मॉड्यूल 4 – गतिविधि 2: जेंडर पर मीडिया के चित्रण का विश्लेषण
एक ऐसे विज्ञापन के बारे में सोचें जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करता है और एक अन्य विज्ञापन जो जेंडर के अनुकूल है। आप विज्ञापन वीडियो के लिंक को कॉपी और पेस्ट कर सकते हैं।
चिंतन के लिए कुछ समय लें और कमेंट बॉक्स में अपनी टिप्पणी दर्ज करें ।
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक विषय है। इसके माध्यम से शिक्षक छात्रों की क्षमताओं को पहचानने और उसके अनुसार कौशल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं
ReplyDeleteMale and female are not equal beacuse its fault of our society so we have change our mindset of female life
Deleteमैं आशा लता बेन शासकीय कन्या हाई स्कूल बिजरावगढ़,
Deleteबहुत सी रूढ़िवादी परंपराएं हमारे समाज में बहुत समय से चली आ रही हैं जैसे सारे कार्य बाहर के सिर्फ लड़के कर सकते हैं, लड़कियां तो सिर्फ घर का काम जैसे खाना बनाना,बर्तन मांजने कपड़े धोना आदि ही कार्य कर सकती हैं और लड़के यह कार्य नहीं कर सकते, टीवी विज्ञापन में भी हमने देखा है यदि फुटबॉल खेलते या अन्य कोई मेहनत वाला कार्य हो उसमें पुरुषों को ही दिखाया जाता है और कपड़े धोने का विज्ञापन,बर्तन मांजने वाले डिश वार का विज्ञापन भोजन से संबंधित विज्ञापन आदि में महिलाओं को दिखाया जाता है जबकि पुरुष और महिला में किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए सामाजिक रुप से सभी को बराबर का अधिकार प्राप्त है
विज्ञापन की कॉपी करने में मुझे अभी कुछ प्रॉब्लम हो रही है जिसे अगले कमैंट्स में भेज दूंगी।
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ReplyDeleteमहिला और पुरुष दोनों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए, पुरूष शक्तिशाली होते हैं ये केवल एक भ्रम है
ReplyDeleteमहिला एवं पुरुष में भेदभाव नहीं करना चाहिए महिलाएं भी शक्तिशाली होती है।
Deleteअब कुछ रूढ़ियों में कमी आई है
Deleteमहिला और पुरुष दोनों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए, पुरूष शक्तिशाली होते हैं ये केवल एक भ्रम है।
ReplyDeleteनमस्कार साथियो,
ReplyDeleteनिष्ठा प्रशिक्षण के इस कोर्स में मैं ऐसे विज्ञापनों के बारे में अपने विचार रख रहा हूँ, ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं।
टेलीविशन पर प्रसारित विज्ञापनों में महिलाओं को निजी पसंद, घर साफ करने वाले उत्पाद और खाना पकाने संबंधित वस्तिुओं की खरीददारी के दायरे में सिमटी है। बाकी कार, इलेक्ट्रनिक अप्लायंसेज़, कम्प्यूटर, मकान, आदि खरीदने के मामले में महिला को किनारे खड़ा कर दिया जाता है। पुरुष ही सब कुछ तय करता है। विज्ञापन अधिकतर महिलाओं को घर की सेटिंग्स में दिखाते हैं और पुरुषों को बिज़नेस सेटिंग में। ज्यादातर सेलिब्रिटीज़ को ही विज्ञापनों में लाया जाता है। यह भी देखा गया कि पुरुषों को ऐसे विज्ञापनों में लाया जाता है जिनमें उनकी कतई जरूरत नहीं होती और वे अपनी बाॅडी का प्रदर्शन भी करते है।अधिकतर महिला पत्रिकाओं में सौंदर्य, व्यंजन बनाने के तरीके, फैशन, काॅस्मेटिक्स के उपयोग की विधि, पति को खुश करने के तरीके, शिशुओं की देख-रेख, सिलाई-बुनाई और घर सजाने के तरीकों पर लेख होते हैं।
टीवी पर विज्ञापनों की भरमार है जिसमें एक ख़ास क्रीम से कुछ ही दिनों में सांवले रंग के गोरे होने या किसी विशेष बेबी फूड से चंद दिनों में अपने बच्चे को तंदरुस्त और सेहतमंद बनाने के दावे किए जाते हैं। विज्ञापन में कोई महिला आपको पुरुषों की शेविंग क्रीम या फिर रेज़र की ख़ासियत बताती भी नजर आती है। लेकिन सवाल ये है कि जिस तरह विज्ञापनों में महिलाओं को पेश किया जाता है वह कितना सही है।
जबकि कुछ विज्ञापन ऐसे है जो महिलाओं की जेंडर संबंधी रूढ़िवादिता को बढ़ावा नही देते हैं।
यहां पर उन विज्ञापनों की लिंक कॉपी/पेस्ट करनी है किंतु कुछ टेक्निकल प्रॉब्लम के कारण मैं उन लिंको को कॉपी/पेस्ट नहीं कर पाया हूँ।
मेरे व्यक्तिगत विचार....
पूनाराम राजपूत
श्रीमती श्री तिवारी कुदहरीकला सतना
ReplyDeleteजेंडर पर मीडिया के चित्रण का निष्ठा प्रशिक्षण में यह मेरा व्यक्तिगत विचार है की टेलीविजन पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे अनेक विज्ञापन है जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं जिनमें से एक हार्पिक के विज्ञापन में श्री मान द्वारा केवल महिलाओं की ही टीम से पूछा गया इसमें एक भी पुरुष दिखाई नहीं दिया क्यों?
https://youtu.be/JIU5NzXIspA
वही दूसरे एड में बारिश मैंकार के पास जब एक ट्रांसजेंडर आता है तो पूर्वाग्रह से जुड़े सामाजिक व्यवहार के प्रदर्शन को एक कप गर्म चाय से समाप्त कर देता है।
नीचे दी गई लिंक में दिखाए गए 10 बेस्ट विज्ञापनों में इस भेदभाव को समाप्त करने का सराहनीय प्रयास है ।https://youtu.be/rZBhxbcehfs एक शिक्षक होने के नाते हमारा सौभाग्य है की जेंडर से जुड़ी रूढ़िवादिता को दूर करने के लिए हम नींव का पत्थर साबित हो सकते हैं। निष्ठा प्रशिक्षण के इस मॉड्यूल की सहायता से कक्षा का तथा कक्षा के बाहर की गतिविधियों में जेंडर संवेदनशीलता को बढ़ावा देने का प्रयास करेंगे।
Bahut hi achcha 👍👍
DeleteSachendra kumar Tripathi MS Janeh (23140600302)purush vigyapan me kewal bijines, food, game me dikhate hai jabki mahila kewal saundarya prasadhan ke vigyapan me dikhai deti hai jo ki galat aur bhramak hai dono budhhiman, sahasi, sundar hote hai
Deleteटीवी पर दिखाए जा रहे विज्ञापन अधिकतर महिला या पुरुष में भेदभाव को प्रकट करते हैं जिसमें घरेलू कार्यों के लिए महिलाओं का रूपांतरण किया जाता है एवं बाहरी कार्यों के लिए विशेषकर पुरुषों को अभिनति किया जाता है जिसके कारण समाज में एक छवि सुदृढ़ होती है कि यह कार्य केवल महिला का है या एक पुरुष का जबकि जहां हम समानता की बात करते हैं हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां लड़के लड़की महिला पुरुष सभी को एक समान एक नजरिए से देखा जाए जिनके कार्यों में कोई विभिन्नता ना हो सभी के लिए समान कार्य हो सभी के लिए एकरूपता हो सभी को जीवन जीने का एक आधार हो एवं ऐसे विज्ञापनों से समाज में भ्रामक जानकारी उत्पन्न होती है अतः यह अनुचित है एक शिक्षक समाज ऐसी प्रथाओं को रूडी वादियों को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकता है
ReplyDelete*शेखर देथलिया टोंक खुर्द देवास*
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ReplyDeleteमहिला एवं पुरुष में किसी प्रकार का,किसी भी स्तर पर भेदभाव नहीं करना चाहिए । दोनों के प्रति सामान दृष्टिकोण रखना चाहिए।
ReplyDeleteमनुष्य कैसे अपने आप को सभ्य कह सकता है जब लगभग आधी आबादी को जेंडर वायस का शिकार होकर गुलामी जैसी अमानवीय यातना पीढ़ी दर पीढ़ी झेलनी पड़ती है वह भी अपने ही ही माता पिता, पति साथी या सहोदरों द्वारा दी गई।
ReplyDeleteजेंडर विषमताओं को समावेशी बनाने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका है। वह यदि पूरे मन से प्रयास करे तो इस विषमता को शाला से लेकर समाज तक कम किया जा सकता है।
ReplyDeleteयदि लड़का लड़की हों एक समान
तो स्वास्थ्य समाज का हो निर्माण
टेलीविजन पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे अनेक विज्ञापन है जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं !
ReplyDeleteटेलीविजन पर दिखाएं जाने वाले विज्ञापन निश्चित रूप से सामाजिक रूढ़ियों से प्रभावित हैं ..
लेकिन वर्तमान में दिखाएं जाने वाले विज्ञापनो में समानता प्रदर्शित किया जा रहा है ...जैसे एक लड़की अपनी कार का टायर चेंज करते हुए दिखाई देती हैं !!
जेंडर संबंधित विग्यापन में टेलीविजन मे मुख्यतः महिलाओं को घर से संबंधित काम एवं पुरूषो को बाहरी कार्य करते हुए दिखाया जाता है जो कि बिल्कुल भी उचित नही है
ReplyDeleteजेंडर विषमताओं को समावेशी बनाने में शिक्षक और समाज की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है यदि पूरे मन से प्रयास करें तो इस विषमता को विद्यालय से लेकर समाज तक कम किया जा सकता है
ReplyDeleteयदि लड़का लड़की हो एक समान
तो स्वस्थ समाज का हो निर्माण
महिला एवं पुरूष सम्बंधित धारणाएं जेंडर रुपी पिडा़ को दर्शाता है जिससे एक महिला ओर पुरूष को अलग अलग कार्य व्वहार करते है ।जैसे एक शिक्षक- शिक्षकाओं के पढाने या विद्यालय के कार्य मे जेंडर संम्बंधित कार्यों को करने मेभी आनाकानी करती है। कहती है ।हम महिला ऐसेकार्य कैसे करसकते है। इस अवधारणा सेवह बच जाती है।
ReplyDeleteHamare samajik parives ho y school ho parivar ho kisi kshetra m ling bhed nhi hona chaiye kuki dono m chamtA hoti hai dono hi verg ko saman vehvar milna chaiye yeh hmare parivar se hi samnta shuru hona chahiye
ReplyDeleteटेलीविजन मे दिखाये जाने वाले अधिकांश विज्ञापनों मे जेंडर सम्बंधी रुढ़ियों को मजबूती प्रदान की जाती है,
ReplyDeleteपरन्तु अब धीरे-धीरे इनमे बदलाव आ लहा है।
कक्षा के सभी बच्चों में अपनी अलग-अलग योग्यता होती है हमें उसको उनकी क्षमता के अनुसार निकालना चाहिए
DeleteGender sambandhi vishamatao ko door karne ke prayas kiye jane chahiye
ReplyDeleteHaa
Deleteसमानता का व्यवहार करना चाहिए, पुरूष शक्तिशाली होते हैं ये केवल एक भ्रम है
ReplyDeleteBalak evam balika ke beech saman vyavahar hona jaroori hai .
ReplyDeleteबिचारों और प्रथायो को बदलने की आवश्यक्ता है ।
ReplyDeleteयदि लड़का लड़की हों एक समान तो स्वस्थ समाज का हो निर्माण
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्वपूर्ण सामाजिक विषय है इसके माध्यम से शिक्षकों शिक्षा समितियों एवं प्रिंसिपल के द्वारा छात्रों की क्षमताओं को पहचानने और उनके कौशल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं
ReplyDeleteरूढ़ी वादी सोच (पुरूष ही प्रधान है यह बदल रही आ।महिलाओं की भी सक्रियता बढ़ रही है। लैंगिक भेदभाव समाप्त हो रहा है। रमाकान्त पाराशर
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्वपूर्ण सामाजिक विषय है इसके माध्यम से शिक्षकों शिक्षा समितियों एवं प्रिंसिपल द्वारा छात्रों की क्षमताओं को पहचानने में एवं उनके कौशल को पहचानने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं
ReplyDeleteℂ𝕙𝕙𝕒𝕥𝕣, 𝕔𝕙𝕙𝕒𝕥𝕣𝕒 𝕜𝕖 𝕓𝕖𝕖𝕔𝕙 𝕫𝕖𝕟𝕕𝕖𝕣 𝕒𝕒𝕕𝕙𝕒𝕣𝕚𝕥 𝕓𝕙𝕖𝕕𝕓𝕙𝕒𝕒 𝕖𝕜 𝕥𝕒𝕣𝕒𝕙 𝕜𝕚 𝕞𝕒𝕒𝕟𝕤𝕚𝕜 𝕙𝕚𝕟𝕤𝕒 𝕙𝕒𝕚 𝕚𝕤𝕤𝕖 𝕝𝕒𝕕𝕜𝕚𝕪𝕠 𝕜𝕖 𝕞𝕒𝕟𝕟 𝕞𝕖 𝕤𝕨𝕒𝕪𝕒𝕞 𝕜𝕖 𝕡𝕣𝕒𝕥𝕚 𝕙𝕖𝕖𝕟𝕓𝕙𝕒𝕨𝕒𝕟𝕒 𝕓𝕙𝕒𝕣 𝕛𝕒𝕥𝕚 𝕙𝕒𝕚 𝕛𝕚𝕤𝕤𝕖 𝕝𝕒𝕕𝕜𝕚𝕪𝕠 𝕜𝕒 𝕞𝕒𝕒𝕟𝕤𝕚𝕜 𝕒𝕦𝕣 𝕤𝕙𝕒𝕣𝕚𝕣𝕚𝕜 𝕧𝕚𝕜𝕒𝕤𝕙 𝕒𝕧𝕣𝕦𝕕𝕙 𝕙𝕠𝕥𝕒 𝕙𝕒𝕚
Delete𝔸𝕥𝕒𝕙 𝕫𝕖𝕟𝕕𝕒𝕣 𝕒𝕒𝕕𝕙𝕒𝕣𝕚𝕥 𝕓𝕙𝕖𝕕𝕨𝕒𝕧 𝕖𝕜 𝕤𝕨𝕒𝕤𝕥𝕙 𝕤𝕒𝕞𝕒𝕛 𝕜𝕖 𝕧𝕚𝕜𝕒𝕤𝕙 𝕜𝕠 𝕒𝕧𝕣𝕦𝕕𝕙 𝕜𝕒𝕣𝕥𝕒 𝕙𝕒𝕚
we should equally treat men and women both are very important
ReplyDeleteमहिला एवं पुरुष में किसी प्रकार का,किसी भी स्तर पर भेदभाव नहीं करना चाहिए । दोनों के प्रति सामान दृष्टिकोण रखना चाहिए।
ReplyDeleteदुरगलाल राहंगडाले ,ps मकुन्दाटोला, जिला-बालाघाट
ReplyDeleteएक ग्राम सभा का मीडिया द्वारा प्रस्तुत चित्रण ,जिसमे महिलाओ के बैठने की व्यवस्था सामने एक चटाई पर की गई है वही पुरुषों के लिए पीछे कुर्सी की व्यस्था की गई है
नमस्कार साथियों निष्ठा प्रशिक्षण पर चौथे मॉड्यूल में पुनः आप सभी का तहे दिल से स्वागत नमस्कार मैं मुकेश मालवीय निष्ठा प्रशिक्षण के चौथे मेडम में गतिविधि क्रमांक 2 पर मेरे विचार इस प्रकार जिस प्रकार संपूर्ण देश में महिला और पुरुष को समानता का अधिकार मिला हुआ है और महिलाओं को पचास परसेंट आरक्षण के तहत महिलाएं किसी भी प्रकार पुरुषों से कम नहीं होता हर क्षेत्र में उन्हें बराबर का बराबर का भागीदार माना गया किसी भी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से कम नहीं है फिर भी कुछ विज्ञापनों के माध्यम से महिलाओं को पुरुषों से कम आंका जाता है जैसे टीवी पर दिखाए जाने वाले टेलीविजन आदि में महिलाओं को केवल घरों की साफ-सफाई एवं डेकोरेशन सिलेक्टेड तथा किचन संबंधी खाद्य सामग्री में व्यस्त बताया जाता है और उन्हें किसी व्यवसाय या बिजनेस में अग्रणी नहीं बताया जाता है इसमें केवल पुरुषों को ही महत्ता दी जाती है इस प्रकार के विज्ञापन या प्रसारण कहीं ना कहीं पुरुषों को महिलाओं से अधिक शक्तिशाली और प्रभावी बताते है।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Sabhi ko samaan roop se mansik& shareerik vikas me bhageedar banana shikshak ki jimmedaari hai.
ReplyDeleteअनेक ऐसे विज्ञापनहै जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को बढ़ावा तथा विभिन्नता प्रदान करता है। जैसे निरमा ,साबुन आदि के विज्ञापन से ऐसे लगता है कि ये केवल महिलाओं के लिए बने है इसी प्रकार सेविंग क्रीम, मोटर साईकिल, कार, ट्रेक्टर आदि पुरुष प्रधान विज्ञापन है। इनसे जेन्डर रूढिवाद का पता चलता है।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक अनिवार्य एवं सामाजिक विषय है इसके माध्यम से छात्रों की विभिन्न क्षमताओं की पहचान करना तथा उनके कौशल विकास पर जोर देना ही जिंदा विषमताओं को समावेशी रूप देने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और होनी भी चाहिए जेंडर संबंधी विज्ञापन जैसे शैक्षिक वार्षिक कार्यक्रम वार्षिक परीक्षा फल उत्कृष्ट कार्य करने वाले विद्यार्थियों जैसे बालक बालिका स्कूल गतिविधियों आदि तथा पास्को एक्ट संबंधी विज्ञापनों को विभिन्न समाचार पत्रों विभिन्न टेलीविजन कार्यक्रमों जैसे राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विज्ञापन बढ़ा चढ़ाकर प्रकाशित किया जाना आम बात है शैक्षणिक दृष्टि से शिक्षक शिक्षिकाओं को पढ़ाने पर विद्यालय के कार्यों में भी जेंडर संबंधी विविध होते हैं।
ReplyDeleteमहिला एवं पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं दोनों को समान समझना चाहिए रूढ़ीवादी प्रथा पुरुषों को प्रधान एवं शक्तिशाली माना जाता था भ्रम है अतः हमें लड़कियों एवं लड़कों में भेद नहीं करना चाहिए
ReplyDeleteमहिला एवं पुरुष के प्रति समानता का भाव होना चाहिए।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर भेदभाव को दूर करना एक महत्वपूर्ण व सामाजिक जिम्मेदारी। आज हम आधुनिकता की रेस में शामिल होने का दावा करते हैं लेकिन इस आधुनिक युग में टीवी पर आने वाले विज्ञापन जेंडर संबंधी भेदभाव को बढ़ावा दें अपनी भूमिका अदा करते है। टीवी पर आने वाले अधिकांश सुंदर संबंधी विज्ञापन में महिलाओं को दिखाया जाता है बच्चों को पढ़ाने में तैयार करने स्कूल भेजने मैं भी महिलाओं की भूमिका को भी प्रदर्शित किया जाता है घर में जब सभी लोग इतना पूजन पाते हैं तो महिलाओं को भोजन वितरित करते दिखाया जाता है घर की साफ सफाई टॉयलेट की सफाई आदि के विज्ञापन में वाशिंग पाउडर के विज्ञापन में महिलाओं को भी दिखाया जाता है जिससे समाज में इस अवधारणा को बल मिलता है कि यह सभी काम तो महिलाओं के हैं इन कार्य को पुरुषों के द्वारा नहीं किया जा सकता इसके अतिरिक्त भाइयों से पढ़े और महत्वपूर्ण फैसले लेने संबंधी जो विज्ञापन हैं जैसे कार खरीद घर खरीदना प्रेग्नेंट बॉडीबिल्डिंग आदि के विज्ञापन में पुरुषों को भी अधिक होता के साथ आएगा अधिकांश विज्ञापन होठों को ताकत का प्रतीक के रूप में प्रदर्शित करने में अतिशयोक्ति भी करते हैं और महिलाओं को वही कमजोर निर्णय लेने की क्षमता ना होने वाली के रूप में प्रदर्शित करते हैं।
ReplyDeleteइसके अतिरिक्त कई विज्ञापन ऐसे भी हैं जो जेंडर संबंधित भेदभाव को प्रदर्शित नहीं करते हैं उदाहरण के लिए अल्ट्राटेक सीमेंट के विज्ञापन में एक बहुमंजिला इमारत के कॉलम निर्माण में महिला को इंजीनियर के रूप में प्रदर्शित किया गया है जो यह दर्शाता है यह कार्ड पुरुष और महिलाओं का नहीं है इससे महिला भी उसी का क्षमता और पूर्णता के साथ कर सकती हैं जिस प्रकार पुरुष करते हैं। कई खुशियों के विज्ञापन में महिलाओं को पुरुषों को हराते हुए दिखाया गया है टीवी पर प्रसारित होने वाले कई विज्ञापन महिलाओं को बिजनेस में अग्रणी भूमिका में भी प्रदर्शन करते हैं प्रकार हमारे विद्यालय में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर समानता को शामिल करना एक बहुत बड़ी चुनौती इसे पूर्ण करने में शिक्षक अपनी भागीदारी निभाने में महत्वपूर्ण योगदान हासिल कर सकता है लेकिन यह तभी संभव होगा जब उसे इस बात का ध्यान को कि वह अनजाने में ही जेंडर संबंधी अनियमितताओं को बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। निष्ठा प्रशिक्षण के माध्यम 4 के द्वारा जेंडर संबंधी अनियमितताओं को दूर करना की गतिविधियां जो प्रदर्शित की गई हैं वह सराहनीय कार्य है जो शिक्षकों शिक्षिकाओं के सांसद रुचि पल को दिए सोचने को उत्सव को जागरूक करता है कि कैसे हम एक अनुच्छेद व्यवहार के द्वारा इस भेदभाव को बढ़ाने में अपनी पूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं इस प्रशिक्षण के प्राप्त करने के साथ हम इन व्यवहारों को दूर करने में और अपने विद्यालय को जेंडर अनुकूल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर पाएंगे । धन्यवाद
अजीत सिंह भदौरिया
शासकीय नवीन माध्यमिक शाला मोहारी तहसील डोलरिया जिला होशंगाबाद मध्य प्रदेश
पारंपरिक रीतियों के अनुसार पुरुष को प्रधान माना जाता रहा है। इस प्रशिक्षण के अनुसार शिक्षको में लिंग भिन्नता को समाप्त करने का बल प्राप्त होगा।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है महिला और पुरुष में समानता का व्यवहार करना चाहिए यह ना सोचें कि पुरुष महिलाओं से शक्तिशाली होते हैं धन्यवाद
ReplyDeleteहमें लड़के और लड़कियों में भेद बिलकुल नहीं करना चाहिए क्योंकि दोनों में समानता से ही समाज और देश का तेजी से विकास हो सकता है।
ReplyDeletehttps://youtu.be/JIU5NzXIspA
ReplyDeleteTV पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे अनेक विज्ञापन है जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं जिनमें से एक हार्पिक के विज्ञापन में एंकर (पुरुष ) द्वारा केवल महिलाओं से ही पूछा गया इसमें एक भी पुरुष दिखाई नहीं दिया क्यों?
https://youtu.be/rZBhxbcehfs
वही दूसरे एड में बारिश मैं कार के पास जब एक ट्रांसजेंडर आता है तो पूर्वाग्रह से जुड़े सामाजिक व्यवहार के प्रदर्शन को एक कप गर्म चाय से समाप्त कर देता है।
एक शिक्षक, जेंडर से जुड़ी रूढ़िवादिता को दूर करने के लिए नींव का पत्थर साबित होता है।
निष्ठा प्रशिक्षण के इस मॉड्यूल की सहायता से कक्षा कक्ष तथा कक्षा के बाहर की गतिविधियों में जेंडर संवेदनशीलता को बढ़ावा देने का प्रयास शिक्षक कर सकेंगे।
महिला एवं पुरुषों में किसी भी प्रकार का, किसी भी स्तर पर कोई भी भेद भाव नही करना चाहिए। दोनो के प्रति समान दृष्टिकोण रखना चाहिए जिससे सभ्य समाज का निर्माण होगा।
ReplyDeletewe have to no discremination acoording to gender we have to same priroties to all childern eqaully,
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया के तहत जेंडर भेदभाव को समाप्त करने का सर्वश्रेष्ठ प्रयास है।इससे यह मानसिकता समाप्त होगी कि केवल बालक या पुरुष ही महत्त्वपूर्ण है और बालिका या स्त्री कमजोर है।
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ReplyDeleteमहिला और पुरुष दोनों एक समान है तथा दोनों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। पुरुष शरीर रूप से मजबूत होते है, ऐसा सिर्फ पूर्वाग्रह ही है।
ReplyDeletehttps://youtu.be/y4QxRV4pMcI
Women allways powerful
ReplyDeleteSamaj mein har vyakti ke adhikar saman hai chahe veh ki bhi gender ka ho.
ReplyDeleteअधिगम प्रक्रिया में जेंडर भेदभाव को दूर करना एक महत्वपूर्ण व सामाजिक जिम्मेदारी। आज हम आधुनिकता की रेस में शामिल होने का दावा करते हैं लेकिन इस आधुनिक युग में टीवी पर आने वाले विज्ञापन जेंडर संबंधी भेदभाव को बढ़ावा दें अपनी भूमिका अदा करते है। टीवी पर आने वाले अधिकांश सुंदर संबंधी विज्ञापन में महिलाओं को दिखाया जाता है बच्चों को पढ़ाने में तैयार करने स्कूल भेजने मैं भी महिलाओं की भूमिका को भी प्रदर्शित किया जाता है घर में जब सभी लोग इतना पूजन पाते हैं तो महिलाओं को भोजन वितरित करते दिखाया जाता है घर की साफ सफाई टॉयलेट की सफाई आदि के विज्ञापन में वाशिंग पाउडर के विज्ञापन में महिलाओं को भी दिखाया जाता है जिससे समाज में इस अवधारणा को बल मिलता है कि यह सभी काम तो महिलाओं के हैं इन कार्य को पुरुषों के द्वारा नहीं किया जा सकता इसके अतिरिक्त भाइयों से पढ़े और महत्वपूर्ण फैसले लेने संबंधी जो विज्ञापन हैं जैसे कार खरीद घर खरीदना प्रेग्नेंट बॉडीबिल्डिंग आदि के विज्ञापन में पुरुषों को भी अधिक होता के साथ आएगा अधिकांश विज्ञापन होठों को ताकत का प्रतीक के रूप में प्रदर्शित करने में अतिशयोक्ति भी करते हैं और महिलाओं को वही कमजोर निर्णय लेने की क्षमता ना होने वाली के रूप में प्रदर्शित करते हैं।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया के तहत जेंडर भेदभाव को समाप्त करने का सर्वश्रेष्ठ प्रयास है।इससे यह मानसिकता समाप्त होगी कि केवल बालक या पुरुष ही महत्त्वपूर्ण है और बालिका या स्त्री कमजोर है।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर के आधार पर कार्य नहीं होना चाहिए क्योंकि पाठ्यक्रम सभी जेन्डर्स के लिए होता है । ये भेदभाव समाज में और कई प्रकार के विज्ञापन द्वारा उत्पन्न होता है जो अधिकतर पुरुष प्रधान ही होते हैं ।प्रायः देखा गया है कि घर के काम वाले विज्ञापन में केवल स्त्री को प्रधानता दी जाती है जिससे जेंडर के भेदभाव को बढ़ाने में प्रगति हो रही है और ये समझा जाता है कि स्त्री केवल निम्न और कम मेहनत के कार्य ही कर सकती है ।
ReplyDeleteजेंडर आधारित भेदभाव दूर की बात हो गई ।
ReplyDeleteबर्तमान में जेंडर भेदभाव कम है यदि हम सब थोड़ा ही प्रयास करेंगे तो यह स्थायी रूप से खत्म हो जाएगा
ReplyDeleteबर्तमान में जेंडर भेदभाव कम है यदि हम सब थोड़ा ही प्रयास करेंगे तो यह स्थायी रूप से खत्म हो जाएगा
ReplyDeleteपर्वत सिंह राजपूत
Male Female me bhedbhaw nahi hona chahye
ReplyDeleteपुरुष महिला मे लिंगभेद मिटाकर सभी को समान अवसर देना होगा।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्वपूर्ण सामाजिक विषय है इसके माध्यम से शिक्षक छात्रों की क्षमताओं को पहचानने पर उसके अनुसार कौशल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं एवं महिलाओं और पुरुषों दोनों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए केवल पुरुष ही शक्तिशाली नहीं होते महिलाएं भी इतनी शक्तिशाली होती हैं
ReplyDeleteBachcha bachchi, el Salman.
ReplyDeleteDono ka ho barabr samman
Ladka hai abhiman, toladki hai swabhiman.
Shala me ho, dono ka samman.
Shikshak ke hai, dono hi abhiman.
Shikshan adhigam prakriya mein Main gender Ek mahatva purn Samajik Vishay hai hi hi Iske Madhyam se Shikshak chhatron Ki Sham Taron Ko pahchanne AVN usko Ho viksit karne mein mahatvpurn Bhumika Nibha sakte hain Hamen purushon aur mahilaon Mein Ling Bade nahin karna chahie aur unhen Saman avsar pradan karne chahie
ReplyDeleteUprokt Latham Sahi he
ReplyDeleteO p Dixit
लड़के लड़की का भेदभाव दूर होना चाहिए घर में और स्कूल में उन्हें बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए लड़की का भी लड़कों के समान सुविधाओं के साथ पालन पोषण होना चाहिए और पढ़ाई लिखाई भी होना चाहिए लड़कियों ने यह वहम तोड़ दिया है किजो काम लड़के करते हैं वह काम लड़कियां भी कर लेती है इसलिए इसलिए अब जेंडर पर परज्यादा चर्चा करने के बजाय उनके अधिकारों पर ध्यान देना चाहिए
ReplyDeleteटेलीविजन पर भेदभाव प्रदर्शित करने वाले विज्ञापन हमेशा हमेशा के लिए बंद होना चाहिए !और समभाव वाले विज्ञापनों को प्रोत्साहन देना चाहिए ! क्योंकि लड़कियां आजकल मेकेनिकल काम भी कर लेती है ! वैसे यदि माना जाए तो 90% लोग लड़के लड़कियों में भेदभाव नहीं करते! अस्तु !
Deleteटेलीविजन पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे अनेक विज्ञापन है जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं !
ReplyDeleteटेलीविजन पर दिखाएं जाने वाले विज्ञापन निश्चित रूप से सामाजिक रूढ़ियों से प्रभावित हैं ..
लेकिन वर्तमान में दिखाएं जाने वाले विज्ञापनो में समानता प्रदर्शित किया जा रहा है ...जैसे एक लड़की अपनी कार का टायर चेंज करते हुए दिखाई देती हैं !!
अच्छी फेस क्रीम में लेडी मॉडल से विज्ञापन करवाना और क्रिकेट ,कबड्डी जैसे खेलो में हमेशा पुरुष का विज्ञापन में आना।
ReplyDeleteमैं बलवीर सिंह कौरव माध्यमिक शिक्षक शा मा वि बावन पाएगा ग्वालियर
ReplyDeleteजेंडर पर आधारित मीडिया के चित्रण का निष्ठा प्रशिक्षण में यह मेरा व्यक्तिगत विचार है , कि टेलीविजन पर दिखाए गए विज्ञापनों में अनेक विज्ञापन ऐसे हैं जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं जिनमें से एक हार्पिक के विज्ञापन में श्री मान अक्षय कुमार जी द्वारा केवल महिलाओं की ही टीम से पूछा गया है । इसमें एक भी पुरुष दिखाई नहीं दिया क्यों?
https://youtu.be/JIU5NzXIspA
वही दूसरे एड में बारिश मैं कार के पास जब एक ट्रांसजेंडर आता है तो पूर्वाग्रह से जुड़े सामाजिक व्यवहार के प्रदर्शन को एक कप गर्म चाय से समाप्त कर देता है।
नीचे दी गई लिंक में दिखाए गए 10 बेस्ट विज्ञापनों में इस भेदभाव को समाप्त करने का सराहनीय प्रयास है ।https://youtu.be/rZBhxbcehfs एक शिक्षक होने के नाते हमारा कर्तव्य बनता है की जेंडर से जुड़ी रूढ़िवादिता को दूर करने के लिए हम नींव का पत्थर साबित हो सकते हैं। निष्ठा प्रशिक्षण के इस मॉड्यूल की सहायता से कक्षा का तथा कक्षा के बाहर की गतिविधियों में जेंडर संवेदनशीलता को बढ़ावा देने का प्रयास करेंगे और इसके लिए मैं अपने आप को सौभाग्यशाली समझूंगा ।
सामाजिक जीवन को प्रभावित करने हेतु बहुत से विज्ञापन जेंडर के रूढ़िवादी विचारों को प्रोत्साहित करने बाले होते हैं चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिंट मीडिया ।सभी को समान अवसर सभी क्षेत्रों दिया जाना आवश्यक है ।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है महिला और पुरुष में समानता का व्यवहार करना चाहिए यह ना सोचें कि पुरुष महिलाओं से शक्तिशाली होते हैं।यदि हम पुरे मन से प्रयास करें तो इस विषमता को विद्यालय से लेकर समाज तक कम किया जा सकता है।
ReplyDeleteमैं अमर सिंह लोधी प्राथमिक शाला कटेरा खेरा जिला टीकमगढ़ ऐसा क्यों कर पति ने बताया गया है कि आजकल जो विज्ञापन बनाए जा रहे हैं उसमें जेंडर लोड़ी माता को बढ़ावा मिलता है जैसे कई विज्ञापन दिखाए जाते हैं जिसमें महिलाओं को किचन का काम करते हुए शॉपिंग करते हुए घर के सामान खरीदते हुए बच्चों की देखभाल करते हुए और पुरुषों को कार्दिनी सेटिंग आदि दिखाते हैं पुरुषों को जिसने शक्तिशाली दिखाया जाता है लेकिन ऐसा नहीं है महिलाएं और पुरुष दोनों ही शक्तिशाली है दोनों ही निर्णय लेने में सक्षम ऐसे विज्ञापन कि मैं अवहेलना करता हूं और लोड़ी माता को खत्म करने में शिक्षक की बहुत ही महत्वपूर्ण है सभी को मन से और लगन से प्रयास करना है कि जरूरी बातें करें और इसका कक्षा में समावेशन करना है क्योंकि महिलाएं और पुरुष दोनों ही समान है दोनों में लैंगिक गुण अलग हो सकती हैं लेकिन सभी में अपने आप निर्णय लेने शक्ति साहस निरडर बहादुर सभी गुण सही में समान रूप से पाए जाते हैं इसलिए हमें समाज में महिलाओं और पुरुषों में समानता दिखानी है बच्चों को समझाना है कि स्त्री और पुरुष दोनों ही समान है इसमें कोई सुनता नहीं है जो पुरुष कर सकते हैं वह महिलाएं भी कर सकती हैं
ReplyDeleteधन्यवाद
विज्ञापनों में जेंडर महिला,पुरूष के द्वारा दिया गया संदेश को आकर्षक बनाने के लिए स्त्री और पुरूषों मेंअंतर स्पष्ट है ।क्योकि यह माना जाता है विज्ञापन में स्त्री जेडर को जितना आर्कर्षक ढंग से दिखाया जाता है उसे ज्यादा पसंद किया ।विज्ञापन में पुरूषों की भुमिका को कम नहीं आंका जा सकता है कुछ स्टंट वाले विज्ञापन तो केवल पुरुष ही कर सकतें हैं ।फिर भी हम कह सकतें हैं कि विज्ञापन में स्त्री दिखाने की सोच में भेदभाव किया जाता है । महिला को बस आर्कर्षण का एक केंद्र बनाकर पेश किया जाता है चाहे वह विज्ञापन किसी भी वस्तु का हो ।
ReplyDeleteये निष्ठा प्रशिक्षण जो दीक्षा के अंतर्गत हो रहा है यह जेंडर विविधता सम्बन्धी प्रशिक्षण है ।वर्तमान में मीडिया जैसे टेलिविज़न समाचार पत्रों सभी जगह जेंडर में विविधता दर्शाते हुए ऐड दिखाई देते है जैसे कोई सौंदर्य प्रसाधन का ऐड होगा तो उसमें किसी महिला का ऐड आएगा और कोई शक्तिवर्धक सम्बन्धी ऐड होगा तो किस पुरुष को दिखाएंगे ।यह धारणा गलत है महिला और पुरुष दोनों ही सुंदर हो सकते है बलशाली हो सकते हैं आज कोई भी किसी से कम नही है इसीलिए लड़का लड़की या ट्रांसजेंडर किसी मे कोई भेदभाव नही होना चाहिए फिर चाहे वो विद्यालय हो या घर या समाज।धन्यवाद
ReplyDeleteटेलीविजन पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे अनेक विज्ञापन है जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं !
ReplyDeleteटेलीविजन पर दिखाएं जाने वाले विज्ञापन निश्चित रूप से सामाजिक रूढ़ियों से प्रभावित हैं ..
लेकिन वर्तमान में दिखाएं जाने वाले विज्ञापनो में समानता प्रदर्शित किया जा रहा है ...जैसे एक लड़की अपनी कार का टायर चेंज करते हुए दिखाई देती हैं !!
जेंडर विषमताओं को समावेशी बनाने में शिक्षक और समाज की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है वह यदि पूरे मन से प्रयास करें तो इस विषमता को विद्यालय से लेकर समाज तक कम किया जा सकता है यदि लड़का लड़की को एक समान तो स्वस्थ समाज का हो निर्माण
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक विषय है। इसके माध्यम से शिक्षक छात्रों की क्षमताओं को पहचानने और उसके अनुसार कौशल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्वपूर्ण सामाजिक विषय है। इसके माध्यम से शिक्षण छात्रों की क्षमताओं को पहचाने और उसके अनुसार कौशल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
ReplyDeleteहां, विज्ञापनो में जेंडर के लिए सीमाएं खींची हुई है । घरेलू सामान के विज्ञापन में महिलाएं और बिज़नस संबंधी , बॉडी दिखाने ,कार,बाईक के विज्ञापनो में अधिकतर पुरूष दिखाई देते है।
ReplyDeleteटेलीविजन पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे अनेक विज्ञापन है जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं !
ReplyDeleteटेलीविजन पर दिखाएं जाने वाले विज्ञापन निश्चित रूप से सामाजिक रूढ़ियों से प्रभावित हैं ..
लेकिन वर्तमान में दिखाएं जाने वाले विज्ञापनो में समानता प्रदर्शित किया जा रहा है ...जैसे एक लड़की अपनी कार का टायर चेंज करते हुए दिखाई देती हैं !!
https://youtu.be/SpPozOvNrKA
जेंडर मीडिया भी प्रभावित करता है इसलिए हमें इसमें सामाजिक जागरूकता लाने की जरूरत है और भेदभाव पूर्ण विज्ञापन नहीं दिखाई जाए स्त्री और पुरुष सभी बराबर हैं इस तरह के विचार प्रदर्शित करनी चाहिए सभी जनों को समान अवसर उपलब्ध कराना चाहिए सुनील कुमार तिवारी माध्यमिक शिक्षक जन शिक्षा केंद्र मनगवां रीवा
ReplyDeleteओमप्रकाश पाटीदार प्रा.शा.नाँदखेड़ा रैय्यत
ReplyDeleteविकासखंड पुनासा जिला खंडवा मध्य प्रदेश
टेलीविज़न पर दिखाए गए विज्ञापन में हार्पिक का प्रचारकिया जाता है जिसमें केवल महिलाओं से ही पूछा जाता है।बर्तन साफ करने के साबन,कपड़े धोने के साबन में अक्सर महिलाओं को ही दिखाया जाता है।जिससे सिद्ध होता है कि आज भी हम रूढ़िवादिता में जकड़े है।
टीवी पर आने वाले विज्ञापन जो कि जेंडर संबंधी रूढ़ियों को बढ़ावा देते हैं इनमें से सुंदरता और गोरापन बढ़ाने वाले उत्पाद ,साबुन के विज्ञापन ,घर के कामकाज करने वाले विज्ञापन, बच्चों को पढ़ाने ,तैयार करके स्कूल भेजने वाले विज्ञापन यह सभी जेंडर संबंधी रूढ़ियों को बढ़ावा देते हैं ,जबकि कई ऐसे विज्ञापन है जो जेंडर अनुकूल है जैसे महिलाओं को डॉक्टर, इंजीनियर आदि के रूप में दिखाना , इसमें सीमेंट के विज्ञापन ,सैनिटाइजर के विज्ञापन इत्यादि सम्मिलित है| हालांकि धीरे धीरे जेंडर संबंधी रूढ़ियां समाप्त हो रही है |महिलाएं तथा पुरुष दोनों ही हर कार्य को करने में सक्षम है और होना भी यही चाहिए ,क्योंकि दोनों एक दूसरे के पूरक है |
ReplyDeleteDo no ko saman drishti se Dekha Jana chahiye kyoki do no me yogyta hot I hai bhedbhav Karna galat hai
ReplyDeletehttps://youtu.be/JIU5NzXIspA
ReplyDeleteTV पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे अनेक विज्ञापन है जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं जिनमें से एक हार्पिक के विज्ञापन में एंकर (पुरुष ) द्वारा केवल महिलाओं से ही पूछा गया इसमें एक भी पुरुष दिखाई नहीं दिया क्यों?
https://youtu.be/rZBhxbcehfs
वही दूसरे एड में बारिश मैं कार के पास जब एक ट्रांसजेंडर आता है तो पूर्वाग्रह से जुड़े सामाजिक व्यवहार के प्रदर्शन को एक कप गर्म चाय से समाप्त कर देता है।
एक शिक्षक, जेंडर से जुड़ी रूढ़िवादिता को दूर करने के लिए नींव का पत्थर साबित होता है।
निष्ठा प्रशिक्षण के इस मॉड्यूल की सहायता से कक्षा कक्ष तथा कक्षा के बाहर की गतिविधियों में जेंडर संवेदनशीलता को बढ़ावा देने का प्रयास शिक्षक कर सकेंगे।
नोकेश कुमार गौतम
सहा.शिक्षक
शास.माध्य शाला आंजनबिहरी
जेंडर भेद रूढ़िवादी धारणाएं समाज की ही देन है जिनको बदलना बहुत ही जरूरी है। जिससे जेंडर भेद रूढ़िवादी धारणाओं का अंत करना ही लक्ष्य हो जिससे जेंडर में समानता का भाव प्रकट हो ऐसी सामाजिक सोच निर्मित होना चाहिए।
ReplyDeletehttps://youtu.be/E4k51MQM1so
ReplyDeleteअक्सर विज्ञापनों में जेंडर विविधता को दिखाया जाता है जिनका प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है महिलाओं को पुरुषों पर निर्भर बताया जाता है जबकि दोनों एक दूसरे के पूरक है
टीवी पर आने वाले विभिन्न विज्ञापनों में हम देखते है,की हमे परस्पर समानता के साथ रहने का संदेश दिया जाता है।और ये बात सही भी है ,आज के समय में हमारे पास ऐसे अनेक उदाहरण है जो यह साबित करते है कि किसी भी क्षेत्र में जेंडर सम्बन्धी कोई रूढ़िवादिता नहीं है,ल।सभी कदम से कदम मिलाकर आगे बढ रहे है,है भी अपने बच्चो के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए।
ReplyDeleteटीवी पर दिखाए जा रहे विज्ञापन अधिकतर महिला या पुरुष में भेदभाव को प्रकट करते हैं जिसमें घरेलू कार्यों के लिए महिलाओं का रूपांतरण किया जाता है एवं बाहरी कार्यों के लिए विशेषकर पुरुषों को अभिनति किया जाता है जिसके कारण समाज में एक छवि सुदृढ़ होती है कि यह कार्य केवल महिला का है या एक पुरुष का जबकि जहां हम समानता की बात करते हैं हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां लड़के लड़की महिला पुरुष सभी को एक समान एक नजरिए से देखा जाए जिनके कार्यों में कोई विभिन्नता ना हो सभी के लिए समान कार्य हो सभी के लिए एकरूपता हो सभी को जीवन जीने का एक आधार हो एवं ऐसे विज्ञापनों से समाज में भ्रामक जानकारी उत्पन्न होती है अतः यह अनुचित है एक शिक्षक समाज ऐसी प्रथाओं को रूडी वादियों को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकता है
ReplyDeleteBhagwat Singh Rajpoot
जेंडर मीडिया भी प्रभावित करता है इसलिए हमें इसमें सामाजिक जागरूकता लाने की जरूरत है और भेदभाव पूर्ण विज्ञापन नहीं दिखाई जाए स्त्री और पुरुष सभी बराबर हैं इस तरह के विचार प्रदर्शित करनी चाहिए सभी जनों को समान अवसर उपलब्ध कराना चाहिए
ReplyDeleteमहिला और पुरुष दोनों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए, पुरूष शक्तिशाली होते हैं ये केवल एक भ्रम है
ReplyDeleteमेरा नाम राजेंद्र प्रसाद तिवारी शासकीय प्राथमिक शाला मदरो रीवा।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक विषय है। इसके माध्यम से शिक्षक छात्रों की क्षमताओं को पहचानने और उसके अनुसार कौशल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं
https://youtu.be/rZBhxbcehfs
ReplyDeleteटेलीविजन पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे अनेक विज्ञापन है जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं !
टेलीविजन पर दिखाएं जाने वाले विज्ञापन निश्चित रूप से सामाजिक रूढ़ियों से प्रभावित हैं ..
लेकिन वर्तमान में दिखाएं जाने वाले विज्ञापनो में समानता प्रदर्शित किया जा रहा है ...
मैं रंजीत कुमार मंडल माध्यमिक शिक्षक शासकीय माध्यमिक विद्यालय सुंदर खेड़ी तहसील राघौगढ़ जिला गुना में पदस्थ हूं टीवी पर प्रसारित विज्ञापन में महिलाओं को सौंदर्य फैशन शिशुओं की देखभाल दिखाते हैं कुछ विज्ञापन में पुरुषों को बॉडीबिल्डर का प्रदर्शन करते हुए दिखाते हैं यहां जेंडर के अनुकूल है कुछ विज्ञापन में यह दिखाया जाता है कि महिलाओं को घर की साफ सफाई करने वाले उत्पादों और खाना पकाने संबंधित वस्तुओं की खरीददारी दिखाते हैं जबकि पुरुषों में मकान खरीदना बिजनेस करना दिखाते हैं। पुरुषों को अधिक बुद्धिमान एवं शक्तिशाली दिखाया जाता है या रूढ़िवादी है।
ReplyDeleteमैं रविंद्र बंजारा प्राथमिक शिक्षक श्यामा टोरा जन शिक्षा केंद्र राजपुर तहसील एवं जिला अशोकनगर मध्य प्रदेश महिला एवं पुरुषों में किसी प्रकार का किसी भी स्तर पर भेदभाव नहीं करना चाहिए दोनों के प्रति दृष्टिकोण समान रहना चाहिए जेंडर विषमताओं को समावेशी बनाने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका है यदि वह पूरे मन से प्रयास करें तो विषमता को विद्यालय और समाज से दूर किया जा सकता है
ReplyDeleteratnesh kumar sahu- महिला और पुरुष दोनों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए, पुरूष शक्तिशाली होते हैं ये केवल एक भ्रम हैशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक विषय है। इसके माध्यम से शिक्षक छात्रों की क्षमताओं को पहचानने और उसके अनुसार कौशल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं
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ReplyDeleteविज्ञापनों में रूढ़िवादी जो जेंडर असमानता है उससे संबंधित कई विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं जैसे घर संभालने वाली बात ,बच्चों को संभालने के बाद टॉयलेट आदि से संबंधित विज्ञापन में महिलाओं को दिखाया जाता है जबकि कार खरीदना है, घर खरीदना है, इस तरह के विज्ञापनों में पुरुषों को प्रधानता दी जा रही है।
ReplyDeleteवर्तमान परिप्रेक्ष्य में कई ऐसे विज्ञापनों को भी दिखाया जा रहा है जिस में जो जेंडर असमानता है उसे खत्म कर दिया गया है जिसमें एक लड़की अपनी कार का टायर खुद बदल रही है ।
नमस्कार, मैं महेश कुमार पिपलोदिया प्राथमिक शिक्षक P.S. NIMOLA । मै बचपन से ही विज्ञापनों में जेंडर सम्बधी भेदभाव देखता आ रहा हूँ, जैसे कपड़े धोने , सफाई, खाना बनाने, बच्चों की देखभाल आदि से संबंधित उत्पादों के प्रचार के लिए अधिकतर महिलाओं को दिखाया जाता है। कार , मोटरसाइकिल, इलेक्ट्रॉनिक सामान, कृषि उपकरण आदि के प्रचार में पुरुषों को आगे रखा जाता है। इन रूढ़िवादी विज्ञापनों को देख कर आम जन की मानसिकता पर गहरा प्रभाव पड़ता है,और एक अव्यक्त सन्देश का प्रसार होता है की कौंन सा काम किसके लिए है।
ReplyDeleteविज्ञापन जगत में सबसे अधिक जेंडर भेदभाव है। विज्ञापनों में महिलाओं को छवि अलग दिखाई जाती है । लेकिन अब इसमें परिवर्तन होने लगा है; जो कि समाज में आ रहे शनै शनै परिवर्तन का सूचक है। विद्यलंइन शिक्षा के द्वारा हम जेंडर भेदभाव को हम जड़ से समाप्त करेंगे ।
ReplyDeleteजेंडर विषमताओं को समावेशी बनाने में शिक्षक और समाज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है यदि पूरे मन से प्रयास करें तो इस विषमता को विद्यालय से लेकर समाज तक कम किया जा सकता है
ReplyDeleteविज्ञापन 1- एयर फोर्स मे 10 जवानों की आवश्यकता है जिसमे सिर्फ पुरुष अभ्यर्थी ही आवेदन कर सकते हैं। विज्ञापन 2- इंडियन नेवी में रिक्त 10 सैनिकों के पद पर भर्ती की जानी है। भारतीय स्त्री - पुरुष दोनों ही आवेदन हेतु पात्र हैं, लिंग के आधार पर किसी को कोई वरीयता नहीं दी जाएगी क्योंकि साहस और बुद्धिमत्ता की दृश्टिकोण से दोनों ही समान हैं।
ReplyDeleteजेंडर के अनुसार भेदभाव नहीं होना चाहिए पुरुष तथा महिलाए दोनों समान रूप से कार्य कर सकते है।
ReplyDeleteTV per dikhaye jane wale add main mahila purush main anter wale adhiktar add hote hain visheshkar washing powder aur kitchen ke adds
ReplyDeleteमहिला एवं पुरुषों लड़के लड़कियों में किसी भी प्रकार का, किसी भी स्तर पर कोई भी भेद भाव नही करना चाहिए। इससे दोनों ही जेंडर में हीन भावना लगाव तथा विपरीत जेंडर के प्रति असंतोष की भावना जागृत होती है उत्पन्न होती है दोनो के प्रति समान दृष्टिकोण रखना चाहिए जिससे सभ्य समाज का निर्माण होगा।
ReplyDeleteटेलेविज़न में अधिकांश विज्ञापनों में जेंडर संबंधी रूढ़ियों को प्रदर्शित किया जाता है जेंडर विषमताओ को समावेशी बनाने में शिक्षक एवम समाज के साथ साथ विज्ञापनों की महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है शिक्षक कार्यकर्ता के रूप में समाज के सहयोग से जेंडर विषमता को विद्यालय एवम समाज मे कम कर सकता है । जबकि समानता प्रदर्शित करने वाले विज्ञापनों के माध्यम से जेंडर रूढ़ियों को कम किया जा सकता है ।
ReplyDeleteमैं सुनील कुमार सोंधिया BAC विकासखंड खिरकिया जेंडर जेंडर सामाजिक रूप से निर्धारित और सांस्कृतिक रूप से महिलाओं पुरुषों और ट्रांसजेंडर के बीच अंतर को संदर्भित करता है लड़कों और लड़कियों के बीच जैविक अंतर उनकी संज्ञानात्मक क्षमताओं से संबंधित नहीं है महिला और पुरुष नहीं !!महिला सत्ता aur अधिकार के पदों को संभालने में पुरुषों की तरह ही सक्षम है!!
ReplyDeleteसुनील कुमार सोंधिया
Deleteसुनील कुमार सोंधिया
Deletehttps://youtu.be/y4QxRV4pMcI
ReplyDeleteUpar diye gye video link m dikhaya gya h ki kis prakar ghar k kaam ko sirf ladkiyo k liye hi avashyak maana jaata h.
https://youtu.be/8QDlv8kfwIM
Iss video m dikhaya gya h ki gender equality kis prakar s bhut hi aavasyak h, aur uska example bhi diya gya h
मैं रामनिवास गौर शासकीय कन्या माध्यमिक शाला सिराली ।अनेक ऐसे विज्ञापन हैं जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को बढ़ावा तथा विभिन्न ता प्रदान करते हैं जैसे निरमा साबुन आदि के विज्ञापन से ऐसा लगता है कि यह केवल महिलाओं के लिए ही बने हैं इसी प्रकार शेविंग क्रीम मोटरसाइकिल ,कार ट्रैक्टर आदि पुरुष प्रधान विज्ञापन है इससे जेंडर रूढ़िवादिता का पता चलता है।
ReplyDeleteमैं कृष्णा सिंह GPS मोहनी और मेरी समझ और सोच यही है कि जेंडर विषमताओं को समावेशी बनाने में शिक्षक और समाज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है यदि पूरे मन से प्रयास करें तो इस विषमता को विद्यालय से लेकर समाज तक कम किया जा सकता है
ReplyDeleteMahila aur purush mein kisi bhi prakar ka kisi bhi star per bhedbhav nahin karna chahie donon ke prati saman vyavhar rakhna chahie
ReplyDeleteमहिला और पुरुष दोनों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए,दोनों का सामान अधिकार होना चाहिए
ReplyDeleteपुरुष प्रधान समाज मे विज्ञापन भी ज्यादातर पुरुष प्रधान ही होते थे लेकिन जागरूकता बढ़ने पर अब मानसिकता बदल रही है।इसी मानसिकता के चलते अब महिलाएं हर मैदान में झंडे गाड़ रही हैं।लांग के आधार पर कोई किसी से कम नही है ये बात सर्वमान्य है।
ReplyDeleteअब्दुल साजिद (प्र अ) प्रा वि सैदा पुर बभनजोत जनपद गोंडा
समाज में स्त्री और पुरुष दोनों का ही समान महत्व है स्त्री और पुरुष के बीच में जेंडर आधारित भेदभाव करना उचित नहीं होगा यही बात हमें अपने विद्यालय में ध्यान रखनी है कि बालक और बालिकाओं में जेंडर के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव न किया जाए तभी सीखने की प्रक्रिया में दोनों समान रूप से सहवाग हो सकेंगे
ReplyDeleteजेंडर रूढ़िवादिता को मजबूत करता विज्ञापन टीवी में अक्सर देखे जाते हैं इनमें से एक है टू व्हीलर और फोर व्हीलर को चलाते हुए हमेशा आदमियों को दिखाया जाता है खाना बनाने वाले मसालों के विज्ञापन में समानता नजर आती है जहां पुरुष और महिला दोनों को ऐड में लिया जा रहा है
ReplyDeleteजो जेंडर संबंधित रूढियों को मजबूत करता है ऐसा विज्ञापन जैसे-ये कण्डोम का विज्ञापन है या कोलगेट का। डबल मीनिंग एडवर्टिशमेन्ट आफ कोलगेट।
ReplyDeleteऐसा विज्ञापन जो जेंडर के अनुकूल है जैसे-बटी बचाओं बेटी पढ़ाओ।
बेटा पढ़े तो अकेला बढे, बेटी पढे तो दो परिवार आगे बढ़े।
महिला और पुरुष दोनों एक समान हैं बालक बालिकाओं में भेद करना सही नहीं है चाहे बाला को चाय बालिकाओं और अभी तो हम देखते हैं कि बालिकाएं आजकल बालको से अव्वल होने लगी है क्योंकि बालिकाएं जिज्ञासु शांत स्वभाव और ऊंचे पद पर पहुंचने के लिए निष्ठावान रहती है इसलिए जेंडर में भेदभाव हमें नहीं करना चाहिए सभी को समानता का अधिकार है जय बालक हो चाहे बालिका हो या ट्रांसजेंडर
ReplyDeleteधन्यवाद
राजेश भारद्वाज जन शिक्षक जन शिक्षा केंद्र गढ़ी जिला बालाघात
अनेक ऐसे विज्ञापनहै जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को बढ़ावा तथा भिन्नता करते है। जैसे ज्यादातर साबुन या ब्यूटी products आदि के विज्ञापन से ऐसे लगता है कि ये केवल महिलाओं के लिए बने है और इसी प्रकार बाइक, कार, पेप्सी जैसे आदि पुरुष प्रधान विज्ञापन है। इनसे जेन्डर रूढिवाद का पता चलता है।
ReplyDeleteकिसी भी नए उत्पाद के विज्ञापन मे अधिकांश महिलाओं को सामने लाया जाता है जो जेंडर भेदभाव को दर्शाता है । सामाजिक जागरूकता एवं स्कूल शिक्षा द्वारा इस पर नियंत्रण संभव है ।
ReplyDeleteमहिला और पुरुष दोनों एक समान हैं बालक बालिकाओं में भेद करना सही नहीं है चाहे बाला को चाय बालिकाओं और अभी तो हम देखते हैं कि बालिकाएं आजकल बालको से अव्वल होने लगी है क्योंकि बालिकाएं जिज्ञासु शांत स्वभाव और ऊंचे पद पर पहुंचने के लिए निष्ठावान रहती है इसलिए जेंडर में भेदभाव हमें नहीं करना चाहिए सभी को समानता का अधिकार है जय बालक हो चाहे बालिका हो या ट्रांसजेंडर
ReplyDeleteधन्यवाद
राजेश भारद्वाज जन शिक्षक जन शिक्षा केंद्र गढ़ी जिला बालाघात
मैं श्रीमती संध्या पटेल- शा.मा.वि. बलबाड़ी, खरगोन।
ReplyDeleteमॉड्यूल 4 – गतिविधि 2: जेंडर पर मीडिया के चित्रण का विश्लेषण
https://youtu.be/JIU5NzXIspA
TV पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे अनेक विज्ञापन है जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं जिनमें से एक हार्पिक के विज्ञापन में एंकर (पुरुष,) द्वारा केवल महिलाओं से ही पूछा गया इसमें एक भी पुरुष दिखाई नहीं दिया क्यों?
https://youtu.be/rZBhxbcehfs
वही दूसरे एड में बारिश मैं कार के पास जब एक ट्रांसजेंडर आता है तो पूर्वाग्रह से जुड़े सामाजिक व्यवहार के प्रदर्शन को एक कप गर्म चाय से समाप्त कर देता है।
ये निष्ठा प्रशिक्षण जो दीक्षा के अंतर्गत हो रहा है यह जेंडर विविधता सम्बन्धी प्रशिक्षण है ।वर्तमान में मीडिया जैसे टेलिविज़न समाचार पत्रों सभी जगह जेंडर में विविधता दर्शाते हुए ऐड दिखाई देते है जैसे कोई सौंदर्य प्रसाधन का ऐड होगा तो उसमें किसी महिला का ऐड आएगा और कोई शक्तिवर्धक सम्बन्धी ऐड होगा तो किस पुरुष को दिखाएंगे ।यह धारणा गलत है महिला और पुरुष दोनों ही सुंदर हो सकते है बलशाली हो सकते हैं आज कोई भी किसी से कम नही है इसीलिए लड़का लड़की या ट्रांसजेंडर किसी मे कोई भेदभाव नही होना चाहिए फिर चाहे वो विद्यालय हो या घर या समाज।
शिक्षक, जेंडर से जुड़ी रूढ़िवादिता को दूर करने के लिए नींव का पत्थर साबित होता है।
निष्ठा प्रशिक्षण के इस मॉड्यूल की सहायता से कक्षा कक्ष तथा कक्षा के बाहर की गतिविधियों में जेंडर संवेदनशीलता को बढ़ावा देने का प्रयास शिक्षक कर सकेंगे।
🙏 धन्यवाद ! 🙏
Sukhada Bhadoria
ReplyDeletePS heeralal ka pura
महिला एवं पुरुष में किसी प्रकार का,किसी भी स्तर पर भेदभाव नहीं करना चाहिए । दोनों के प्रति सामान दृष्टिकोण रखना चाहिए।
पुरुष प्रधान समाज मे विज्ञापन भी ज्यादातर पुरुष प्रधान ही होते थे लेकिन जागरूकता बढ़ने पर अब मानसिकता बदल रही है।इसी मानसिकता के चलते अब महिलाएं हर मैदान में झंडे गाड़ रही हैं।लिँग के आधार पर कोई किसी से कम नही है ये बात सर्वमान्य है।
ReplyDeleteअब्दुल साजिद (प्र अ) प्रा वि सैदा पुर बभनजोत जनपद गोंडा
मैं विजयलक्ष्मी चौहान शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय डीआरपी लाइन महिला और पुरुष दोनों एक समान है बालक बालिकाओं में भेद करना सही नहीं है हमें जेंडर भेज नहीं करना चाहिए हमें इस से ऊपर उठकर छात्र-छात्राओं को शिक्षा देनी है
ReplyDeleteGender sambanshit roodhivadita vigyapnon me lgatar pradashit ki jati hai Jo Nahi Hona chahiye.ek Shikshak hone k Nate humara naitik dayitva hai ki hum gender bhedbhav ko samapt Karne Ka prayas Karen.Jagdeesh singh Bundela GPS Itahra Maihar 23130203101
ReplyDeleteमहिला एवं पुरुष में किसी प्रकार का,किसी भी स्तर पर भेदभाव नहीं करना चाहिए । दोनों के प्रति सामान दृष्टिकोण रखना चाहिए।
ReplyDeleteजेंडर संबंधी सजगता एवं संवेदनशीलता वर्तमान में एक अत्यंत समीचीन एवं महत्वपूर्ण विषय है जिससे शिक्षण अधिगम और विद्यालय वातावरण में सहज रूप में शामिल किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
ReplyDeleteसमाज में बाजार में व्यक्ति में परिवार में यह जेंडर संबंधी भेदभाव लगातार स्थापित किया जा रहा है और इसमें टीवी पर आने वाले विज्ञापन बड़ी विकृत भूमि का निभाते हैं
उदाहरण के लिए
https://youtu.be/aMlgI0ctmfs
उपरोक्त ऐड में बताया गया है कि लड़की अपने परिवार के लिए एक बड़ा घर खरीदना चाहती है जो वह साइकिल चैंपियन बनने पर जीतेगी परंतु उसे जो अवसर/ धन की प्राप्ति होती है वह उसे साइकिल चैंपियनशिप जीतने पर नहीं बल्कि एक क्रीम लगाने पर जिससे वह गोरी हो जाए उस से प्राप्त होती है, तो प्रच्छन्न रूप से यह स्थापित किया जाता है कि आपकी योग्यता नहीं आपका रंग महत्वपूर्ण है।
ऐसे सैकड़ों और हजारों विज्ञापन हमारी आंखों के सामने लगातार चलते रहते हैं जो ना सिर्फ प्रत्यक्ष बल्कि परोक्ष रूप से भी हमारे सोच को पूर्वाग्रही बनाने में योगदान देते हैं।
टीवी पर दिखाए जा रहे विज्ञापन अधिकतर महिला या पुरुष में भेदभाव को प्रकट करते हैं जिसमें घरेलू कार्यों के लिए महिलाओं का रूपांतरण किया जाता है एवं बाहरी कार्यों के लिए विशेषकर पुरुषों को अभिनति किया जाता है जिसके कारण समाज में एक छवि सुदृढ़ होती है कि यह कार्य केवल महिला का है या एक पुरुष का जबकि जहां हम समानता की बात करते हैं हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां लड़के लड़की महिला पुरुष सभी को एक समान एक नजरिए से देखा जाए जिनके कार्यों में कोई विभिन्नता ना हो सभी के लिए समान कार्य हो सभी के लिए एकरूपता हो सभी को जीवन जीने का एक आधार हो एवं ऐसे विज्ञापनों से समाज में भ्रामक जानकारी उत्पन्न होती है अतः यह अनुचित है एक शिक्षक समाज ऐसी प्रथाओं को रूडी वादियों को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकता है महेन्द्र सिंह गुर्जर शा.प्रा.वि.तलावड़ा विकास खण्ड एवं जिला राजगढ़ मध्य प्रदेश
ReplyDeleteजेंडर संबंधी विषमताओ को समवेसी बनाने में शिक्षक औऱ समाज को एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया जाना चाहिए क्योंकि यदि दोनों ही आपनी पूरी निष्ठा से प्रयास करें तो इस विषमता को विद्यालय से लेकर समाज के अंतिम छोर तक कम किया जा सकता है तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकेगा |
ReplyDeleteमैं बृज बिहारी शुक्ल माध्यमिक शिक्षक शासकीय हाई स्कूल बुढ़िया, जिला -रीवाँ मध्यप्रदेश । मैं कहना चाहता हूँ कि लैंगिक समानता क्यो जरूरी है क्योंकि कहा गया है कि "समानता एक सुन्दर एवं सुरक्षित समाज की वह नींव है जिस पर विकास रूपी ईमारत बनाई जा सकती है।"हमारे समाज के विकास के लिये लैंगिक समानता जरूरी है। परंतु दुर्भाग्य से हमारे घर से ही लैंगिक असमानता प्रारंभ हो जाती है हर जगह दोनों में अंतर बताया जाता है उनके बीच मे सेक्स में अंतर है जो कि जैविक है परन्तु लैंगिक अंतर तो सामाजिक है। अतः हम सभी शिक्षको का यह कर्तव्य है कि हमे लैंगिक असमानता को कम करने के लिए प्रयास करना चाहिए ।
ReplyDeleteटीवी पर प्रसारित विज्ञापन में महिलाओं को सौंदर्य फैशन शिशुओं की देखभाल दिखाते हैं कुछ विज्ञापन में पुरुषों को बॉडीबिल्डर का प्रदर्शन करते हुए दिखाते हैं यहां जेंडर के अनुकूल है कुछ विज्ञापन में यह दिखाया जाता है कि महिलाओं को घर की साफ सफाई करने वाले उत्पादों और खाना पकाने संबंधित वस्तुओं की खरीददारी दिखाते हैं जबकि पुरुषों में मकान खरीदना बिजनेस करना दिखाते हैं। पुरुषों को अधिक बुद्धिमान एवं शक्तिशाली दिखाया जाता है ।
ReplyDeleteजब तक हम अपने विज्ञापनाेें में ,सामाजिक व्यवहार में महिलाओं को दोयम दर्जे का या घर, बच्चे या किचन से केे दायरें से बाहर नही निकालते तब हम अपनी आने वाली अगली पीढी केे मन से लिंगभेद, या लैंगिक आधार पर भेदभाव मिटाने एवंं स्वस्थ समाज की स्थापना करनें में सफल नही हो सकेंगेे ,जबकि समानता प्रदर्शित करने वाले विज्ञापनों के माध्यम से जेंडर रूढ़ियों को कम किया जा सकता है ।
जेंडर विषमताओं को समावेशी बनाने में शिक्षा को समाज की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है वह यदि पूरे मन से प्रयास करें तो इस विषमता को विद्यालय से लेकर समाज तक कम किया जा सकता है
ReplyDeleteयदि लड़का लड़की हो एक समान तो स्वस्थ समाज का निर्माण
महिला एवं पुरूष सम्बंधित धारणाएं जेंडर रुपी पिडा़ को दर्शाता है जिससे एक महिला ओर पुरूष को अलग अलग कार्य व्वहार करते है ।जैसे एक शिक्षक- शिक्षकाओं के पढाने या विद्यालय के कार्य मे जेंडर संम्बंधित कार्यों को करने मेभी आनाकानी करती है। कहती है ।हम महिला ऐसेकार्य कैसे करसकते है।
ReplyDeletehttps://youtu.be/JIU5NzXIspA
ReplyDeleteTV पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे अनेक विज्ञापन है जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं जिनमें से एक हार्पिक के विज्ञापन में एंकर (पुरुष,) द्वारा केवल महिलाओं से ही पूछा गया इसमें एक भी पुरुष दिखाई नहीं दिया क्यों?
https://youtu.be/rZBhxbcehfs
वही दूसरे एड में बारिश मैं कार के पास जब एक ट्रांसजेंडर आता है तो पूर्वाग्रह से जुड़े सामाजिक व्यवहार के प्रदर्शन को एक कप गर्म चाय से समाप्त कर देता है।
Aid of bathing soap done by female and aid of complain done by boy and girl both
ReplyDeleteमहिला और पुरूष दोनो समान सामर्थ्य व कौशल रखते हैं । उनमें भेदभाव नहीं होना चाहिए
ReplyDeleteलीविजन पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे अनेक विज्ञापन है जो जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत करते हैं !
ReplyDeleteटेलीविजन पर दिखाएं जाने वाले विज्ञापन निश्चित रूप से सामाजिक रूढ़ियों से प्रभावित हैं ..
लेकिन वर्तमान में दिखाएं जाने वाले विज्ञापनो में समानता प्रदर्शित किया जा रहा है ...जैसे एक लड़की अपनी कार का टायर चेंज करते हुए दिखाई हमारे समाज के विकास के लिये लैंगिक समानता जरूरी है। परंतु दुर्भाग्य से हमारे घर से ही लैंगिक असमानता प्रारंभ हो जाती है
जेंडर के अनुसार पुरुष और महिलाओं एवं बालक और बालिकाओं में भेदभाव नहीं होना चाहिए समाज द्वारा बनाई हुई इन रूढ़ियों से ऊपर उठकर हमें छात्र छात्राओं को शिक्षा देना है
ReplyDeleteजेंडर के अनुसार पुरुष और महिलाओं एवं बालक और बालिकाओं में भेदभाव नहीं होना चाहिए समाज द्वारा बनाई हुई इन रूढ़ियों से ऊपर उठकर हमें छात्र छात्राओं को शिक्षा देना है
ReplyDeleteजेंडर विषमताओं को समावेशी बनाने में शिक्षा को समाज की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है वह यदि पूरे मन से प्रयास करें तो इस विषमता को विद्यालय से लेकर समाज तक कम किया जा सकता है
ReplyDeleteयदि लड़का लड़की हो एक समान तो स्वस्थ समाज का हो निर्माण
कक्षा के सभी बच्चों में अपनी अलग-अलग योग्यता होती है हमें उसको उनकी क्षमता के हिसाब से निखारना चाहिए
ReplyDeleteब्रजकिशोर
Deleteब्रजकिशोर शर्मा
ReplyDeleteGender sambandh jo vibhin prakar ki logo me soch he ki mahilaye ye nhi kr sakti ,ye kamzor hoti he.purush
ReplyDeleteSirf bahar ka kaam kr sakte he,ghar ka kaam nhi.ye sab galt bate he kyuki sabhi har kaam kar sakte. Sab brabar darja rakhte he.
बेटा बेटी एक समान इसमें भेदभाव न करें समाज
ReplyDeleteमहेश कुमार द्विवेदी प्राथमिक शिक्षक शासकीय प्राथमिक शाला हरिजन बस्ती बेरमा
ReplyDeleteजेंडर के आधार पर समाज को बाँटने का काम टेलीविजन चैनलों पर विज्ञापन में किया जाता है जोकि समाज की रुढिवादी सोच को प्रदर्शित करता है हमें समाज में फैली इस रुढिवादी सोच को बदलने का प्रयास करना होगा। हम छात्र-छात्रा में भेद भाव नहीं करें। हम दोनों को समान रूप से अवसर देने का कार्य करते हुए समाज में लोगों की
सोच को जेंडर भेद को समाप्त करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए
mahila aur purush donon samaj ke ek hi sikke ke do pehlu hain donon mein samantaen abhineta hai lekin donon hi takat bar balshali arthik roop se sampann ek dusre ke prati pura group se Apne Apne kartavya ka Nirman karte Hain television par dikha Gaye vigyapanon mein aise aane ka vigyapan hai jo gender sambandhi ruko majbooti pradan karte hain AVN ek dusre ki sahansheelta ka Parichay dete Hain television per dikhai gae jaane wale Anil vigyapan nishchit roop se samajik rogiyon ko prabhavit karte hain AVN vartman mein dikha jaane wale vigyapan mein Samanta pradarshit karna ati avashyak hai aise ek ladki apni kar ka tyre badalte hue AVN kar ko 23 chalate hue dikhai deti hai. .................... https://youtu.be/sppozovNrkAham samaj ke sabhi varg AVN sabhi samuday on ko yah sochana chahie ki ladka ladki mein bhedbhav Na karte hue unhen Punjab madari ke sath samaj ki gatividhiyan mein apna yogdan AVN Desh ke prati kartavya ka Nirman karne ki puri azadi ham sabhi ko Deni hogi mein Sunil Kumar Bhargava, prathmik shikshak PS amkheda Sukha block Aron, district Guna M.P.
ReplyDeleteजेंडर की अवधारणा समाज में स्पष्ट नहीं है जिसके कारण ऐसी रूढ़ियों का जन्म होता है। जैसा कि हमने सीखा है कि लिंग जैविक निर्धारण है जबकि जेंडर सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ में लिया जाना चाहिए जब तक यह अंतर समाज में स्पष्ट नहीं होता तब तक यह भेद /रूढ़ियां जारी रहेगी।
ReplyDeleteमहेश कुमार द्विवेदी प्राथमिक शिक्षक शासकीय प्राथमिक शाला हरिजन बस्ती बेरमा
ReplyDeleteजेंडर के आधार पर समाज को बाँटने का काम टेलीविजन चैनलों पर विज्ञापन में किया जाता है जोकि समाज की रुढिवादी सोच को प्रदर्शित करता है हमें समाज में फैली इस रुढिवादी सोच को बदलने का प्रयास करना होगा। हम छात्र-छात्रा में भेद भाव नहीं करें। हम दोनों को समान रूप से अवसर देने का कार्य करते हुए समाज में लोगों की
सोच को जेंडर भेद को समाप्त करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए
महेश कुमार द्विवेदी प्राथमिक शिक्षक शासकीय प्राथमिक शाला हरिजन बस्ती बेरमा
ReplyDeleteजेंडर के आधार पर समाज को बाँटने का काम टेलीविजन चैनलों पर विज्ञापन में किया जाता है जोकि समाज की रुढिवादी सोच को प्रदर्शित करता है हमें समाज में फैली इस रुढिवादी सोच को बदलने का प्रयास करना होगा। हम छात्र-छात्रा में भेद भाव नहीं करें। हम दोनों को समान रूप से अवसर देने का कार्य करते हुए समाज में लोगों की
सोच को जेंडर भेद को समाप्त करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए
Bohot badhiya
ReplyDeleteBohot badhiya
ReplyDeleteBohot badhiya
ReplyDeleteBohot badhiya
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ReplyDeletegender rudwadita ko badawa dene me na kewal,hamara samaj balki t.v.aur social media marketing ka bhi bahut bada sahyog hai.isliye gender rudwadita ko khatam karna bahut easy to nahi kahe sakte par kosis aur Teachers ke dawara sahi marg darshan se ak din me is burai ko jarur khatam kar sakte hai.thank you
...विचार, एक परिवार, जिसमें माता-पिता और बच्चे (बालिकाएं) क्रमशः 5 वर्ष,3 वर्ष,एवं 1वर्ष....
ReplyDelete...दूसरा, सर्व शिक्षा अभियान का मोनो... जिसमें बालक-बालिका एक समान हैं।
...अपनी समझ से दोनों विज्ञापनो की कल्पना।
मैं सुनील कुमार भार्गव टेलीविजन में विज्ञापन संबंधी अपने व्यक्तिगत विचार पेश करता हूं महिला एवं पुरुष दोनों समाज के एक ही सिक्के के दो पहलू हैं यह एक है कि एक ही गाड़ी के दो पहिए हैं दोनों में समानताएं और कुछ भिन्नता है,तो पराया होती हैं ले,व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में आगे बढ़ने के लिए एक दूसरे की सहभागिता भी होना आवश्यक है। टी।वी।पर दिखाए गए विज्ञापनों में ऐसे विज्ञापन है जो जेंडर संबंधों को मजबूत देते हैं एवं टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों से सामाजिक रूढ़ियों से प्रभावित होते हैं लेकिन वर्तमान में दिखाए जाने वाले विज्ञापनों में समानता प्रदर्शित होना अति आवश्यक है ऐसी ही एक लड़की अपनी कार का टायर को तेज स्पीड में ले जाती हुई दिखाई देती है एवं कुछ ऐसे विज्ञापन भी है दोनों ही सम्मानित करते हुए एवं कार्यभार तक रूप में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए देखे जा सकते हैं। देश और समाज के प्रति दोनों के अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करना सेना एयर फोर्स नेवी एवं संसद में देखा जा सकता है कि सभी अपनी अपनी जिम्मेदारियों को लेकर और अपनी अपनी भूमिकाओं में खरे उतरे हैं, तो हमें पुरानी परंपरा और रूढ़िवादी यों को नजरअंदाज करते हुए समाज में व्यापक पैमाने पर अनेकों कुरीतियों दहेज प्रथा पिछड़ापन शिक्षा जातिवाद आदि कमजोरियों को दूर कर हमें एक तंदुरुस्त और सेहतमंद समाज की आधारशिला रखने की आवश्यकता है धन्यवाद।।
ReplyDeleteशिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक विषय है। इसके माध्यम से शिक्षक छात्रों की क्षमताओं को पहचानने और उसके अनुसार कौशल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं
ReplyDeleteमीडिया पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन अधिकतर महिला और पुरुषों के बीच जेंडर भेद को प्रदर्शित करते हैं जो रूढ़िवादी सोच दर्शाते हैं परंतु बहुत से विज्ञापन महिला और पुरुषों की समानता को भी प्रदर्शित करते हैं जो जनरल भेद को दूर करने में बहुत सहायक होते हैं
ReplyDeleteघर के अधिकांश कार्य महिलाओं द्वारा किया जाता है जैसे चाय बनाना, खाना बनाना,साफ सफाई करना आदि।यह कार्य पुरुष भी कर सकते है।यहां जेंडर भेद भाव दिखाई देता है।विज्ञापन भी इसी आधार पर बनाए जाते है।
ReplyDeleteमैं शिक्षक धनराज पटेल शा. प्रा. शाला इमझिरा से आज भी हमारी समाज में कई क्षेत्रों में रूढिवादी हावी है इससे निपटने के लिए हम शालाओं मे छात्र-छात्राओं को जेंडरों में भेदभाव को खत्म कर एवं रूढिवादी समस्याओं को खत्म कर सकते हैं।
ReplyDeleteमहिला और पुरुष के साथ समान
ReplyDeleteव्यवहार करना चाहिए
Media pr dikhaye jane wale kai programm ese he jo rudivadita ko darshate he.sabse accha example tv serial balika Vadhu etc.
ReplyDeleteRakesh panthi primary teacher Khairoda bagrod block Ganj Basoda district Vidisha unique I'd BY7721
ReplyDeleteसमानता एक सुंदर और सुरक्षित समाज की वो नीव है जिस पर विकास रूपी इमारत बनाई जा सकती है।
Men will be men officer choice ke vigyapan me men ko alag batlya jata he jo ki galat he.aur bhi bahut se vigyapan he.
ReplyDelete(आमिना बेगम ) महिला और पुरुष के साथ समान व्यवहार करना चाहिए
ReplyDeletePratima parihar government p. S school madaiyapura
ReplyDeleteवर्तमान में दिखाए जाने वाले विज्ञापनों में समानता प्रदर्शित होना अति आवश्यक है ऐसी ही एक लड़की अपनी कार का टायर को तेज स्पीड में ले जाती हुई दिखाई देती है एवं कुछ ऐसे विज्ञापन भी है दोनों ही सम्मानित करते हुए एवं कार्यभार तक रूप में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए देखे जा सकते हैं। देश और समाज के प्रति दोनों के अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करना सेना एयर फोर्स नेवी एवं संसद में देखा जा सकता है कि सभी अपनी अपनी जिम्मेदारियों को लेकर और अपनी अपनी भूमिकाओं में खरे उतरे हैं, तो हमें पुरानी परंपरा और रूढ़िवादी यों को नजरअंदाज करते हुए समाज में व्यापक पैमाने पर अनेकों कुरीतियों दहेज प्रथा पिछड़ापन शिक्षा जातिवाद आदि कमजोरियों को दूर कर हमें एक तंदुरुस्त और सेहतमंद समाज की आधारशिला रखने की आवश्यकता है धन्यवाद।।
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जेंडर एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक विषय है। इसके माध्यम से शिक्षक छात्रों की क्षमताओं को पहचानने और उसके अनुसार कौशल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं
ReplyDeletehttps://youtu.be/SttFYufPKws wse तो hmare samaj में लड़कियों कोउनकी हक़ ka कुछ milta hi nhi pr ye कुछ ऐड है जो प्रमोट krte है
ReplyDeleteजेण्डर संबंधी भेदभाव को समाप्त करने के लिए हमे सबसे पहले अपने घर परिवार से सुरुआत करनी चाहिए हमे अपने बेटे और बेटी दोनों को समान अबसर प्रदान करना चाहिए तभी जेण्डर भेदभाव को समाप्त कर सकते है।-
ReplyDelete-लक्ष्मी नारायण जाटव मा.शिक्षक, शा.मा.वि.ओडपुरा घाटीगांव ग्वालियर म.प्र.
EPES.GOVT.HSS.HATOD----हर घर में, लड़की के बड़े होने पर उसे घर के काम सिखाये जाते हैं। यह कहते हुए कि लोग क्या कहेंगे? मां ने कुछ नहीं सिखाया। यह बात आज भी कोई मां बोले या न बोले पर मन में खटकती तो रहती है। लड़की में लाखों हुनर हो पर किचन का काम नहीं आये तो शर्म महसूस होती है मां को। पर आज स्थिति बदल रही है। जिन घरों में सिर्फ लड़के ही हैं वे भी किचन का कार्य बखूबी सम्हाल लेते हैं। अपनी अन्य हुनर के साथ। माता - पिता की सोच भी बदल रही है।
ReplyDeleteनीचे दी गई लिंक में, जेंडर रूढ़ियों को महसूस किया जा सकता है।
https://youtu.be/y4QxRV4pMcI
ज्यादा तरह advertisement में film में story में पुरुष को शक्तिशाली बताकर जेंडर रुढ़िवादिता को दर्शाना ठीक नहीं है।
ReplyDeleteसमान अधिकार होना चाहिए महिला और पुरुष में समाज में दोनों की भागीदारी एक समान होना चाहिए.
ReplyDeleteसमाज मे जेंडर विषमता को खत्म करने के लिए हमे अपनी सोच मे परिवर्तन लाना होगा । रूढ़िवादी पारंपरिक विचारधाराओ को त्यागना होगा।
ReplyDeleteटीवी पर दिखाए जा रहे विज्ञापन अधिकतर महिला या पुरुष में भेदभाव को प्रकट करते हैं जिसमें घरेलू कार्यों के लिए महिलाओं का रूपांतरण किया जाता है एवं बाहरी कार्यों के लिए विशेषकर पुरुषों को अभिनति किया जाता है जिसके कारण समाज में एक छवि सुदृढ़ होती है कि यह कार्य केवल महिला का है या एक पुरुष का जबकि जहां हम समानता की बात करते हैं हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां लड़के लड़की महिला पुरुष सभी को एक समान एक नजरिए से देखा जाए जिनके कार्यों में कोई विभिन्नता ना हो सभी के लिए समान कार्य हो सभी के लिए एकरूपता हो सभी को जीवन जीने का एक आधार हो एवं ऐसे विज्ञापनों से समाज में भ्रामक जानकारी उत्पन्न होती है अतः यह अनुचित है एक शिक्षक समाज ऐसी प्रथाओं को रूडी वादियों को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकता है
ReplyDeleteजितेन्द्र वर्मा
ReplyDeleteप्राथमिक शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय मोमदिया मोंगरगाँव
भगवानपुरा खरगोन मध्यप्रदेश
"जैंडर के आधार पर समाज को बाँटने का काम टेलीविजन चैनलों पर ऐटोटाईज मै किया जाता है. जो कि समाज की रुढिवादी सोच को प्रदर्शित करता है हमें समाज में फैली इस रुढिवादी सोच को बदलने का प्रयास करना होगा।हम अपनी शाला के छात्र छात्रा औ मै भेदभाव नहीं करें।हम दोनों को समान रूप से अवसर देने के कार्य करते हुए समाज में लोगों की सोच को जैंडर भेदभाव को समाप्त करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।शिक्षक की समाज की वातावरण का परीवेश की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाना चाहिए
जय हिंद
जय भारत
पुरूष प्रधान समाज होने के कारण टीवी पर दिखाए जा रहे विज्ञापन अधिकतर महिला या पुरुष में भेदभाव को प्रकट करते हैं जिसमें घरेलू कार्यों के लिए महिलाओं का रूपांतरण किया जाता है एवं बाहरी कार्यों के लिए विशेषकर पुरुषों को अभिनति किया जाता है जिसके कारण समाज में एक छवि सुदृढ़ होती है कि यह कार्य केवल महिला का है या एक पुरुष का जबकि जहां हम समानता की बात करते हैं हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां लड़के लड़की महिला पुरुष सभी को एक समान एक नजरिए से देखा जाए जिनके कार्यों में कोई विभिन्नता ना हो सभी के लिए समान कार्य हो सभी के लिए एकरूपता हो सभी को जीवन जीने का एक आधार हो एवं ऐसे विज्ञापनों से समाज में भ्रामक जानकारी उत्पन्न होती है अतः यह अनुचित है एक शिक्षक समाज ऐसी प्रथाओं को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकता है
ReplyDeleteविज्ञापन में महिलाओं को सौंदर्य प्रसाधन और किचन में दिखाया जाता है जबकि पुरुष को ऑफिसमेहनत वालों कार्य के साथ दिखाए जाता है यह संकीर्ण मानसिकता भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही चली आ रही है
ReplyDeleteWe should discourage gender based disparity.We should encourage socially accepted behaviour based on the principles of social equality.
ReplyDeleteआज के अधिकतर विज्ञापनो में जेंडर संबंधी असमानता स्पष्ट दिखाई देती है जैसे - घर के बाहर के कार्यों के लिए सदैव पुरूषों को वरीयता दी जाती है, जबकि घर के अंदर के कार्यों के लिए महिलाओं को आगे रखा जाता है l टी वी पर कार के विज्ञापन में सदैव पुरुष को ही कार ड्राइव करते हुए दिखाया जाता है, जबकि बर्तन के साबुन के संबंध में सदैव महिलाओं को ही बर्तन धोते हुए दिखाया जाता है l
ReplyDeleteHorlicks का एक विज्ञापन जेंडर समानता का अच्छा विज्ञापन है, जिसमें एक लड़की को कार का पहिया खोलते हुए दिखाया गया है जोकि नारी शक्ति को प्रदर्शित करता है l
नमस्कार मैं सुंदर सूर्यवंशी माध्यमिक शिक्षक शासकीय माध्यमिक शाला चिखली मु कासा विकासखंड अमरवाड़ा। जेंडर संबंधी मेरे विचार यह है कि आज भी हमारे समाज में लड़का और लड़की में भेदभाव किया जाता है, चाहे वह शिक्षित परिवार ही क्यों ना हो यह वास्तविक सत्य है कि लड़का की पढ़ाई में विशेष रुप से ध्यान दिया जाता है जबकि लड़की माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अकेली रह करके नहीं पढ़ पाती ऐसी परिस्थिति में समाज की सोच बदलने के लिए इससे पाठ्यक्रम में जोड़ना बहुत ही लाभदायक होगा एवं हम समझ पाएंगे कि लड़का एवं लड़की में भेदभाव नहीं है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की स्थिति मैं कुछ सुधार हुआ है किंतु अभी और भी सुधार की आवश्यकता है , ताकि समाज को नवीन प्रेरणा एवं दिशा प्राप्त हो सके विज्ञापनों में जैसे-: बर्तन मांजना कपड़े धूलना इत्यादि में महिलाओं के ही कार्य को दिखाया जाता है , इससे उनके मन में यह बात गांठ कर जाती है, कि यह कार्य लड़कियां ही करेंगी लड़के नहीं चाहे फिर वह घर का खाना बनाना हो या घर की साफ सफाई करना हो इस पर लड़कियों से ही कार्य कराया जाता है अतः समाज की इस सोच को बदलना जरूरी है।।।।
ReplyDeleteMahila aur purush me bhedbhaw nahi karna chahiye dono ko saman manna chahiye
ReplyDeletehttps://yutu.be/bFXO_5NblE0
ReplyDeleteकिंडर जॉय के विज्ञापन में भी जेंडर रूढ़ियों को मजबूत किया जाता है क्योंकि उसमें उपहार देने में भी भेदभाव किया जाता है।
https://youtu.be/JIU5NzXIspA
एक हार्पिक के विज्ञापन में एंकर (पुरुष,) द्वारा केवल महिलाओं से ही पूछा गया इसमें एक भी पुरुष दिखाई नहीं दिया क्यों?
संध्या गौतम(मा.शिक्षक)
ReplyDeleteजिला:-सतना(म.प्र.)
मेरे विचार में समाज में समता लाने के लिए जेंडर गेप खत्म करने की शुरुआत घर से ही होनी चाहिए और शिक्षकों को तो पूरी तरह जेंडर गेप को खत्म करने का जिम्मा लेना अति आवश्यक है।हमारी पाठ्यपुस्तक, समाचार पत्र, टी वी विज्ञापन आदि में भी घरेलू कार्यों की यदि बात आती है जैसे-पानी लाना,मैगी बनाते हुए दिखाना आदि तो महिलाओं के चित्र या वीडियो ही दिखाए जाते हैं न कि पुरुषों के।
असमानता दिखाने वाले विज्ञापन-
https://youtu.be/onhgE0-z1qM
https://youtu.be/TIZ3LZgrfgk
समानता दिखाने वाले विज्ञापन-
https://youtu.be/WVjXWynV2Gw
धन्यवाद
सम
मैं राम सिंह शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेल्दरा विकासखंड मैहर जिला सतना मेरे विचार से बालक और बालिका में किसी भी प्रकार से भेदभाव नहीं करना चाहिए समाज में हो रहा भेदभाव बालिकाओं के विकास में बाधा उत्पन्न करता है शिक्षक समाज का एक महत्वपूर्ण आऊंगा बच्चे ज्यादातर समय शिक्षक के साथ बिताते हैं और उसके विचारों से प्रभावित होते हैं इसलिए शिक्षक विद्यालय में बालक और बालिका में किसी प्रकार का भेदभाव ना करें और उन्हें विकास के समान अवसर प्रदान करें
ReplyDeleteजेंडर संबंधी भेदभाव समाप्त करने में मीडिया अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
ReplyDeleteऔर प्रयास की आवश्यकता है ।
नरेन्द्र कुमार मिश्रा माध्यमिक शिक्षक शासकीय माध्यमिक विद्यालय Ataniya
जिला छतरपुर मध्य प्रदेश
टीवी पर आने वाले विभिन्न विज्ञापनों में हम देखते है,की हमे परस्पर समानता के साथ रहने का संदेश दिया जाता है।और ये बात सही भी है ,आज के समय में हमारे पास ऐसे अनेक उदाहरण है जो यह साबित करते है कि किसी भी क्षेत्र में जेंडर सम्बन्धी कोई रूढ़िवादिता नहीं है,ल।सभी कदम से कदम मिलाकर आगे बढ रहे है,है भी अपने बच्चो के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए।
ReplyDeleteKamla barde
ReplyDeleteManoj singh baghel purush vigyapan me kewal bijines, food, game me dikhate hai jabki mahila kewal saundarya prasadhan ke vigyapan me dikhai deti hai jo ki galat aur bhramak hai dono budhhiman, sahasi, sundar hote hai
ReplyDeleteनीचे दी गई लिंक में दिखाए गए 10 बेस्ट विज्ञापनों में इस भेदभाव को समाप्त करने का सराहनीय प्रयास है ।https://youtu.be/rZBhxbcehfs एक शिक्षक होने के नाते हमारा कर्तव्य बनता है की जेंडर से जुड़ी रूढ़िवादिता को दूर करने के लिए हम नींव का पत्थर साबित हो सकते हैं। निष्ठा प्रशिक्षण के इस मॉड्यूल की सहायता से कक्षा का तथा कक्षा के बाहर की गतिविधियों में जेंडर संवेदनशीलता को बढ़ावा देने का प्रयास करेंगे
ReplyDeleteहमारे समाज में सदियों से महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमजोर, अशक्त , अधिक संवेदनशील , भावुक , निर्णय लेने में असमर्थ और हमेशा पुरुषों पर आश्रित माना गया है जो सत्य नही है महिलाएं भी पुरुषों की भाँति सक्षम हैं इस जेंडर असमानता को दूर करते हुए महिलाओं में आत्मविश्वास जाग्रत करने एवं उनमें भरोसा जताने की आवश्यकता है, इसके अलावा ट्रांसजेंडरों को भी मुख्य धारा में लाने की जरूरत है।
ReplyDeleteमैं जय प्रकाश रजक शा,प्रा, बि,lalpahadi सिरोही महिलाएं और पुरुष को किसी भी स्तर पर भेदभाव नही करना चाहिए दोनों को एक समान रूप से देखना चाहिए
ReplyDeleteMale n female should get equal place in our society.In today's scenario male and female should be treated equally.But this society is male dominated society which needs to be changed which is only possible when we will change our mindset.
ReplyDeleteमहिला, पुरुष समानता को बढ़ावा देने में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ReplyDeleteMahila purush me samanta rkh ke shikshakon ko shiksha dene chahiye aur vigyapan jese kapde dhote hue mahilaon ko hi dikhana uchit nahi hai
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