यादें ताजा हो गईं। अब तों स्वतंत्रता छीन गई।
ReplyDeleteप्राथमिक शिक्षा के दिनों में पैदल स्कूल जाना रूमाल में आलू का भर्ता रोटी बाँधकर ले जाना मित्रों के साथ बैठकर खाना सुखद था अकबर बीरबल के किस्से पढना सुनाना। ऐ मेंरे वतन के लोगों जरा आँख में भर लो पानी गीत सुनाना आदि।
ReplyDeleteबचपन की यादों की अगर आप बात करें तो पूर्व प्राथमिक के अनुभव को बताना चाहूंगी पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में मैं शाला जाने में बिल्कुल भी रुचि नहीं लेती थी बहुत छुट्टी लिया करती थी ।प्राथमिक के बाद कक्षा पहली से ऐसा परिवर्तन आया कि यदि तबीयत भी खराब हो तो शाला की छुट्टी नहीं करने का मन करता था पढ़ाई छूट जाने का डर रहता था ।आज भी सोचती हूं क्या कारण था जो पहले मैं स्कूल जाना नहीं चाहती थी ?क्या वहां का शिक्षण मुझे रुचिकर नहीं लगता था या मुझे घर और अपने दादा का प्रेम अधिक भाता था।
ReplyDeleteरमेश प्रसाद महरा प्राथमिक शिक्षक ब्लांक पाटन जबलपुर संकुल हाई स्कूल उड़ना सड़क
पहेली सुखद स्मृति में-- पापा के साथ मेले में जाना।
ReplyDeleteदूसरी दुखद स्मृति-- चवन्नी पैसे का निकल लेना ।
पहेली कविता में --बड़े सवेरे मुर्गा बोला चिड़ियों ने अपना मुंह खोला ।
दूसरी कविता ---चल रे मटके टम्मक टू स्मृति में याद है।
बचपन की यादों की अगर आप बात करें तो पूर्व प्राथमिक के अनुभव को बताना चाहूंगी पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में मैं शाला जाने में बिल्कुल भी रुचि नहीं लेती थी बहुत छुट्टी लिया करती थी ।प्राथमिक के बाद कक्षा पहली से ऐसा परिवर्तन आया कि यदि तबीयत भी खराब हो तो शाला की छुट्टी नहीं करने का मन करता था पढ़ाई छूट जाने का डर रहता था ।आज भी सोचती हूं क्या कारण था जो पहले मैं स्कूल जाना नहीं चाहती थी ?क्या वहां का शिक्षण मुझे रुचिकर नहीं लगता था या मुझे घर और अपने दादा का प्रेम अधिक भाता था।
ReplyDeleteइसके अलावा माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखी गई कविता पुष्प की अभिलाषा को की देशभक्ति के मूल्य को समझाती और अभिप्रेरित करती है और प्रेमचंद द्वारा लिखी पंच परमेश्वर जैसी कहानी हमें सच्चाई की राह पर प्रेरित करने वाली लगी।
बचपन में मुझे रोज विदयालय जाना अच्छा लगता था मुझे छोटी छोटी भगवान की फोटो जमा करने का शौक था
ReplyDeleteअरूणा शर्मा शा मा शाला खूंथी जिला सतना
बचपन के काफी सुखद एवं दुखद अनुभव है उनमें कुछ अनुभवों को साझा करते हुए चुकी मेरी शिक्षा 1970 एवं 80 के दशक की है एवं काफी पिछड़े ग्रामीण इलाके से महिला होने के नाते स्कूल जाना एक कठिन कार्य होता था साथ ही स्कूल एवं गृह कार्य को संभालना एक चुनौती थी ऐसे ही जब उच्च शिक्षा के लिए पहुंचे तो एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में दिक्कत होती थी दसवीं के बाद किसी दूसरे गांव जाना स्कूल के लिए एक चुनौती था लेकिन अपने गांव की सबसे प्रथम नाइंथ इलेवंथ पास पास करने वाली पहली छात्रा थी बचपन में कई कहानियां पढ़ी लेकिन प्रेमचंद्र की कहानियां सबसे रोचक थी साथ ही मेरी दादी की कहानियां जो अलग-अलग दिन अलग-अलग होती थी वह यादगार है कविता में सुभद्रा कुमारी चौहान की रानी लक्ष्मीबाई कविता मेरी पसंदीदा है
ReplyDeleteयह जीवन का सुखद,खेलकूद ,भरा हर बात, और भावना पर सीखने सिखाने का अवसर देने का समय है।इसका सदुपयोग करने के अपार संभावनाएं प्रदान की गई हैं।
ReplyDeleteयहा जीवन का सुखद खेलकूद भर हर बात और भावना पर सीखने सिखाने का अवसर देने का समय है इसका सदुपयोग करने के अपार संभावनाएं प्रदान की गई है
ReplyDeleteप्राथमिक शिक्षा के दौरान बड़े सुखद अनुभव रहे!साथ बैठ कर टिफिन खाना गिली डंडा खेलन races में शाला से भाग जाना बहनजी द्वारा सजा दिया जाना आदि यादे है I
ReplyDeleteसुखद स्मृति--
ReplyDeleteनिश्चिंतता
माता पिता पर निर्भरता
मित्रों का साथ
खेलकूद
ग्रांड पेरेंट्स का स्नेह और साथ
दुखद स्मृति--
अपने कार्यों के लिये बडों पर निर्भर
बडों की डांट आदि
बचपन की कहानी---
खरगोश और कछुआ
शेर और चूहा
बचपन की कविता---
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झांसी की रानी
बचपन का यह समय सबसे प्यारा होता है| बचपन के आनंद को कभी भुला नहीं जा सकता है|1 बचपन में खेलना, कूदना, गाना, घर-घर खेलना, स्कूल जाना है| यह खेल दोस्तों के साथ मनोरंजन करना आदि दुखद की कभी दोस्तों के साथ बाहर जाने नहीं दिया जाता था रोज स्कूल में याद करके जाना पड़ता था|
ReplyDeleteBano Bee Ansari
ReplyDeleteबचपन का यह समय सबसे प्यारा होता है| बचपन के आनंद को कभी भुला नहीं जा सकता है|1 बचपन में खेलना, कूदना, गाना, घर-घर खेलना, स्कूल जाना है| यह खेल दोस्तों के साथ मनोरंजन करना आदि दुखद की कभी दोस्तों के साथ बाहर जाने नहीं दिया जाता था रोज स्कूल में याद करके जाना पड़ता था|
बचपन की यादें - वह बचपन के दिन ,पूरे दिन शरारत करना जो करना है सो करो ।खेलो, कूदो ,चॉकलेट खाओ ,कहीं भी जाओ ,कोई रोक नहीं जिस से मिलना है ।उससे मिलो कोई रोक नहीं।
ReplyDeleteमम्मी का डांटना रुला देता था ।कोई चीज लेना हो अगर ना मिले तो रोना आ जाता था।
कविता - मां खादी की चादर दे दो ।
मैं गांधी बन जाऊंगा।
कहानी -
हार की जीत
मैं बचपन मे बहुत शरारती था मुझे खेलने का बहुत शौक था घर के पास ही विद्यालय था जब मन हुया घर आकर भोजन करके पुनः शाला बापस चले गए पहले की शिक्षण ब्यवस्था बहुत बढ़िया थी बोझ नही था लेकिन आज की शिक्षा बोझिल बचपन कही खो से गया है
ReplyDeleteबचपन की यादों में स्कूल में अपने दोस्तों के साथ खेलना,घूमना बहुत सुखद अनुभव था...
ReplyDeleteMera pariwar pahle se hi garibi jita raha .maine padai ki mehnat kiya aur shikshak bana .Aaj mujhe bahut khushi hoti .jab mai apne school ke bachchon apne sangharsh ki story batata hoo .aur bachchon ko mehnat se padata bhi hoon.
ReplyDeleteबचपन में बड़ा दुलार था पर स्कूल मे पढ़ाई-लिखाई में लापरवाही बरतने पर डांट मार पड़ती थी एक दिन शाला में नहीं गये मन्दिर की सीढ़ियों पर खेलने के बाद घर आ गए कह दिया कि स्कूल से आए हैं पर उसके पहले ही घर पर ख़बर पहुंच गई किस्म भाई बहन स्कूल नहीं गए मन्दिर पर खेल रहे थे बहुत डांट मार पड़ी थी।
ReplyDeleteM jab bachpan m school jata to bahut he dukh hota tha udas ho jata kyoki jab yaad ya homework nhi hota to sir ki dat or Mar padti lekin jab chutti hoti ya lunch ya fir jis sir se Mar pdni he uska period nikal jata to kasam se itni khusi hoti thi ki sab kuch mil gya gya ho
ReplyDeleteM jab bachpan m school jata to bahut he dukh hota tha udas ho jata kyoki jab yaad ya homework nhi hota to sir ki dat or Mar padti lekin jab chutti hoti ya lunch ya fir jis sir se Mar pdni he uska period nikal jata to kasam se itni khusi hoti thi ki sab kuch mil gya gya ho
ReplyDeletePapa ne cycle dilay n mere Papa ki tbiyat khrab hui macchli jal ki rani h
ReplyDeleteबचपन का समय बहुत सुहाना होता है बचपन में बड़ा दुलार था माता-पिता का प्रेम शिक्षकों का अपनापन आज भी याद आते हैं सुहाना पल शिक्षकों द्वारा अन्य किसी नाम से बुलाना तो अच्छा लगता था एक अपनापन था किसी प्रश्न को बार बार पूछना अच्छा लगता था उसमें एक अपनापन झलकता था अपनी बैठे नहीं है पार्टी ले जाना खाने के लिए टॉफी वगैरा ले गया ना मां के हाथों की बनी पूड़ी और सब्जी का हलवा यह सब सुखद पल हैं एक सुखद पल वार है इसमें मेरे दोस्त पेड़ की चार्ज होती है जो बरगद पेड़ की उस पर झूल रहा था पकड़ के मैंने कहा कितना दूर हो गए उसने हां छोड़ कर कहां इतना और धड़ाम से नीचे गिरा हम लोग उसका आज भी मजा लेते हैं दुखद पल जब हमसे कोई होमवर्क नहीं मानता था और टीचर क्लास से बाहर निकाल खड़ा कर देते थे दुखद पल था कि मेरे सभी दोस्त नदी तैरने जाते थे लेकिन मैं घर से नहीं निकल पाता था बहुत सी ऐसी यादें होती हैं जो सुखद दुखद होती है अधिकांश सुखद याद हमें याद रह जाती हैं
ReplyDeleteबचपन का समय बहुत ही याद आता है।उस समय जब हम पढते थे तो हमारे गाँव में स्कूल नही था।पास के गाँव में 2 कि.मी. पैदल चल कर पढने जाते थे।हमारे आर्दश हमारे पिताजी हमें स्कूल के बाद घर पर पढाते थे।हमारे सर हमे बहुत अच्छा समझाते थे।कक्षा5 की बोड की परीक्षा हेतु 10 कि.मी.दूर गये चार दिन वहीं एक मंदिर के बरामदे में रुक कर पेपर दिये ।
ReplyDeleteबचपन का समय बहुत ही याद आता है उस समय जब हम पढ़ने जाते थे तो हमारे गांव में स्कूल है भारत के गांव में 2 किलोमीटर पैदल चलकर जानू पढ़ने जाते थे हमारे आदर्श पिता जी हमें स्कूल के बाद घर पर भी पढ़ाते थे हमारे गांव में हमारे गांव में एक तालाब था उसमें हम लोग स्नान करते थे और दूसरे के खेत से चने की भाजी खोजकर लाते थे और वहीं पर भाजी रोटी खाते थे
ReplyDeleteनरेन्द्र सोनी एकीकृत शाला ईशरपुर ,विकास खण्ड- बनखेड़ी, जिला होशंगाबाद,
ReplyDeleteबचपन में प्राथमिक शाला में अध्यनरत रहते हुए एक फिल्म डॉन जिसका एक लोकप्रिय गीत " खाइके पान बनारस वाला" सारी कक्षा उस गाने को जोर-जोर से गा रही थी। उस में मैं भी शामिल था, (यह सुखद था) इसके बाद प्रधान पाठक द्वारा पिटाई की गई। ( यह दुःखद था)
बचपन में मेरी लोकप्रिय कविता " चल रे मटके ठम्मक टू" एवं मां खादी की चादर दे दे, मैं ग़ांधी बन जाऊ"
कहानी में " ईदगाह " और " पांच बातें
बचपन की सुखद स्मृतियों मे कैद हैं,मेरे दादाजी,दादीजी का असीम स्नेह ,उनका पढ़ाना, पहाड़े सिखाना।पापा की सर्विस बैंक में होने से माता पिता का बाहर रहना और उनका लगभग हर जिद को पूरा करना ।पढ़ाई में श्रेष्ठ होने का श्रेय मैं अपने दादाजी को ही देती हूं ,क्योंकि मुझे आज भी याद है ,पांचवी की परीक्षा में घर आकर जब गणित का पेपर उन्हें हल करके बताया ,तो उन्होंने तुरंत कहा कि तुम्हे 50 मे से 47 नंबर ही आएंगे क्योंकि एक सवाल मे गुणा करना भूल गई हो। बचपन में दुखद स्मृतियां अक्सर होती ही कहां है,पर एक ही बात सालती थी मां पापा का बाहर होना।।
ReplyDeleteकविताएं और प्रार्थना तो आज भी याद है -
स्मृतियों की कैद में - मां खादी की चादर दे दे,और हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए।
आदरणीय शिक्षक गण की तब की मधुर स्मृतियां आज भी आंखे नम कर देती है,क्योंकि जो सीखा , उसमें जीवन जीने की कला तो थी ही पर मेरे मन में वो सीख अमिट और अनमोल है।
बचपन की यादों में स्कूल में अपने दोस्तों के साथ खेलना घूमना बहुत सुखद अनुभव था
ReplyDeleteबचपन का सरकारी स्कूल जिसमे बगैर टैंशन के अध्ययन।
ReplyDeleteबाबा खङगसिहं की कहानी जिसमे ठग उनसे घोडा ले लेता है बिमारी के बहाने और बाबा उससे किसी को घटनाक्रम बताने को मना करते है।
क्योंकि आगे कोई बिमार की मदद नही करेगा।
यह कदम का पेङ अगर माज होता यमुना --- मै भी बनता।
बरसात के दिनों में बहुत सुखद अनुभूति होती थी, हम गांव से दूर बहार पढ़ने जाया करते थे। वह भी अविस्मरणीय है।। राजेश कुमार जांगिड़, ढोटी स्कूल, जिला-श्योपुर, मध्यप्रदेश।।
ReplyDeleteप्राथमिक शिक्षा के समय शिक्षक गण सभी छात्रों को लंबी कूद ऊंची कूद का अभ्यास कराने के लिए नदी के किनारे रेत में अभ्यास कराने ले जाते थे । सभी साथियों के साथ खेलने में बड़ा आनंद आता था। दुखद घटना माध्यमिक शिक्षा के समय छुट्टी के बाद विद्यालय से घर आते समय रास्ते में नदी पड़ती थी नदी में बाढ़ आ जाने के कारण पार करना मुश्किल था। हम तैरकर घर वापस आए।
ReplyDeleteबचपन की कविता-जागो प्यारे
उठो लाल अब आंखें खोलो
पानी लाई हूं मुंह धो लो।
बीती रात कमल दल फूले,
उसके ऊपर भंवरे झूले।
चिड़िया चहक उठी पेड़ों पर,
बहने लगी हवा अति सुंदर।
नभ में प्यारी वाली छाई,
धरती ने प्यारी छबि पाई।
भूर हुआ सूरज उग आया,
जल में पड़ी सुनहरी छाया।
नन्ही नन्ही करने आई,
फूल खिले कलिया मुस्काई।
इतना सुंदर समय मत खोओ,
मेरे प्यारे अब मत सोचो।
कहानी -पांच बातें
पढ़ने में अच्छी लगती थी।
बचपन की सुखद स्मृति में गांव में अपने दोस्तों के साथ खेलना प्राकृतिक स्थानों पर घूमना दुखद स्मृति दूरदर्शन पर आने वाले कार्यक्रमों को ठीक से नहीं देख पाना
ReplyDeleteबचपन में जब विद्यालय में पढ़ने जाया करते थे वहां पर पभवन नहीं था बल्कि पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करती थी शाम को घर आने पर दादी मुझे पढ़ाया करती तथा पुरानी पुस्तकों से काम चलाना पड़ता था एवं घर का भी कुछ काम करता था तथा पढ़ाई करता था निवारी माध्यमिक शिक्षा सुनील तिवारी माध्यमिक शिक्षा जन शिक्षा केंद्र
ReplyDeleteDecember 18, 2020 at 2:40 AM
ReplyDeleteमैं बचपन मे बहुत शरारती था मुझे खेलने का बहुत शौक था घर के पास ही विद्यालय था जब मन हुया घर आकर भोजन करके पुनः शाला बापस चले गए पहले की शिक्षण ब्यवस्था बहुत बढ़िया थी बोझ नही था लेकिन आज की शिक्षा बोझिल बचपन कही खो से गया है
नाम - बृज बिहारी मिश्रा माध्यमिक शिक्षक GMS मऊहरिया लालन अमरपाटन सतना।
ReplyDelete#मेरे बचपन की सुखद यादे :-
1 - मल दोस्तों के साथ खेलना और मस्ती करना ।
2 - बरसात के पानी में कागज की नाव बनाकर चलाना ।
3 - पापा के साथ बाजार घूमने जाना।
#मेरे बचपन की दुखद यादें
1 - जब दादा जी का निधन हो गया तक पूरा घर शोक में डूबा था मै उन्हें सबसे प्यारा था ।
2 - जब माताजी पढ़ाने बैठ आती थी तब बहुत ही कष्ट होता था।
3 - जब गांव के बड़े बच्चे खेल में शामिल नहीं करते थे तो बहुत दुख होता था ।
मेरा बचपन बचपन बहुत गरीब है निकला प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई और मैंने विषम परिस्थितियों में अध्ययन करते हुए 11 वीं पास की 11 वी पास करने के बाद मुझे शिक्षा विभाग में शिक्षक पद मिला जो पूर्ण मनोयोग से कर रहा हूं और समाज को कुछ देने का प्रयास करता हूं मैं अपनी दादी के पास बैठकर हमेशा कहानी उनको सुंदरता था और वह कहानियां जी मुझे याद है उस समय के हाथों को अपने बच्चों के साथ भी साझा करता हूं जीवन में कहानियों का बहुत बड़ा योगदान है और उसका जीवन में व्यक्ति फायदा भी उठा सकता है कहानियां जीवन में व्यक्ति को एक मार्गदर्शक रूप में उसके व्यक्ति विकास में अहम भूमिका निभाती है इसलिए आज के जमाने में या प्रथा जो है खत्म होती जा रही है जिस चिंता का विषय है
ReplyDeleteBachaan me chand sikke jeb me hote they to bhi ham dhani thay.par aaj jitana bhi kamao karj me hi rahate hai. Bachapan me sabhi vapas jana chahate hai.
ReplyDeleteमैं सुनील कुमार पांडे बचपन मेरा बहुत ही लाड प्यार और शरारत भरा था मैं अपने घर में सबसे छोटा था इसलिए मेरा लाड प्यार था।
ReplyDeleteमेरा बचपन ग्रामीण परिवेश में गुजरा में अपने गांव की ही पाठशाला में प्राथमिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा ग्रहण किया और फिर इसके बाद उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिए मुझे शहर जाना पड़ा मैं जब 9वी पढ़ रहा था तब हम लोग एक बार नहाने नदी पर गए थे और नदी पर हम खूब छलांग मार मार कर रहे थे नहा रहे थे इतने में हमारा एक दोस्त भी नदी पर भूल गया और वह डूबने लगा हमें बड़ा डर लगा फिर हम सब लोगों ने उसको मिल करके बचाया।
गांव में हम लोग आम तोड़ने जाया करते थे चना खाने जाया करते थे और बहुत ही शरारत किया करते थे खेतों में हम लोग चारा काटने जाया करते थे और इस प्रकार से खलियान कभी हमने काम किया है और बहुत ही आनंददाई वातावरण में हमने अपना बचपन गुजारा है मुझे लगता है कि फिर से काश मुझे भी बचपन मिल जाता धन्यवाद
प्र प्रवेश के शुरुआती दिनों में साला में अच्छा नहीं लगता था रोना आता था परंतु 1 वर्ष बाद साथियों के साथ खेलने में मजा आता था slate पट्टी पर लिखने में बहुत अच्छा लगता था
ReplyDeleteमैं सुनीत कुमार पांडेय। बचपन मेरा बहुत ही लाड प्यार और शरारत भरा था मैं अपने घर में सबसे छोटा था इसलिए मेरा लाड प्यार था।
ReplyDeleteमेरा बचपन ग्रामीण परिवेश में गुजरा में अपने गांव की ही पाठशाला में प्राथमिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा ग्रहण किया और फिर इसके बाद उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिए मुझे शहर जाना पड़ा मैं जब 9वी पढ़ रहा था तब हम लोग एक बार नहाने नदी पर गए थे और नदी पर हम खूब छलांग मार मार कर रहे थे नहा रहे थे इतने में हमारा एक दोस्त भी नदी पर भूल गया और वह डूबने लगा हमें बड़ा डर लगा फिर हम सब लोगों ने उसको मिल करके बचाया।
गांव में हम लोग आम तोड़ने जाया करते थे चना खाने जाया करते थे और बहुत ही शरारत किया करते थे खेतों में हम लोग चारा काटने जाया करते थे और इस प्रकार से खलियान कभी हमने काम किया है और बहुत ही आनंददाई वातावरण में हमने अपना बचपन गुजारा है मुझे लगता है कि फिर से काश मुझे भी बचपन मिल जाता धन्यवाद
Compitition ki bhawna thi man lagakar padai karte the masti karte the koi tention nahi thaaankho me naye naye sapne the
ReplyDeleteबचपन कि सुखद यादे -कोई जवाबदेही नहीं केवल लिखना पढ़ना दोस्तों के साथ खोखो कब्बडी खेलना आदि ।दुखद यादें बालसखा से किसी बात पर झगड़ा हो जाने के कारण बोलचाल बंद हो जाना काफी दुखद यादे हैं । कछुआ खरगोश अंधा लंगडा शेर चूहा कहानियों व खूब लड़ी मरदानी वो तो झांसी वाली रानी थी। आज भी जेहन मे हैं । युवराज सोलंकी बदनावर धार ।
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ReplyDeleteबचपन का समय सबसे अनोखा होता है बचपन के आनंद को भी कभी भूलना नहीं जा सकता बचपन में खेलना कूदना मस्ती मौज करना सभी को अच्छा लगता है मुझे याद आती है बचपन की यादे। बचपन कीशैतानियां को कभी नहीं भुलाया जा सकताउठो लाल अब आंखें खोलों , पुष्प की अभिलाषा,
ReplyDeleteखूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी की रानी थी ।
बचपन में श्लोक का याद होना ।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया ।
परिवार वालो द्वारा लड़कियों की पढ़ाई का विरोध करने पर भी दादी और माता - पिता द्वारा पढ़ने भेजना बहुत सुखद अनुभूति तथा परिवार वालों द्वारा पढ़ाई नहीं करने देना और परेशान करना बहुत ही दुःखद अनुभूति है।कविता 1 - उठो लाल अब आँखे खोलो पानी लाई हुँ मुँह धोलो.......
ReplyDelete2- हुए बहुत दिन बुढ़िया एक, चलती थी लाठी को टेक,जाना था उसको ससुराल.....आदि।
Indira barde
ReplyDeleteबचपन की यादें वापस ताजा हो रही हैं जब मैं कक्षा 5 में पढता था उस समय विद्यालय के लिए भी भवन नहीं था एक इमली के पेड़ के नीचे कक्षाएं लगायीं जाती थी और एक सन्दूक में सारा आफिस! उसी बर्ष एक नये शिक्षक का पदाकन हुआ था और मैं अपनी कक्षा का मानीटर था कि शिक्षक महोदय ने देखा कि मैं बायें हाथ से लिखता हूं तब वो पिटाई की, जिससे कई दिनों तक बुखार आया
ReplyDeleteIndir barde P/S BHAKARA BLOCK JUNNARDEO
ReplyDeleteपुराने समय मे लड़कियो को पढ़ाई करने के लिए बहार नही भेजा नही जाता था ।
माँ खादी की चादर दे दे में गाँधी बन जाउँगा ।
स्लेट मे लिखकर लेजाते थे ।
गांव में पहली पहली बार प्राथमिक शाला खुली थी नए-नए गुरु जी हमारे गांव में आए थे एवं उन्होंने ग्राम में संपर्क किया हमारे घर भी आए एवं हमारा नाम पहली कक्षा में दर्ज कर लिया हमें भी समझाया हम भी खुशी खुशी स्कूल चले गए स्कूल में हम केवल 7 बच्चे ही पहली कक्षा में दर्ज थे बस एक ही कक्षा और एक ही गुरु जी गुरु जी हमें पूरी लगन से पढ़ाते हमें बहुत आनंद आता था वह हमें कभी डांटते नहीं थे हमारे साथ बड़े प्रेम से तोहार करते थे शाम को हमारे घर आकर पिताजी के साथ बैठते थे और धार्मिक चर्चाएं करते थे पता है हमें भी घर में ही पढ़ाई करना पड़ता था डर तो फिर भी लगता था हमारे गुरुजी पढ़ाई के साथ-साथ नाटक धार्मिक गाने की अंताक्षरी खेल कूद कुश्ती आदि खेल कर आते थे विद्यालय का वातावरण बहुत आनंद आई होता था
ReplyDeleteबचपन याद आता है और बच्चे के साथ बिधालय में पठन-पाठन के साथ आसपास धपपा का खेल और कड़ियां गाना बहुत अच्छा लगता था
ReplyDeleteबचपन की सुखद स्मृति में गांव में अपने दोस्तों के साथ खेलना प्राकृतिक स्थानों पर घूमना दुखद स्मृति दूरदर्शन पर आने वाले कार्यक्रमों को ठीक से नहीं देख पाना कभी बिजली का ना होना या टीवी का नहीं चल पाना
ReplyDeleteबचपन की बहुत ही सुखद और दुखद घटना है जीवन में घटी हम बचपन में जब स्कूल जाते थे जब कोई मोबाइल नहीं थी कोई कंप्यूटर नहीं था उसके बाद भी शिक्षक लोग इतनी अच्छी शिक्षा देते थे जो आज वर्तमान में मोबाइल कंप्यूटर पर आकर ठहर गई मित्रों के साथ स्कूल जाना स्कूल में पढ़ाई के समय समझ कोई खेल ना होना फिर भी खेल कबड्डी जो होती थी स्कूल के द्वारा उस में भाग लेना और प्रथम द्वितीय की जब कभी प्रथम नहीं आते थे तो निराश होकर एक दूसरे को मिलाकर खुशियां मनाते थे हिंदी की पुस्तक उठो लाल अब आंखें खोलो पंचवटी इस तरह की कई कविताएं जो हम याद करते थे आज भी याद आती है बचपन आज याद आता है और वह बचपन आज के बच्चों में नहीं हो सकता जो हम लोगों ने प्राप्त किया
ReplyDeleteबचपन की सुखद स्मृति में गांव में अपने दोस्तों के साथ खेलना प्राकृतिक स्थानों पर घूमना दुखद स्मृति दूरदर्शन पर आने वाले कार्यक्रमों को ठीक से नहीं देख पाना
ReplyDelete.प्राथमिक शिक्षा के दिनो मे सुखद लगता था जब बच्चो के साथ बैठकर खाना गाना बजाना एवंदु खेल खेलते थे। दुखद यह कि जब हम अपनी लापरवाही से भाग नही कर पाये सर जी ने पिता जी के सामने कान पकड़कर उठा कर पटक दिया था।............by Anjana Chopra☺️☺️
ReplyDeleteIMO Shrimati Anita more Yahan Jeevan Ka Khel ko Bhara Har Baat aur Bhavna per sikhane sikhane ka avsar dene ka samay hai iska sadupyog karne A Kay Apaar sambhavnaye pradan ki gai hai
ReplyDeleteबचपन की यादों में खो जाना ही सुखद स्मृति है अपनाओ कागज की नाव एवं गिल्ली डंडा खेलना आज के बच्चे तो इन खेलों से यह से दूर ही हो गए हैं यही दुखद स्मृति है जो आजादी नाना नानी के यहां हुआ करती थी वह दादा-दादी क्या नहीं होती इससे बड़ा कष्ट होता था नानी द्वारा राजा रानी की कहानियां सुनाई जाती थी हम बड़े चाव से सुनते थे रेडियो पर गाने सुनना वह कविता सुनना अपने आप में आज की दूरदर्शन से कहीं बेहतर लगता था हरि ओम नमस्कार
ReplyDeleteमेरे बचपन में सबसे अधिक प्रभावित कर ने वाली घटना में मेरे शिक्षकों से मिले साथ का प्रयास का एवम शिक्षा का है जिसने मुझे हर हालत में शिक्षा में सुधार लाने को लेकर दिया
ReplyDeleteबचपन में मेरे सुखद अनुभव निम्न हैं
ReplyDeleteग्राम में लगने वाला मेला घूमने गए थे।
मेले में दंगल में पहलवानों को कुश्ती लड़ते हुए देखा था।
तेज हवा में फिरकी चलाना।
ग्राम बडैरा बुजुर्ग तहसील डबरा जिला ग्वालियर में पहाड़ी की चढ़ाई कर चोटी पर बैठना।कविता लिखना।कहानी लिखना।देश में होने वाली किसी घटना विशेष पर दोस्तों के साथ विचार विमर्श करना।खेत पर जाना, चने खाना। सर्दी के मौसम में अलाव पर तापना। वरसात के मौसम मे नहाना।रामलीला देखना। कृष्ण लीला देखना।मदारी एवं जादूगर का खेल देखना। वगीचे में पानी देना।
बचपन में दुखद अनुभव निम्न हैं।
बुजुर्गों द्वारा खेलने की मना करना।
चचेरे बड़े भाई का असमय गुजर जाना।
पडौसियो द्वारा झगड़ा करना।
पंगत में भोजन खाने के लिए जाने का मौका न मिलना।
कहानी,,,,,,, बचपन में माताजी तरह तरह की कहानी सुनाती थी।उनमें से एक थी श्रवण कुमार की कहानी। तुलसी विवाह की कहानी।शंकर जी एवं श्री राम विवाह की कहानी।मैं भी अपने साथियों को तरह तरह की कहानी सुनाता था।
बचपन में मेरे सुखद अनुभव निम्न हैं
ReplyDeleteग्राम में लगने वाला मेला घूमने गए थे।
मेले में दंगल में पहलवानों को कुश्ती लड़ते हुए देखा था।
तेज हवा में फिरकी चलाना।
ग्राम बडैरा बुजुर्ग तहसील डबरा जिला ग्वालियर में पहाड़ी की चढ़ाई कर चोटी पर बैठना।कविता लिखना।कहानी लिखना।देश में होने वाली किसी घटना विशेष पर दोस्तों के साथ विचार विमर्श करना।खेत पर जाना, चने खाना। सर्दी के मौसम में अलाव पर तापना। वरसात के मौसम मे नहाना।रामलीला देखना। कृष्ण लीला देखना।मदारी एवं जादूगर का खेल देखना। वगीचे में पानी देना।
बचपन में दुखद अनुभव निम्न हैं।
बुजुर्गों द्वारा खेलने की मना करना।
चचेरे बड़े भाई का असमय गुजर जाना।
पडौसियो द्वारा झगड़ा करना।
पंगत में भोजन खाने के लिए जाने का मौका न मिलना।
कहानी,,,,,,, बचपन में माताजी तरह तरह की कहानी सुनाती थी।उनमें से एक थी श्रवण कुमार की कहानी। तुलसी विवाह की कहानी।शंकर जी एवं श्री राम विवाह की कहानी।मैं भी अपने साथियों को तरह तरह की कहानी सुनाता था।
मेरा स्कूल घर के बिल्कुल पास ही था वहा जब घंटी बजती थी तो आवाज हमारे घर तक आती थी जितनी देर तक घंटी बजती थी हम उतनी देर मे स्कूल पहुंच जाते थे कभी कभी लेट हो जाते तो प्यून हमे chhadi लेके घर लेने aa जाती सजा के तौर पर हमे ब्लैक बोर्ड पर लिखे गिनती पहाड़ा बुलवाना पड़ते या फिर ग्राउंड के पत्थर कागज साफ करने पड़ते थे इसका परिणाम है कि आज हम समय से कही भी पहुंच जाते हैं पड़ते समय यदि कोई गलती हो जाती थी तो madam ka वो बहुत ही प्यार से chhdi मारते हुए कहना कि chhadi पड़े chham chham vidya आये गम gam मुझे अभी तक याद है बचपन की कविता चल रे मटके tammak tu abhi bhi yad हे और अंधे लंगड़े की कहानी भी! NMS GURARIYA vidisha se मे Sarita chourasiya madhyamik शिक्षक
ReplyDeleteसुनील सिसोदिया प्राथमिक मुण्डला जेतकरण
ReplyDeleteमेरा बचपन जुगनू कविता की तरह बिता
जैसे
जूगनू-जूगनू कहाँ चले?
जहाँ घना अंधियारा छाया,
वहाँ चले, हम वहाँ चले।
चिड़ियाँ के घर, हुआ अंधेरा,
जगमग, करने वहाँ चले ।
जुगनू-जुगनू, बात बताओ,
कैसे चमके ? राजा बताओ।
काम सभी के आज तुम,
चम- चम-चम चमकाओ।
बचपन की सुखद यादों में हम पांच दोस्त गांव में बहने वाली नदी में खूब तैरते थे।घर की रोटी और अचार से ही हम पिकनिक भी मना लिया करते थे।खूब पतंग उड़ाते थे।दुखद यादों में एक वार पैसे खो जाने पर घर हुई पिटाई याद आती है।यह कदंब का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे,मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे। और सूरदास की रचना मैया मोहि दाऊ बहुत खिजायो। ये दो कविताएं बहुत पसंद थी।
ReplyDeleteBachpan me srarat krna ruthna MA Baap ki sant Khana in sbke baavjud MA ka pyar Ek Sikh deta h ki Kitna pyar krti h MA apne bachcho ko.subhah Na uthne ke liye dant Khana school MA Jane ke liye Rona khelne pr Jyda dhyan rakhna sb Kitna rochak tha
ReplyDeleteजब मै प्राथमिक शाला में पढ़ता था तब सुखद पल यह था की खूब मस्ती करना अन्य बच्चों के बैठकर स्कूल में दलिया खाना खेलकूद करना ये सब बहुत अच्छा लगता था। दुखद यह की जब हम किसी दिन स्कूल नही जताए तो हमर पिताजी से शिकायत होती की आपका बच्चा स्कूल नही आया उसे घर में मेहनत की जरुरत है। चूँकि मेरे पिता भी एक शिक्षक थे। घर में पढ्ने के लिये पिताजी द्वारा जोर दिया जाता था तब उस समय बिजली नही थी दिये की रोशनी मे पढा करते थे। सचमुच बचपन के वो दिन काफी सुखद और दुखद भी थे।
ReplyDeleteहमारे बचपन और आज के बचपन में जमीन आसमान का अंतर है वह जमाना बहुत ही शांतिप्रिय था आज इतने भौतिक संसाधन बढ़ने के बाद भी मानसिक शांति नहीं है अरे वह सादा खाना अपने बुजुर्गों के साथ गांव घर परिवार के साथ सभी में इतनी आत्मीयता थी की अपना पराया समझ नहीं पाते थे और आज गांव परिवार दूर की बात अपने पोते पोतियो को भी कुछ सीख या यह अनुशासन की बात नहीं कर पाते आज इस वैज्ञानिक एवं तकनीकी युग ने भलाई प्रगति की है परंतु हमारे बचपन से पीछे
ReplyDeleteवस्तुतः बचपन जीवन की वह अवस्था होती है जिसमें औपचारिकता नहीं होती और जीवन जीने के वास्तविक रंगों का समावेश होता है ।वह दिन जब मुझे पहली बार स्कूल जाना था मेरे लिए अत्यंत उत्सुकता भरा अवसर था। पर जब मुझे एक ही स्थान (स्कूल )पर कुछ सीमाओं के बंधन में कुछ समय व्यतीत करना मेरे लिए अत्यंत दुखद था। बचपन में पढ़ी गई "खरगोश और कछुए की दौड़ "की कहानी और "चल रे मटके टम्मक टू "कविता मुझे आज भी प्रेरणा देती है।
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